बुद्ध अवतार भगवान विष्णु का नौवां अवतार होता है, इस अवतार में भगवान बुद्ध ने संसार को सत्य, ज्ञान और शांति का मार्ग दिखाया है, और मनुष्यों को अहिंसा के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया, भगवान बुद्ध के शिक्षाओं से प्रभावित होने के कारण ही पृथ्वी पर बौद्ध धर्म की स्थापना हुई, आइये इस आर्टिकल के माध्यम से भगवान नारायण के इस अवतार के बारे में गहराई से जानते हैं > बुद्ध अवतार (भगवान विष्णु का नौवां अवतार)
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बुद्ध अवतार | भगवान विष्णु का नौवां अवतार
गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 और 8 में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि…..
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। (7)
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (8)
भावार्थ
हे भरतवंशी, जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है तब तब मै अवतार लेता हूँ।
हे अर्जुन, भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ।
भक्तों, गीता का यह श्लोक हालाँकि महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, लेकिन इससे पहले भी विष्णु भगवान ने यह श्लोक बहुत बार बोला है, विष्णु पुराण में भगवान ने कहा है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म धर्म पर हावी होने लगेगा तब-तब मै अवतार लूंगा और धर्म की रक्षा करूँगा।
अपने इसी प्रण को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने पहला अवतार मत्स्य का अर्थात मछली का, दूसरा अवतार कूर्म अर्थात कछुए का, तीसरा अवतार वराह अर्थात (शरीर मानव का+सिर सूअर का) चौथा अवतार नरसिंह अर्थात (शरीर मानव+सिर शेर का) तथा पाँचवाँ अवतार वामन अवतार जो पूर्ण मानव रूप में लेते हैं, जिसके बारे में हमने इससे पहले के आर्टिकल में आपको बताया है, इसके बाद भगवान पृथ्वी की रक्षा के लिए अपना छठवाँ अवतार परशुराम अवतार लेते हैं जिसके बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं, तो आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम अवतार के बारे में….
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भगवान विष्णु ने बुद्ध अवतार क्यों लिया ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है जब राक्षसों की शक्ति काफी बढ़ गई थी, जिसके कारण उन्होंने देवताओं को पराजित करके उनके निवास स्थान स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था, परिणामतः देवतागण निराश होकर भगवान विष्णु के शरण में गए तब विष्णु भगवान ने देवताओं की रक्षा के लिए पृथ्वी पर बुद्ध अवतार लिया।
बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध की जयंती बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं, जो कि प्रत्येक वर्ष वैशाख पूर्णिमा के दिन इसे मनाया जाता है, इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं और दान-दक्षिणा भी बाँटते हैं।
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गौतम बुद्ध की पूरी कहानी
गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी (जो कि शाक्यगण की राजधानी कपिलवस्तु के निकट है) में 483 ईस्वी पूर्व शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन के यहाँ हुआ था, उनका नाम गौतम बुद्ध बाद में पड़ा, जन्म के समय उनका नाम सिद्धार्थ था, उनके जन्म केर सिर्फ सात दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था, सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी मौसी ने किया था।
सिद्धार्थ के जन्म के पहले ही एक ऋषि ने उनके बारे में भविष्यवाणी कर दी थी कि ये बच्चा आने वाले समय में एक बहुत बड़ा सम्राट या फिर महान ऋषि बनेगा, और इसी बात के डर से उनके पिता उन्हें राजमहल के अंदर ही रखते थे, राजमहल की सीमा के अंदर ही उन्हें राज-विलासिता भरा जीवन से लेकर सभी मनोरंजन के साधन तथा ब्राह्मणों द्वारा ज्ञान, युद्धकला की निपुणता आदि के बारे में प्रशिक्षित किया गया।
सिद्धार्थ का बहुत ही कम उम्र में राजकुमारी यशोधरा से विवाह संपन्न हो गया, उन दोनों से एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम राहुल था, सिद्धार्थ बचपन से ही बहुत ही दयालु किश्म के इंसान थे, वे किसी का भी दुःख-दर्द सहन नहीं कर पाते थे।
एक दिन की बात है, उस समय सिद्धार्थ की उम्र 21 वर्ष थी, जब वे अपने राज्य के क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे, और भ्रमण के दौरान ही उनकी दृष्टि कुछ 4 लोगों पर पड़ती है, जिनमें पहला एक वृद्ध विकलांग व्यक्ति, दूसरा एक रोगी, तीसरा एक मृत्यु शरीर और चौथा एक सन्यासी।
जिन्हें देखकर वे समझ गए कि इस संसार में जिसने भी जन्म लिया है, वह बूढ़ा भी होगा, उसे बीमारी भी होगी और एक दिन उसकी मृत्यु भी हो जाएगी, और यही बात उनके दिमाग में कुछ इस तरह घर कर जाती है कि वे सोचने पर मजबूर हो जाते हैं।
अब सिद्धार्थ के मन में उन चारों दृश्यों से सम्बंधित सवाल उन्हें बार-बार परेशान कर रहे थे और उन्हीं सवालों का जबाब ढूंढने के लिए वे अपना राजसी जीवन और पत्नी-बेटे को छोड़कर सन्यासी जीवन को अपनाते हुए जन्म, बुढ़ापा, बीमारी और मृत्यु से जुड़े सवालों की खोज में निकल पड़ते हैं, और यहीं से शुरू होती है उनके जीवन की एक अनोखी यात्रा जो उन्हें सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध की तरफ लेकर जाती है।
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सिद्धार्थ कैसे बने गौतम बुद्ध ?
