पैसा कमाना अगर एक कला है तो पैसा बचाना उससे भी बड़ी कला है, इस आर्टिकल पैसे बचाने की कला | Financial Management Without MBA में पैसों की समझ के बारे में एक कहानी के माध्यम से विस्तार पूर्वक बताया गया है। इस संसार में पहली ताक़त तो ईश्वरीय शक्ति है ही, लेकिन जब दूसरी ताक़त की बात आती है तो हमारे जुबान से एक ही नाम निकलता है और वह है पैसा, हाँ पैसा, हाँ पैसा, हाँ हाँ पैसा, इसमें कोई शक की बात नहीं है और अगर आप को इसमें कोई शक की बात लगती है तो मुझे बताइयेगा।
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पैसे बचाने की कला | Financial management without mba
बहुत से लोग कहते हैं, कि पैसा बहुत बुरी चीज है, पैसा इंसान को इंसान का दुश्मन बना देता है, पैसे की वजह से दोस्ती और रिस्तेदारी में दरार आ जाता है, पैसे के लिए इंसान झूठ बोलता है, गलत काम करता है वगैरह वगैरह।
मै पूछना चाहता हूँ उन लोगों से, जो पैसे के बारे में कुछ इस तरह के ख़याल रखते हैं कि अगर इतना ही बुरा है पैसा तो आप अपनी सारी दौलत किसी ट्रस्ट या अनाथालय को दान क्यूँ नहीं दे देते तो वे कहेंगे कि मै पागल थोड़े ही हूँ जो इतनी मुश्किल से कमाई गयी दौलत को किसी को भी मुक्त में बाँट दूँ।
दोस्तों, पैसा बुरी चीज नहीं है, बल्कि लोगों के गलत नज़रिये ने उसे बुरा बना दिया है। पैसे का सही इस्तेमाल अगर ना हो तो वह बुराई की जड़ बन जाता है लेकिन अगर पैसे का सही इस्तेमाल किया जाय तो इस धरती को ही स्वर्ग बनाया जा सकता है इसमें कोई शक की बात नहीं है।
पैसे में इतनी ताक़त होती है, कि इससे इस धरती पर कोई भी काम करवाया जा सकता है, कोई भी चीज खरीदी जा सकती है, इसकी आड़ में आपके अंदर की सारी बुराईयाँ छुप जाती हैं, एक बेवकूफ के पास भी अगर पैसा आ जाता है तो लोग उसकी तिमारदारी करने लगते हैं ऐसी चीज है पैसा।
चलिये और आगे बढ़ते है, और पैसे के महत्व के बारे में बात करते हैं। एक इंसान अपने जीवन में कितना भी पैसा कमाले लेकिन अगर वह अपने बुढ़ापे में एक-एक पैसे के लिये मोहताज हो तो इसका सीधा सा मतलब है कि वह पैसों को संभाल नहीं पाया।
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जैसा कि इस आर्टिकल का टाईटल ही है, Financial Management Without MBA अर्थात आपको बिना MBA का कोर्स किये ही पैसों की समझ के बारे में बिल्कुल देशी तरीके से बताया जायेगा।
जैसा कि हमने ऊपर की पहली ही लाइन में चर्चा किया है, कि “पैसा कमाना एक कला है तो पैसा बचाना उससे भी बड़ी कला है” और इसके बारे में समझाने के लिये यहाँ पर हमने एक कहानी का सहारा लिया है तो आइये अब और आगे बढ़ते हैं और सबसे पहले वह कहानी पढ़ते है।
दोस्तों, यह कहानी शुरू होती अब से 10 साल पहले, एक शहर में राम और श्याम नामक दो भाई रहते थे, राम एक प्राइवेट कम्पनी में मार्केटिंग एक्सक्यूटीव की जोब करता था और उसकी सैलरी थी 15000 रुपये और उसका भाई श्याम एक मल्टनेशनल कम्पनी में जोब करता था और उसकी सैलरी थी 30000 रुपये दोनों अपने पिता की पैत्रिक मकान में रहते थे।
