चाणक्य नीति: अध्याय – 7 | आचार्य चाणक्य के 20 सर्वश्रेष्ठ विचार > अब से लगभग 2300 साल पहले इसी चाणक्य नीति ने एक छोटे से बच्चे जिसका नाम चंदू था, उसको चन्द्रगुप्त बनाया था, और उसी चन्द्रगुप्त ने विश्व-विजेता सिकंदर को नाकों चने चबवाया दिया था। इसलिए चाणक्य नीति को हल्के में मत लेना, इसका हर एक विचार तलवार की धार है, क्योंकि इसमें छुपा अद्भुत ज्ञान का भंडार है। तो बने रहियेगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ और सिर्फ अद्भुत ज्ञान की बात।
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चाणक्य नीति: अध्याय – 7
विचार : 1 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, धन का नाश हो जाने पर, मन में दुःख होने पर, पत्नी के गलत चाल-चलन का पता लगने पर, नीच व्यक्ति से कुछ बातें सुन लेने पर तथा स्वयं कहीं से अपमानित होने पर अपने मन की बातों को किसी को भी नहीं बताना चाहिए। यह बहुत ही समझदारी का काम है।
विचार : 2 >
चाणक्य के अनुसार, लज्जा और संकोच सम्बन्धी मामलों में जब कहीं पैसों और खाने-पीने की चीजों का मामला हो, कुछ सीखने और समझने का मामला हो या फिर कोई व्यावहारिक मामला हो तो वहाँ पर बिलकुल भी संकोच ना करें।
विचार : 3 >
चाणक्य का कहना है कि, जो सुख और शान्ति, संतोष और तृप्ति में है वह और कहीं भी नहीं है, खाशकर भौतिक सुखों की खोज या धन के पीछे भागने में तो बिलकुल भी नहीं।
विचार : 4 >
आचार्य जी कहते हैं कि, अपनी स्त्री में संतोष करना चाहिए, चाहे वह सुन्दर हो या औसत या फिर शिक्षित हो या अशिक्षित। व्यक्ति को जो भोजन सामने हो खा लेना चाहिए और जितनी धन-संपत्ति हो उसी में संतुष्टि रखनी चाहिए। यही सच्चे सुख और आनंद का रहस्य है। तभी तो कहा गया है कि संतोषम परम सुखम।
विचार : 5 >
आचार्य के अनुसार, इनसे बचना चाहिए – दो ब्राह्मणों के बीच से, ब्राह्मण और आग के बीच से, मालिक और नौकर के बीच से, पति और पत्नी के बीच से, तथा हल और बैलों के बीच से।
विचार : 6 >
आचार्य जी ने यह भी कहा है कि, आग, गुरु, ब्राह्मण, गाय, कुंवारी कन्या, बूढ़े लोग तथा बच्चों को पांव से नहीं छूना चाहिए। ऐसा करना असभ्यता है। इनको पैर से छूना अपनी मूर्खता प्रकट करना है, क्योंकि ये सभी आदरणीय, पुज्य और प्रिय होते है।
विचार : 7 >
चाणक्य यह भी कहते हैं कि, बैलगाड़ी से पांच हाथ, घोड़े से दस हाथ और हाथी से सौ हाथ दूर रहना चाहिए, किन्तु दुष्ट व्यक्ति से बचने के लिए अगर जरुरत पड़े तो गांव, क्षेत्र या देश भी छोड़ना पड़े तो लिहाज मत करना।
विचार : 8 >
चाणक्य नीति कहती है कि, हाथी को अंकुश से पीटकर वश में किया जाता है, घोड़े को हाथ से पीटा जाता है, गाय, भैंस आदि सींग वाले पशुओं को लाठी से पीटा जाता है, किन्तु दुष्ट व्यक्ति को पीटते समय हाथ में कोई खड्ग या हथियार अवश्य होना चाहिए।
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विचार : 9 >
चाणक्य नीति में यह भी लिखा है कि, ब्राह्मण भोजन से प्रसन्न होते है, मोर बादलों के गरजने से आनंदित हो उठते है, सज्जन लोग दूसरे की सम्पन्नता से सुखी होते हैं, किन्तु दुष्ट तो दूसरों को परेशानी में देखकर खुश होते हैं।
विचार : 10 >
चाणक्य ने यह भी कहा है कि, ताक़तवर दुश्मन को उसके अनुकूल चलकर, दुष्ट को उसके प्रतिकूल चलकर, तथा बराबर वाले दुश्मन को विनय से या बल से वश में करना चाहिए।
विचार : 11 >
