चाणक्य नीति अध्याय-12 | चाणक्य के 19 अनमोल विचार > पंडित आचार्य चाणक्य के विचार वाकई में हैं बड़े दमदार, जिसने भी इसे पढ़ा और फॉलो किया उसका बेहतर हुआ संसार, क्योंकि इसमें भरा है ज्ञान का भंडार। इसलिए बने रहिएगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ और सिर्फ पंडित चाणक्य के दमदार विचारों पर बात।
चाणक्य नीति अध्याय-12
विचार : 1 >
आचार चाणक्य कहते है कि जिस गृहस्थ के घर में निरंतर उत्सव-यज्ञ, पाठ और कीर्तन आदि होता रहता है। संतान सुशिक्षित होती है, स्त्री मधुरभाषिणी होती है, पर्याप्त धन होता है, सेवक आज्ञाकारी होता है, अतिथियों का सम्मान होता है, महात्मा पुरुषों का आना जाना लगा रहता है, ऐसा व्यक्ति अत्यंत सौभाग्यशाली एवं धन्य होता है।
विचार : 2 >
चाणक्य के अनुसार, दुखियों और विद्वानों को जो थोड़ा सा भी दान देता है, उसे उसका कई गुना स्वयं मिल जाता हैं।
विचार : 3 >
चाणक्य कहते हैं कि, जो अपने लोगों से प्रेम, परायों पर दया, दुष्टों के साथ सख्ती, सज्जनों से सरलता, मूर्खों से परहेज, विद्वानों का आदर, शत्रुओं के साथ बहादुरी और गुरुजनों का सम्मान करते हैं, जिन्हें स्त्रियों से लगाव नहीं होता, ऐसे लोग महापुरुष कहे जाते हैं और ऐसे लोगों के कारण ही दुनियाँ टिकी हुई है।
विचार : 4
आचार्य जी कहते हैं कि, हाथों से दान नहीं दिया, कानों से ज्ञान नहीं सुना, नेत्रों से किसी साधु के दर्शन नहीं किये, पावों से कभी किसी तीर्थ स्थल पर नहीं गए, अन्याय से कमाए गए धन से पेट भरते हो और घमंड से सिर को तना हुआ रखते हो। अरे गीदड़ इस शरीर को शीघ्र छोड़ दो।
विचार : 5 >
आचार्य जी का कहना है कि, मृदंग वाद्य कि ध्वनि से बहुत अच्छी होती है, मृदंग से आवाज़ निकलती है – धिक्तां जिसका अर्थ है उन्हें धिक्कार है। इसके आगे कवि कल्पना करता है कि जिन लोगों का भगवान श्रीकृष्ण के चरण कमलों में अनुराग नहीं, जिनकी जिव्हा को श्री राधा जी और गोपियों के गुणगान में आनंद नहीं आता, उनका जीवन व्यर्थ है।
विचार : 6 >
चाणक्य कहते हैं कि, यदि करील में पत्ते नहीं आते तो वसंत का क्या दोष, यदि उल्लू दिन में नहीं देखता तो सूर्य का क्या दोष, वर्षा चातक के मुंह में न पड़े तो बादल का क्या दोष, भाग्य ने जो पहले ही ललाट में लिख दिया, उसे कौन मिटा सकता है।
विचार : 7 >
चाणक्य पंडित कहते हैं, सत्संगति से दुष्टों में भी साधुता आ जाती है, किन्तु दुष्टों की संगति से साधुओं में दुष्टता नहीं आती। मिट्टी ही फूलों की सुगंध को धारण कर लेती है, किन्तु फूल मिट्टी की गंध को नहीं अपनाते।
विचार : 8 >
चाणक्य नीति कहती है कि, साधुओं के दर्शन से पुण्य मिलता है। साधु तीर्थों के समान होते हैं। तीर्थों का फल कुछ समय बाद मिलता है, किन्तु साधु समागम तुरंत फल देता है।
चाणक्य नीति अध्याय-12
विचार : 9 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, अरे मित्र ! इस नगर में बड़ा कौन है ? ताड़ के वृक्ष बड़े हैं। दानी कौन है ? धोबी ही यहाँ दानी है, जो सुबह कपड़े ले जाता है और शाम को दे देता है। चतुर व्यक्ति कौन है ? दूसरे का धन तथा स्त्री हरने में सभी चतुर हैं। तब तुम इस नगर में जीवित कैसे रहते हो ? बस गन्दगी के कीड़े के समान जीवित रहता हूँ।