राम एक सीधा-साधा लड़का था, जबकि श्याम चंचल स्वभाव का लड़का था। राम की उम्र 30 साल थी और श्याम 25 साल का था। राम की शादी हो चुकी थी और उसके पास एक 3 साल की लड़की थी जबकि श्याम अभी कुवाँरा ही था।
अब हम दोनों के बारे में और उनके पैसों के प्रति नजरिये के बारे में बात करते हैं। राम ने सिर्फ बीए तक की पढ़ाई की थी जबकि श्याम ने एमसीए कर रखा था। इसीलिये दोनों के नौकरी और सैलरी में काफी अन्तर था।
कुछ दिन बाद श्याम की भी शादी हो जाती है, और दोनों अपना पारिवारिक जीवन अपने-अपने हिसाब से जीने लगे। उन दोनों के जीवन स्तर में फर्क भी था क्योंकि उनकी कमाई में भी तो फर्क था।
राम का मानना था कि, पैसों को बहुत ही सोच समझकर खर्च करना चाहिये जहाँ जरुरत हो वहाँ पर खर्च करना चाहिये और फिजुल खर्चे से बचने की कोशिश करना चाहिये इसलिये वह अपनी सैलरी का 20% हर महीने बचाकर अपने भविष्य के लिये जमा करता था जबकि श्याम का मानना था कि पैसा तो हाथ का मैल होता है कंजुसी करके क्या जीवन गुजारना खाओ-पीओ मौज करो जिन्दगी में क्या रखा है।
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समय बीतता गया, उनके माता-पिता की मृत्यु हो जाती है और उसके बाद वे दोनों भाई अपनी पैत्रिक संपत्ति बेचकर अपना-अपना हिस्सा लेकर अलग-अलग जगहों पर मकान लेकर रहने लगते हैं क्योंकि श्याम की पत्नी को अलग रहना पसंद था। उसका कहना था कि यह मकान बहुत छोटा है उनके स्टैन्डर्ड के हिसाब से अब उन्हें कोई बड़ा मकान खरीदना चाहिये वह भी शहर के किसी पाश एरिया में। इसके लिये श्याम को अपनी पैत्रिक संपत्ति मे मिला हुआ पैसा कम लगा और उसने बैंक से एक बड़ी रकम फाइनेन्स करवाई और एक पाश कालोनी के सोसाइटी में बड़ा सा फ्लैट खरीदा क्योंकि उजूल-फिजूल खर्च की वजह से उनके पास नगद तो कुछ था ही नहीं और इच्छा अनंत थी तो कर्ज तो लेना ही पड़ेगा।
उधर राम जो पहले से ही बचत की आदत रखता था, उसने अपनी पैत्रिक संपत्ति से मिले हुये पैसों से शहर के पास एक नये बन रही कालोनी में एक जमीन खरीदी जिसकी कीमत शहर के जमीन के मुकाबले काफी सस्ती थी लेकिन शहर के लिंक रोड से सटे होने के कारण आने वाले समय में उसके कीमत में बढोत्तरी की संभावना थी। राम ने अपनी पैत्रिक संपत्ति के पैसों से तो जमीन खरीदी और अपने सेविंग के पैसों से उसने एक मंजिल बनवा लिया और उस मकान में रहने लगा।
अब हम यहाँ पर कहानी में एक ब्रेक लेंगे, और राम और श्याम के पैसों के सोच के बारे में उनके मानसिक संरचना का विश्लेषण करेंगे क्योंकि यहीं सेे शुरु होता है दोनों के जीवन के भविष्य की दिशा जो आगे चलकर सारा खेल ही पलट देता है।
श्याम राम से दोगुना सैलरी पाता है, इसलिये उसकी पत्नी को इस बात का घमन्ड है और वह अहंकार के रथ पर सवार होकर बिन्दास जिन्दगी जी रही है और श्याम तो पहले से ही बिन्दास इंसान था और अब तो बड़ा मकान ऐशो आराम की जिन्दगी महंगे शौक क्या कहने थे। उनका कहना था खायेंगे, पीयेंगे, ऐश करेंगे और क्या और साथ ही बात-बात पर राम की पत्नी को औकात में नीचे गिरना उसकी फितरत थी।