चाणक्य के अनुसार, जिसके भुजाओं में बल हो वह राजा बलवान होता है, ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण बलवान माना जाता है, सुंदरता, यौवन और मधुरता ही स्त्रियों का बल है।
विचार : 12 >
आचार्य जी ने कहा है कि, इंसान को ज्यादा सीधा नहीं होना चाहिए, जैसे – सीधे पेड़ को काट दिया जाता है, सीधे गन्ने को कोल्हू में पेरा जाता है, बिलुकल उसी तरह सीधे इंसान का लोग भरपूर इस्तेमाल करते हैं।
विचार : 13 >
आचार्य जी यह भी कहते हैं कि, जिस तालाब में पानी पर्याप्त होता है, हंस वहीं निवास करते है, जब उसमे पानी कम हो जाता है तो वे उसे छोड़ जाते है, लेकिन फिर पानी पर्याप्त होने पर दुबारा वापिस आ जाते है, लेकिन इंसान को ऐसा नहीं करना चाहिए, उसे जिसका आश्रय एक बार मिले उसे नहीं छोड़ना चाहिए और अगर छोड़ता है तो दुबारा वापिस नहीं आना चाहिए।
विचार : 14 >
आचार्य ने यह भी कहा है कि, तालाब के जल को स्वच्छ रखने के लिए उसका बहते रहना आवश्यक है, इसी प्रकार अर्जित धन का त्याग करते रहना ही उसकी रक्षा है।
विचार : 15 >
चाणक्य यह भी तो कहते हैं कि, दान देने में रूचि, मधुर वाणी, देवताओं की पूजा तथा ब्राह्मणों को संतुष्ट रखना, इन चार लक्षणों वाला व्यक्ति इस लोक में कोई स्वर्ग की आत्मा होता है।
विचार : 16 >
चाणक्य का कहना है कि, अत्यन्त क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से वैर, नीच लोगों का साथ, कुलहीन की सेवा – नरक की आत्माओं के यही लक्षण होते हैं।
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विचार : 17 >
आचार्य जी के अनुसार, शेर की गुफा में जाने पर व्यक्ति को हाथी की खोपड़ी का मोती मिलता है, जबकि वही व्यक्ति गीदड़ की मांद में जाता है, तो वहाँ उसे बछड़े की पूंछ या गधे के चमड़े का टुकड़ा ही मिल सकता है, कहने का तात्पर्य यह है कि यदि व्यक्ति महान लोगों का साथ करता है तो उसे ज्ञान की बातें सीखने को मिलती है, जबकि नीच-दुष्टों की संगत में केवल दुष्टता ही सीखी जा सकती है। इसलिए सज्जनों का ही साथ करना चाहिए।
विचार : 18 >
चाणक्य ने कहा है कि, जिस प्रकार कुत्ते की पूँछ से न तो उसके गुप्त अंग छिपते है और न वह मच्छरों को काटने से रोक सकती है, इसी प्रकार विद्या से रहित जीवन भी व्यर्थ है। क्योंकि विद्याविहीन मनुष्य मुर्ख होने के कारण न अपनी रक्षा कर सकता है न अपना भरण-पोषण।
विचार : 19 >
चाणक्य ने यह भी कहा है कि, मन, वाणी को पवित्र रखना, इन्द्रियों का निग्रह, सभी प्राणियों पर दया करना और दूसरों का उपकार करना सबसे बड़ी शुद्धता है।
विचार : 20 >
आचार्य चाणक्य कहते है कि, पुष्प में गंध, तिलों में तेल, काष्ठ में अग्नि, दूध में घी तथा इच्छु में गुड़ की तरह विवेक से देह में आत्मा को देखो।
दोस्तों, आशा करता हूँ कि आचार्य चाणक्य के ये सर्वश्रेष्ठ विचार आपके जीवन में क्रन्तिकारी परिवर्तन लायेंगे और आपको सामान्य से बेहतर बनायेंगे, साथ में यह भी कहना चाहूंगा कि अगर आपको लगता कि ये विचार वाकई में दमदार हैं और अन्य लोगों को भी इन्हें पढ़ना चाहिए तो इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ Facebook, Whatsapp, Instagram, Twitter आदि पर Share करें, Like करें, Comment करें।
आपकी अति कृपा होगी | धन्यवाद | शुक्रिया | मेहरबानी | जय हिन्द – जय भारत
आपका दोस्त / शुभ चिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com