सिद्धार्थ ने जिन चार दृश्यों को देखा उनमें सबसे ज्यादा मृत्यु के सवाल ने उनके दिमाग को प्रभावित किया क्योंकि जब उनके सामने से एक इंसान की अर्थी जा रही थी तो उन्होंने देखा कि उसके घर वाले उस इंसान की मृत्यु पर बहुत ही गहरा शोक प्रकट कर रहे थे, उसके बाद सिद्धर्थ ने एक सन्यासी को देखा जो कि संसार के सभी दुखों तथा बंधनों से मुक्त अपने-आप में मस्त हुआ भ्रमण कर रहा था।
सिद्धार्थ द्वारा देखे गए सभी दृश्यों ने उन्हें विचलित होने पर विवश कर दिया था, लेकिन जब उन्होंने उस सन्यासी को देखा जो संसार के सभी दुखों से परे अपने-आप में मस्त हुआ भ्रमण कर रहा था तो उन्हें बहुत ही शांति का अनुभव महसूस हुआ, परिणामतः उन्होंने भी सन्यासी बनने का निर्णय लिया और अपना सारा राज-पाट और परिवार छोड़कर वे शांति पथ की ओर सन्यासी बनने की राह पर और सत्य की खोज में निकल पड़े।
गृहत्याग के पश्चात् उन्होंने 7 दिन तक अनुपीय नामक गांव में बिताये, तत्पश्चात वे एक गुरु की खोज करते हुए मगध की राजधानी पहुंचे जहाँ वे कुछ दिन तक ‘आलार कालाम’ नामक एक तपस्वी के पास रहे, उसके बाद वे कुछ दिनों तक एक आचार्य के पास भी रहे, लेकिन उन्हें कहीं भी शांति नहीं मिली।
सिद्धार्थ ने जिस कारण से अपना सब-कुछ त्याग कर सन्यासी जीवन अपनाया था वह था सत्य और ज्ञान की खोज जिससे इंसान को शांति की प्राप्ति होती है, लेकिन अभी तक सिद्धार्थ को वह सब नहीं मिल पाया था, परिणामतः उन्होंने यह निर्णय लिया कि अब वे स्वयं से ही इसे प्राप्त करने का प्रयास करेंगे, जिसके लिए उन्होंने स्वयं ही तपस्या करनी शुरू कर दी।
सिद्धार्थ द्वारा किये गए कठिन तपस्या के कारण उनके शरीर पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा था, लेकिन उन्हें अभी तक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकी थी, तत्पश्चात वे भ्रमण करते हुए एक दिन गया के उरुवेला के निकट निरंजना (फल्गु) नदी के तट पर पहुंचे और वहीँ पर एक पीपल के पेड़ के नीचे स्थिर मुद्रा में समाधी लगाकर बैठ गए।
लगभग छः वर्षों तक वे उसी स्थान पर समाधिस्थ बने रहे, तत्पश्चात जब उनकी आंख खुली तो उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, वह दिन वैशाख पूर्णिमा का दिन था, वह स्थान बोध गया था और वह पीपल का पेड़ बोधि वृक्ष था, और राजकुमार सिद्धार्थ अब महात्मा गौतम बुद्ध बन चुके थे।
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गौतम बुद्ध के उपदेश
जब राजकुमार सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे महात्मा गौतम बुद्ध बन गए तो उन्होंने लोगों में ज्ञान का उपदेश देना शुरू किया, गौतम बुद्ध के विचार जो कि मानव जीवन को मूल्यवान बनाने में सार्थक हैं, उनमें से मुख्यतः 10 अनमोल विचार निम्नलिखित हैं…..
- मनुष्य को अतीत के बारे में नहीं सोचना चाहिए, और न ही भविष्य की चिंता करनी चाहिए। हमें अपने वर्तमान समय पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि यही ख़ुशी का मार्ग है।
- मनुष्य को अपने शरीर को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। क्योंकि अगर शरीर स्वस्थ नहीं है तो आपकी सोच और मन भी स्वस्थ और स्पष्ट नहीं होंगे।
- संसार के सभी गलत कार्य इंसान के मन में ही जन्म लेते हैं। इसलिए अगर इंसान का मन परिवर्तित हो जाए तो मन में गलत कार्य करने का विचार ही जन्म नहीं लेगा।
- किसी से घृणा करने से आपके मन की घृणा ख़त्म नहीं होगी, यह केवल प्रेम से ही ख़त्म किया जा सकता है, वैसे ही बुराई से बुराई ख़त्म नहीं होती, वह भी प्रेम से ही ख़त्म होती है।
- जो लोग जितने भी लोगों से प्यार करते हैं, उतने लोगों से ही वे दुखी भी होते हैं, जो लोग प्रेम के चक्कर में नहीं हैं उनको कोई संकट भी नहीं है।
- एक जंगली जानवर से भी खतरनाक एक कपटी और दुष्ट मित्र होता है, क्योंकि जानवर आपको सिर्फ शारीरिक नुकसान पहुंचाता है, जबकि दुष्ट मित्र आपकी बुद्धि-विवेक को नुकसान पहुंचाता है, ऐसे मित्रों से हमें सावधान रहना चाहिए।
- संदेह और शक की आदत बहुत ही भयानक होता है, इससे रिश्तों में खटास आती है और सम्बन्ध टूट जाते हैं।
- मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए, आपको क्रोध की सजा तो नहीं मिलती बल्कि क्रोध से सजा मिलती है।
- हजारों लड़ाईयां जीतने से अच्छा है कि आप स्वयं पर विजय प्राप्त करो, फिर विजय हमेशा आपकी ही होगी।
- मनुष्य के लिए अपने लक्ष्य को पा लेने से अच्छा है कि उसके लक्ष्य पाने की यात्रा अच्छी हो।
दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही साथ आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय श्री कृष्णा..जय श्री कृष्णा..जय श्री कृष्णा।
लेखक परिचय
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