उधर राम आज भी वही अपना सादगी भरा जीवन उसकी पत्नी भी उसी की राह पर चलने वाली थी। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है ऊपर से 20% की बचत जो राम का नियम था वह चल ही रहा था।
जीवन दोनों के परिवारों का चल ही रहा था, राम का सादगी भरा और श्याम का ओवर ऐक्टिंग से भरपूर लेकिन पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त क्योंकि जिन्दगी भी तो अपना खेल खेलती है और अब कहानी में एक जबरदस्त मोड़ आने वाला है जो दुध का दुध और पानी का पानी करने वाला है।
अब हम जहाँ से चले थे वहीं पर वापिस आते हैं, अर्थात दस साल बाद दोनों के जीवन को देखते हैं। राम जिसने एक नये कालोनी में जमीन खरीदी थी अब उस पर पाँच मंजिल का मकान तैयार है जिसमें एक मंजिल पर उसका परिवार रहता है और बाकी सभी किराये पर लगे हैं जिससे लगभग राम को 50000 किराया मिलता है साथ ही राम जिस कम्पनी में जोब करता था अब उसी कम्पनी से माल लेकर मार्केट में सप्लाई देता है अर्थात नौकरी को व्यापार में बदल चुका है और लगभग महीने के डेढ़ लाख वहाँ से कमाता है साथ ही अपने पैसों को उसने और कई जगहों पर निवेश कर रखा है जहाँ से उसके पास अच्छा ब्याज आ जाता है, इस कुल मिलाकर राम की महीने की कमाई लगभग ढ़ाई लाख है और अभी भी वह धीरे-धीरे और आगे ही बढ़ता ही चला जा रहा है।
ऊधर श्याम की सैलरी इस समय लगभग 70000 है, उसके पास एक बेटा भी है जिन्दगी वैसे ही चल रही है मकान की ईएमआई अभी भी हर महीने जा रही है क्योंकि उसकी अवधि 20 साल की थी इसलिये अभी दस साल और वे भरने ही हैं, हाँ मकान की कीमत तो उनकी भी बढ़ी है लेकिन वे तब भी उसमें रह रहे थे और आज भी उसमें रह रहे हैं लेकिन वे उससे कोई कमाई नहीं कर सकते हैं।
लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है, क्योंकि 70000 रुपये कोई कम थोड़े ही होते हैं और इस बात का घमन्ड तो श्याम की पत्नी को आज भी है कि मेरे पति तो कम्प्यूटर इंजीनियर हैं मै किसी से कम थोड़े ही हूँ और किसी के सामने हाथ थोड़े ही फैला रही हूँ। अहंकार के रथ पर सवार जिंदगी जिये चली जा रही है।
साहेब वक्त बड़ा बेदर्द होता है, या यूँ भी कह सकते हैं कि उसके पास सबका हिसाब-किताब होता है और जब उसका मन करता है तो वह आपके सामने अपना बहीखाता लेकर खड़ा हो जाता है कि भाई साहेब अब तो आप अपना हिसाब दे ही दो, और वही होता है।
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मार्च 2020 पूरी दुनियाँ में दहशत का माहौल था, क्योंकि एक नई मुसीबत जिसका नाम कोरोना था, बीमारी का रूप लेकर अपना तांडव दिखा रहा था और उसी की वजह से भारत में भी 21 दिन का लॉकडाउन लग जाता है और धीरे-धीरे यह लगभग दो महीने तक बढ़ जाता है जिसकी वजह से लाखों लोगो की नौकरियाँ चली जाती हैं जिसमे एक नाम और होता है वह है हमारे कहानी का श्याम और इस घटना ने श्याम को पूरी तरह से डिस्टर्ब कर दिया।
