Parle-G Success Story In Hindi | पारले की सफलता की कहानी

Parle-G Success Story In Hindi > स्वाद भरे, शक्ति भरे, वर्षों से, पारले जी, दोस्तों, कुछ भी हो लेकिन एक बात तो है, पारले जी का वाकई में जबाब नहीं, बचपन से लेकर आज तक इस बिस्किट को हम और आप खाते आ रहे हैं, घर-घर में लोग इसे पसन्द करते हैं, आज भी वही स्वाद इसमें मिलता है जो वर्षों पहले था।

कब और किसने की इसकी शुरुआत, कैसे बढ़ी इसकी औकात, ये क्यूँ मौजूद रहता हरदम हमारे चाय के साथ, सब-कुछ बतायेंगे, इसकी Success Story को आपके सामने लायेंगे, इसलिये बने रहियेगा हमारे साथ, क्योंकि इस आर्टिकल में होगी सिर्फ और सिर्फ पारले बिस्किट की सफलता की बात।

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Parle-G Success Story In Hindi

Parle-G Success Story In Hindi

श्री मोहन लाल जी दयाल जो 1880 में सुरत से मुंबई आये थे उन्होने 1929 में मुंबई के पारला में अपने घर के 12 सदस्यों को साथ लेकर एक फैक्टरी खोली जिसमें कैन्डी बनाना शुरु किया।

उस समय अंग्रेजों का जमाना था और चाय के साथ बिस्किट का प्रचलन था जो कि विदेशों से आता था, मंहगा होने का कारण बिस्किट सिर्फ अंग्रेजों और भारतीय अमीरों के टेबल तक ही रह जाता था।

इस बात को मोहन लाल जी ने बखुबी समझा और फैसला किया कि अब वे बिस्किट की दुनियाँ में कदम रखेंगे और उसे हर एक भारतीय तक पहुँचायेंगे।

मोहनलाल जी ने बिस्किट बनाना सीखा और अपने पारला वाले फैक्टरी में उत्पादन शुरु कर दिया, अब सवाल यह था कि बिस्किट का नाम क्या रखा जाये, इस पर विचार करते-करते उनके मन में पारला से संबंधित पारले नाम आया और उसी को उन्होने अपने विस्किट का नाम रख दिया और वहीं से शुरु हुआ बिस्किट की दुनियाँ का एक ऐसा नाम जो आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है।

शुरुआत में यह पारले ग्लूकोज के नाम से बिकता था लेकिन बाजार में ग्लूकोज के और भी प्रतियोगी आ गये इस कारण से कंपनी ने इसके नाम में परिवर्तन करते हुये 1982 में इसे पारले जी का नाम दिया और साथ में इस जी के मायने को जिनियस का नाम बताया।

कंपनी बहुत ही बड़ी मात्रा में उत्पादन करने लगी अपना नेटवर्क और बढ़ाने के लिये इन्होने मुंबई के अलावा कर्नाटक, राजस्थान और हरियाणा में भी प्लांट लगाया जिससे ट्रान्सपोर्टेशन के खर्चे में कमी आये।

पारले जी की जो सबसे बड़ी खाश बात है वह यह है कि यह अपने उत्पादन की लागत पर कंट्रोल रखती है और यही कारण है कि आज से 26 साल पहले जिस दाम में बिकता था आज भी उसी दाम में बिकता है वो बात अलग है कि जो 5 रुपये वाला पैकेट पहले 100 ग्राम का था वह 90 ग्राम, 80 ग्राम होते हुये अब 65 ग्राम का हो गया है।

दोस्तों, अब सवाल यह उठता है कि यह कंपनी आखिर दाम को न बढ़ाकर भी फायदे में कैसे है और लगातार यह आगे कैसे बढ़ती जा रही है, सवाल बड़ा ही जायज है, तो आइये और आगे बढ़ते हैं और जानते हैं सब-कुछ।

पारले जी इस कंपनी का इंजन प्रोडक्ट है जो इसे घर-घर पहुँचाती है, एक बेहतर स्वाद वह भी मुनासिब दाम में जिसके कारण लोगों का विश्वास पारले के प्रति बना हुआ है और इसी कारण से पारले जी लोकप्रिय भी है।

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Parle-G Success Story In Hindi

पारले जी नामक इंजन के पीछे कई डिब्बे लगे हुये हैं जो इंजन के साथ जुड़े रहने के कारण अपने-आप ही चलते रहते हैं जैसे- Krackjak, Monaco, Hid & Seek, Coconut, Marie, 20-20 आदि।

साहेब, पिक्चर अभी बाकी है, क्योंकि कंपनी की सोच अभी रुकी नहीं थी। उन्होने अपनी रणनीति को और भी बेहतर बनाते हुये यह सोचा कि चाय के टेबल पर हम सिर्फ बिस्किट तक ही क्यों सीमित रहें और यही सोचकर वे पारले का रस्क भी ले आये।

उन्होने भविष्य को ध्यान में रखते हुये यहाँ तक भी सोच लिया कि मान लो कल को कहीं बिस्किट इंडस्ट्री पर कोई संकट आ जाये तो…..? उन्होने टॉफी की दुनियाँ में पैर पसार दिया और Melody, Poppins, Mango bit, Kuccha mango, Choconail और Blackmint जैसे Product द्वारा बाजार में अपना दबदबा और बढ़ा लिया।

दोस्तों, आज पूरी दुनियाँ में पारले के प्रोडक्ट बिकते हैं और एक बात और बता दूँ कि पारले के किसी भी प्रोडक्ट में दुकानदार को मुनाफा बहुत कम मिलता है लेकिन फिर भी लोग इसे बेचते हैं जानते हैं क्यों…? क्योकि ग्राहक इसे मांगता है।

सिर्फ भारत में ही बिस्किट बाजार पर 70% कब्जा अकेले पारले का है और उसमें भी सबसे ज्यादा पारले जी का 5 रुपये वाला पैकेट बिकता हैं जानते हैं क्यों…? क्योकि यह पारले कंपनी का एक ऐसा इंजन है जिसे किसी ड्राइवर की जरुरत नहीं है यह तो अपने-आप में खुद एक ड्राइवर है।

दोस्तों, अगर आप एक सेल्समैन हैं, व्यापारी हैं, उत्पादनकर्ता हैं, आप जो भी हैं, जहीँ भी हैं, जैसे भी हैं, उससे और आगे जाना चाहते हैं तो आपको भी पारले जी जैसा एक ऐसा इंजन तैयार करना चाहिये जिसके पीछे आपके अन्य डिब्बे अर्थात् दूसरे और  प्रोडक्ट आसानी से बिक सकें। अब वह आपका जुबान भी हो सकता है, प्रोडक्ट का दाम भी हो सकता है या फिर कोई ऐसी रणनीति जिसके कारण आपका ग्राहक ही आपका इंजन बन जाये।

दोस्तों, पारले जी पारले वालों का एक ऐसा प्रोडक्ट है जिसमें उनको बहुत ही कम प्रोफिट मिलता है लेकिन उस एक बिस्किट की वजह से घर-घर में उनके कंपनी का नाम पहुँचता है । पारले जी के और दूसरे प्रोडक्ट की प्रोफिट से उनकी सारी कवरिंग हो जाती है और यही कारण है पारले जी को और जीनियस बनाती है।

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धन्यवाद | शुक्रिया | मेहरबानी

अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे। तब तक के लिये, जय हिन्द-जय भारत

आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com

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