विचार : 10 >
पंडित जी कहते हैं कि, जो घर विप्रों के पैरों के धूल की कीचड़ से नहीं सनते, जिनमें वेद-शास्त्रों की ध्वनि नहीं सुनाई देती एवं यज्ञ की ‘स्वाहा’ स्वधा आदि ध्वनियों का अभाव रहता है, ऐसे घर शमशान के समान होते हैं।
विचार : 11 >
चाणक्य यहाँ व्यक्ति के गुणों को उसका परम हितैषी बताते हुए कहते हैं कि, सत्य मेरी माता है, ज्ञान पिता है, धर्म भाई है, दया मित्र है, शांति पत्नी है तथा क्षमा पुत्र है, ये छः ही मेरे सगे-सम्बन्धी है।
विचार : 12 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, चौथी अवस्था में भी जो दुष्ट होता है, वह दुष्ट ही रहता है, जैसे – अच्छी तरह पक जाने पर भी इन्द्रवारुन का फल मीठा नहीं होता।
विचार : 13 >
आचार्य जी कहते हैं कि, जिस प्रकार यजमान से निमंत्रण पाना ही ब्राह्मणों के लिए प्रसन्नता का अवसर होता है, हरी घास का मिल जाना गौओं के लिए प्रसन्नता की बात होती है, इसी प्रकार पति की प्रसन्नता स्त्रियों के लिए उत्सव के समान होती है, परन्तु मेरे लिए तो भीषण रणों में अनुराग ही जीवन की सार्थकता अर्थात उत्सव है।
विचार : 14 >
पंडित जी का कहना है कि, व्यक्ति को चाहिए कि दूसरों की स्त्रियों को माता के समान समझें, दूसरों के धन पर नज़र न रखें, उसे पराया समझें और सभी लोगों को अपनी तरह ही समझें।
विचार : 15 >
चाणक्य का कहना है कि, धर्म में तत्परता, मुख में मधुरता, दान में उत्साह, मित्रों के साथ निष्कपटता, गुरु के प्रति विनम्रता, चित्त में गंभीरता, आचरण में पवित्रता, गुणों के प्रति आदर, शास्त्रों का विशेष ज्ञान, रूप में सुंदरता तथा शिव में भक्ति – ये सब गुण एक साथ हे राघव ! आप में ही है।
विचार : 16 >
चाणक्य कहते हैं कि, कल्पवृक्ष काष्ठ है। सुमेरु पहाड़ है। पारस केवल एक पत्थर है। सूर्य की किरणें तीव्र हैं। चन्द्रमा घटता रहता है। समुद्र खारा है। कामदेव का शरीर नहीं है। बलि दैत्य है। कामधेनु पशु है। हे राम ! मै आपकी तुलना किसी से नहीं कर पा रहा हूँ। आपकी उपमा किससे दी जाए।
चाणक्य नीति अध्याय-12
विचार : 17 >
आचार्य चाणक्य का कथन है कि, व्यक्ति सभी से कुछ-न-कुछ सीख सकता है। उसे राजपुत्रों से विनयशीलता और नम्रता की, पण्डितों से बोलने के उत्तम ढंग की, जुआरियों से असत्य-भाषण के रूप-भेदों की तथा स्त्रियों से छल-कपट की शिक्षा लेनी चाहिए।
विचार : 18 >
आचार्य चाणक्य सोच-समझकर कर्म करने का परामर्श देते हुए कहते हैं कि, बिना सोचे-समझे व्यय करने वाला, अनाथ, झगड़ालू तथा सभी जातियों की स्त्रियों के लिए व्याकुल रहने वाला व्यक्ति शीघ्र नष्ट हो जाता है।
विचार : 19 > आचार्य जी यहाँ पर अल्प बचत का महत्व बताते हुए कहते हैं कि एक-एक बून्द डालने से क्रमशः घड़ा भर जाता है। इसी तरह विद्या, धर्म और धन का भी संचय करना चाहिए।
आशा करता हूँ कि पंडित चाणक्य के ये विचार आपको अच्छे लगे होंगे और कहीं ना कहीं आपके लिए प्रेरणा के श्रोत भी साबित हुए होंगे। अगर आपको लगता है कि इसे और लोगों को भी पढ़ना चाहिए तो इसे लोगों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करें।
धन्यवाद | आपकी अतिकृपा होगी।
आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com