दो महीने के लॉकडाउन में ही श्याम को दिन में तारे नज़र आने लगे, क्योंकि उसकी नौकरी चली गयी थी बचत के नाम से तो साहेब को पहले से ही चिढ़ थी उनके इस काम में उनकी पत्नी उनसे भी चार हाथ आगे थी ऊपर से मकान की ईएमआई, क्रेडिट कार्ड की ईएमआई साथ ही इधर-उधर का भी लेन-देन। साहेब जिसकी आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया होता है तो उसका हाल ऐसा ही होता है जबकि देखा जाए तो 70000 रूपये कोई कम भी नहीं होते लेकिन साहेब शौक बड़ी चीज है, और अब है तो है।
अब श्याम को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, कि आखिर वह क्या करे क्योंकि नई नौकरी ढूंढने पर एक तो मिल नहीं रही थी और अगर कहीं मिल भी रही थी तो सैलरी पहले वाली से आधी जिसमे उनका खर्च चलना मुश्किल था क्योंकि वे तो 70000 में भी कर्ज में थे तो अब 35000 की नौकरी उन्हें भला कैसे राश आती इन्ही उधेड़ बुन के बीच एक दिन श्याम को अपने बड़े भाई राम की याद आती है और वह अपनी बीबी से कहता है कि इस बुरी परिस्थिति में हमें भैया राम से मदद माँगनी चाहिए शायद वे हमें कुछ पैसे उधार दे दें। इस बात पर पहले तो श्याम की पत्नी सहमत नहीं थी क्योंकि उसका अहंकार आड़े आ रहा था लेकिन मरता क्या न करता और कोई चारा भी तो नहीं था और वह मान जाती है।
साहेब जब वक्त अपनी बाजी खेलता है तो अच्छे-अच्छे खिलाडी भी मात खा जाते हैं वही श्याम की पत्नी जो अपने जेठ-जेठानी का मजाक उड़ाती थी क्योंकि उनकी आमदनी श्याम से आधी थी और आज वे उन्ही से मदद की आस लेकर उनके दरवाजे पर जाने वाली हैं। चलो देखते हैं कि अब आगे क्या होता है।
श्याम और उसकी पत्नी एक दिन राम के घर जाते हैं, और उनसे माफ़ी माँगते हैं और अपनी सारी समस्या उन्हें बताते हैं इस पर राम ने धीरज धराते हुए हिम्मत न हारने की सलाह देते हुए उन्हें 1 लाख रूपये की मदद की साथ ही श्याम को यह भी समझाया कि वह अभी जितने की भी नौकरी मिल रही है उसे पकड़ ले नहीं तो उनकी समस्या आगे और भी बढ़ सकती है क्योंकि कुछ भी न आने से बेहतर है कि कुछ तो आये बाकी धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा और साथ में राम ने श्याम से यह भी कहा कि अभी भी वक्त है पैसों की कीमत को समझना शुरू कर दो और इन हाल की परिस्थितियों से किसी तरह निपटते हुए खुद को भविष्य में मजबूत बनाने के लिए तुम्हें चार पैसे कैसे भी हों बचाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि आगे फिर ऐसे हालत ना आयें।
इस पर श्याम राम के सामने शर्मिंदगी पेश करते हुए, आगे से पैसों की कीमत को समझने और उसे बचाने का वचन देकर वहाँ से विदा लेता है और अपनी बीबी को भी पैसों के महत्व के बारे में सोचने और समझने के लिए कहता है।
