मुझे कुछ करना है यूँ हीं नहीं मरना है, यूँ हीं नहीं मरना है, यूँ हीं नहीं मरना है, यह एक वाक्य है, यह एक विचार है और यह एक जिद भी है। खैर जो भी है लेकिन एक बात तो है कि जिस भी इंसान के दिमाग में यह विचार या जिद घर कर जाता है वह एक ना एक दिन कुछ ना कुछ कर जाता है। आज के इस आर्टिकल में हम इसी विचार और जिद की ताक़त के बारे में चर्चा करेंगे, तो आइये अब शुरू करते हैं।
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मुझे कुछ करना यूँ हीं नहीं मरना है
दुनियाँ में तीन प्रकार के लोग पाये जाते हैं, पहले श्रेणी में वे लोग आते हैं जो गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जीते हैं, दूसरे वो लोग जो औसत भरा जीवन जीते हैं और तीसरे वे लोग जो अमीरी और बेहतर खुशहाली भरा जीवन जीते हैं जिन्हें हम निम्न-वर्गीय, मध्य-वर्गीय और उच्च-वर्गीय के नाम से जानते हैं।
ज्यादातर लोग इन्हें भाग्य का नाम देते हैं कि ये इसकी किस्मत है, जो जिसके भाग्य में लिखा रहता है वही होता है, और ऐसी ही धारणाओं की वजह से ज्यादातर लोग अपना पूरा जीवन गरीबी और मायूसी में गुज़ार देते हैं लेकिन जिन लोगों के दिमाग में यह बात चलती रहती है कि “मुझे कुछ करना है यूँ हीं नहीं मरना है” ऐसे लोग मुसीबतों की सभी ज़ंजीरों को तोड़ते हुए एक दिन जरूर अपने सपने को साकार करते हैं।
पृथ्वी के सभी जीवों में इंसान के अंदर इतनी क्षमता है कि वह जो सोच सकता है वह कर भी सकता है, प्रकृति कहती कि ये इंसान इस पृथ्वी जो भी है वह सब कुछ तेरे लिये ही तो है बस तुझे उसे प्राप्त करने का साधन ढूँढना है कि वह कहाँ, कब और कैसे मिल सकता है।
इंसान की जो सबसे बड़ी फितरत है वह यह है कि वह पाना तो बहुत कुछ चाहता है लेकिन उसकी कीमत अदा नहीं करना चाहता जबकि यह एक कड़वा सच है कि इस दुनियाँ में इंसान को मुक्त में कुछ भी नहीं मिलता है बल्कि हर चीज की उसे कभी ना कभी किसी ना किसी रूप में कीमत चुकानी ही पड़ती है।
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अमीरी किसी के बाप की जागीर नहीं है हर वह शख्श अमीर बन सकता है जिसके अंदर अमीरी की चाहत होगी लेकिन सामान्य परिस्थितियों में रहकर ही कोई अमीर बनना चाहेगा तो वह मुश्किल होगा बल्कि उसे मुश्किलों का सामना करना सीखना होगा।
इंसान अपने शरीर और दिमाग को जैसा भी चाहे बना सकता है, आलसी, औसत या फिर कर्मठ, और यही तीनों श्रेणियाँ यह तय करती हैं कि इंसान का भविष्य कैसा होगा अर्थात आलस इंसान को गरीबी के कुँवें में ढकेलता है, औसत इंसान जिंदगी भर गोल चक्कर के चक्कर लगते हुए एक दिन दुनियाँ से चला जाता है लेकिन कर्मठ लोग अपनी कर्मठता के दम पर खुद को कामयाबी के शिखर तक ले जाते हैं।
दोस्तों, अब सवाल यह उठता है कि कर्मठ कैसे बनें, तो इसके जबाब में हम आपको बताना चाहेंगे कि कोई ऐसी बात जो आपके दिल को चोट पहुंचाये, किसी के द्वारा आपका मज़ाक उड़ाने पर आपको गुस्सा आ जाए, कहीं आपकी आलोचना हो और आपको उस पर शर्म आ जाए, किसी भी शख्स की शख्सियत आपको उस जैसा बनना सिखाये या फिर कुछ पाने की चाहत आपके अंदर की इच्छा को जगाये।
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यहाँ पर हम उदहारण के तौर पर राम चरित मानस (तुलसी-रामायण) के रचयिता तुलसीदास के जीवन से जुडी एक घटना का जिक्र करना चाहेंगे कि उनके जीवन में ऐसा क्या हुआ था जिसके बाद से वे इतने सिरियस इंसान बन गए कि उन्होंने राम चरित मानस की रचना कर दी।
कहते हैं कि तुलसीदास अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे, उनकी पत्नी का नाम रत्नावली था और वह बहुत ही सुन्दर महिला थी, वे अपनी पत्नी रत्नावली के बिना एक पल भी नहीं रहना चाहते थे। एक समय की बात है उनकी पत्नी अपने मायके गयी हुई थी और रात के समय जब उन्हें अपनी पत्नी की याद सताने लगी तब वे अपने-आप को संभाल नहीं पाए और चल दिए अपने ससुराल की ओर…..
रात के अँधेरे में सुन-सान रास्तों से होकर जब वे नदी किनारे पहुंचे तो नदी पार करने के लिए उन्होंने नदी में तैरते हुए मुर्दे को लकड़ी समझकर उस पर बैठकर नदी को पार कर लिया और जब ससुराल पहुंचे तो लटके हुए सांप को रस्सी समझकर उसे पकड़कर ऊपर चढ़ गए क्योंकि पत्नी के वियोग में उन्हें और कुछ दिख ही नहीं रहा था।
जब उनकी पत्नी रत्नावली को यह सब पता चला तो उसने उनको धिक्कारा कि जितना प्रेम तुम मुझसे करते हो अगर उतना ही प्रेम तुम ईश्वर से कर लो तो तुम्हारा बेड़ापार हो जाए और यह बात उनके दिमाग में घर कर गई परिणामतः वे सन्यासी हो गए और इस घटना के बाद से ही वे भगवान श्री राम के इतने बड़े भक्त हो गए कि पूछो मत…..
कहते हैं कि जहाँ चाह है वहीँ राह है, तुलसीदास के आस्था और समर्पण पर प्रभु श्री राम ने कृपा की और राम भक्त हनुमान को माध्यम बनाया परिणामतः तुलसीदास ने राम चरित मानस की रचना कर डाली।
दोस्तों, सारा खेल इस बात का है कि हमारे दिमाग में क्या है और हम क्या चाहते हैं…..हम जहाँ भी चाहें पहुँच सकते हैं और जो भी चाहे कर सकते हैं, अगर हम अपने दिमाग में इस विचार या जिद को पाल लें कि “मुझे कुछ करना है यूँ हीं नहीं मरना है” तो सब कुछ मुमकिन है।
दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय हिन्द-जय भारत।
लेखक परिचय
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