दोस्तों, ये क्या हुआ, और कैसे हुआ, आज से 10 साल पहले दोनों की औकात में डबल का फर्क था लेकिन 10 साल में ऐसा क्या हुआ कि सारी की सारी बाजी ही पलट गयी और 15000 रूपये कमाने वाला आज लगभग ढ़ाई लाख रूपये महीने कमाता है और जो उस समय 30000 रूपये महीना कमाता था वह आज 70000 और परिस्थितियाँ ऐसी भी बन गयी कि 35000 रूपये की नौकरी पकड़ने के लिए बेबस होना पड़ रहा है।
देखा जाए तो सारा का सारा खेल सिर्फ पैसों की समझ का है, और इसके पीछे का जो सबसे बड़ा कारण है वह है पैसों के प्रति नज़रिये का क्योंकि राम बड़ा भाई था वह अपने पिता जी के करीब भी था और घर की सभी मुसीबतों को भी उसने करीब से देखा था और बचपन से ही उसमे काम करने और पैसों के महत्व के बारे में जागरूकता आ गयी थी इसलिये वह पैसों की क़द्र करता था और श्याम इन सबसे से दूर घर से बाहर हॉस्टल में पढ़ता था उसे यह नहीं पता कि उसके पिता और बड़े भाई ने उसे कैसे-कैसे पढ़ाया था वह इन बातों से बिलकुल अनजान था और पढ़ाई पूरी करते ही उसकी अच्छी नौकरी लग गयी और वह उड़ने लगा और शादी के बाद उसकी पत्नी भी उसी कैटेगेरी की मिल गयी। वे दोनों हवा में उड़ने लगे और कभी भी पैसों की क़द्र नहीं की इसलिए कोरोना काल में उनके सामने ऐसी समस्या आयी।
वैसे देखा जाए तो कोरोना काल लोगों के लिए एक सबक बनकर आया, और खासकर श्याम जैसे लोगों के लिए तो यह एक राम बाण इलाज है क्योंकि इससे जो सीख मिली है वो शायद ही कभी किसी से मिल पाती तो देखा जाए तो कोरोना काल की जो अवधि रही है वो तकलीफों से भरी तो रही ही लेकिन हम सभी को एक बहुत ही अच्छा पाठ पढ़ा गयी कि हमें अपनी कमाई का कुछ हिस्सा किसी भी तरह से कैसे भी ऐसी परिस्थितियों से लड़ने के लिए एक कोने में जमा करनी चाहिए ताकि हमें श्याम की तरह बेबसी और लाचारी का सामना ना करना पड़े।
दोस्तों, मनुष्य की इच्छायें अनंत हैं, इसका कोई अंत नहीं है, लेकिन हमें इस पर काबू रख कर अपनी कमाई और परिस्थितियों को देखते हुए ही काम करना चाहिए और जहाँ पर जरुरत ना हो वहाँ पर फिजूल खर्ची से बचने की कोशिश करनी चाहिए और किसी भी तरह भविष्य के लिए चार पैसे जोड़कर रखना चाहिए पता नहीं कब कौन सी समस्या हमारे जीवन में अचानक हमारे सामने आकर खड़ा हो जाए कुछ पता नहीं है।
एक कहावत है कि, “बूंद-बूंद से भरता सागर आप भी देखो पैसे बचाकर” अगर आप पैसों को महत्व देंगे तो वही पैसा एक दिन आपको महत्वपूर्ण बना देगा इसमें कोई शक नहीं है, हाँ एक बात तो है कि इसके लिए आपको थोड़ा सा कठिन बनना पड़ेगा क्योंकि जब आप पैसे बचाने के लिए कोशिश करेंगे तो लोग आपके पीठ पीछे आपकी बुराई भी करेंगे लेकिन यकीन मानिये जब आप पैसे वाले बन जाएंगे तो वही लोग आपकी तीमारदारी भी करने लगेंगे और आपके आगे-पीछे घूमने लगेंगे क्योंकि “अगर आप के पास हैं पैसे तो सभी पूछेंगे कि आप हैं कैसे”।
दोस्तों, हम सभी जो कोई भी काम करते हैं, चाहे नौकरी हो या फिर व्यापार उससे हम जो भी पैसे कमाते हैं उसे हम कई जगहों पर खर्च करते हैं जैसे – परिवार, समाज, रिस्तेदार आदि इनके अलावा भी बहुत सारे खर्चे होते हैं इन्हें हम एक गड्ढे के रूप में मान सकते हैं कि हम जब अपनी कमाई घर लेकर आते हैं तो हमें इन गड्ढों से होकर गुज़ारना पड़ता है और प्रत्येक गड्ढे में हमें हर महीने कुछ न कुछ रकम डालनी पड़ती है और जब हम आखिर में अपनी जेब टटोलते हैं तो पाते हैं कि हमारे पास उतनी ही रकम बची है जिनसे अभी हमें पूरे महीने का खर्च चलाना है।
अगर आप अपने भविष्य के लिए वाकई में सीरियस हैं, तो आपको एक और गड्ढा खोदना होगा जिसे बचत वाला गड्ढा कहते हैं और आपको एक संकल्प भी लेना होगा कि मै अपनी कमाई का 20% हर महीने सबसे पहले इसी गड्ढे में डालूंगा, अगर आप वाकई में ऐसा कर लेते हैं तो यकीन मानिये बाकी के बचे गड्ढे अपने आप एडजस्ट कर लेंगे आपको बस एक बार शुरुआत करनी है बाकी का काम अपने आप होता चला जाएगा।
आप सोच रहे होंगे कि ये गड्ढा क्या बला है, तो साहेब ये है आपकी बचत की आदत और इसे आपको अपने रोज़ाना की आदत में शामिल करना होगा इसका परिणाम आपको महीने में दिखना शुरू हो जाएगा और कई साल बाद जब आप इस गड्ढे में देखेंगे तो आपको एक बड़ी रकम दिखाई देगी जो आपके अंदर के आत्मविश्वास को बढ़ायेगी और आपको सामान्य से बेहतर बनायेगी।
बचत के गड्ढे कुछ इस प्रकार के होते हैं :
- घर में रखा हुआ गुल्लक
- मोहल्ले में चल रही कमेटी
- बैंक में सेविंग या आर डी जमा खाता
- भारतीय जीवन बीमा पालिसी
- म्यूच्यूअल फण्ड या शेयर बाजार में निवेश
- व्यापारिक गतिविधियों में निवेश
- प्रॉपर्टी बाजार में निवेश
- ब्याज में निवेश
- शिक्षा में निवेश
- सीखने में निवेश
दोस्तों, ऊपर दिए गए जो 10 गड्ढे हैं, इनमे से जितने ज्यादा गड्ढे आप खोद कर भर सकते हैं उतने ही ज्यादा पैसे आप जीवन में बचा सकते हैं और आखिरी के दो गड्ढे तो ऐसे हैं कि अगर आप इनको सही समय पर खोद कर भर लेते हैं तो बाकी के तो अपने आप भरते चले जाएंगे तो सोच क्या रहे हैं ज्यादा नहीं तो एक या दो गड्ढे तो आज आप खोदेंगे ही मुझे इसकी उम्मीद है और जब तक आप गड्ढा खोदेंगे नहीं तब तक भरने का तो सवाल ही नहीं उठता, इसलिए आप आज और अभी आगे बढ़िये मेरी शुभकामनायें आप के साथ है।
आशा करता हूँ कि, यह आर्टिकल आपको पैसों के बारे में कुछ सीख देने में मददगार रहा होगा तो सोच क्या रहे हैं आज से ही आप भी अपने भविष्य के कोटे को सुरक्षित बनाते हुए अपने कमाई मे से एक छोटा सा ही सही पर बचत का कोटा तैयार करें और अपने और अपने परिवार की सुरक्षा को गारंटी प्रदान करें।
मित्रों, अगर यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा हो, तो प्लीज…..प्लीज…..प्लीज Like करें, अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ सोशल मीडिया पर Share करें और अगर कुछ कहना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में Comment करें।
Thanking You……….धन्यवाद………..शुक्रिया………..मेहरबानी…………जय हिन्द – जय भारत
आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com
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