चाणक्य नीति: अध्याय – 6 | आचार्य चाणक्य के 21 सर्वश्रेष्ठ विचार > आचार्य चाणक्य के विचार जीवन के हर एक उन महत्वपूर्ण पहलुओं से सम्बन्ध रखते हैं जो मानव जीवन से जुड़े हुए हैं जैसे – आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक आदि। इन्हें पढ़ने के बाद एक बात तो तय है कि आप पहले जैसे बिलकुल भी नहीं रह जाएंगे, क्योंकि चाणक्य नीति है ही ऐसा विषय जिसे पढ़ने पर आपके दिमाग में हलचल पैदा होना स्वाभाविक बात है। तो बने रहियेगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ आचार्य चाणक्य के सर्वश्रेष्ठ विचारों पर बात।
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चाणक्य नीति: अध्याय – 6
विचार : 1 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, सुनना बहुत जरुरी है क्योंकि सुनकर ही व्यक्ति को अपने धर्म का ज्ञान होता है, सुनकर ही व्यक्ति दुर्बुद्धि का त्याग करता है, सुनकर ही व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति होती है तथा सुनकर ही व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है।
विचार : 2 >
चाणक्य के अनुसार, पक्षियों में कौवा, पशुओं मे कुत्ता, मुनियों में पापी तथा निंदक सभी प्राणियों में चांडाल होता है।
विचार : 3 >
चाणक्य यह भी कहते हैं, कांसा भस्म से शुद्ध होता है, तांबा अम्ल से शुद्ध होता है, नारी रजस्वला से शुद्ध होती है तथा नदी अपने वेग से शुद्ध होती है।
विचार : 4 >
चाणक्य नीति भ्रमण के महत्व के बारे में बताती है कि, भ्रमण करता हुआ राजा पूजा जाता है, भ्रमण करता हुआ ब्राह्मण पूजा जाता है, भ्रमण करता हुआ योगी पूजा जाता है लेकिन भ्रमण करती हुई स्त्री नष्ट हो जाती है।
विचार : 5 >
चाणक्य नीति में यह भी लिखा है कि, जिस व्यक्ति के पास पैसा है लोग स्वतः ही उसके मित्र बन जाते है, सगे- सम्बन्धी भी उससे करीबी बनाकर रखते है, जो धनवान है उसी को आज के युग में विद्वान और सम्मानित व्यक्ति माना जाता है, धनवान व्यक्ति को ही विद्वान और ज्ञानवान समझा जाता है।
विचार : 6 >
आचार्य जी कहते है कि, मनुष्य जैसा भाग्य लेकर आता है उसकी बुद्धि भी उसी के समान बन जाती है, कार्य-व्यापार भी उसी के अनुरूप मिलता है, उसके साथी-संगी भी उसके भाग्य के ही अनुरूप ही होते हैं तथा उसके जीवन के समस्त क्रिया-कलाप उसके भाग्य के ही अनुरूप होते है।
विचार : 7 >
आचार्य जी ने यह भी कहा है कि, काल प्रबल होता है, क्योंकि काल ही प्राणियों को निगल जाता है, काल सृष्टि का विनाश कर देता है, यह प्राणियों के सो जाने पर भी उनमे विद्यमान होता है, इसका कोई भी अतिक्रमण नहीं कर सकता।
विचार : 8 >
आचार्य जी के ही यह भी विचार हैं कि, जन्मान्ध कुछ भी नहीं देख सकता, ऐसे ही कामान्ध और नशे में पागल बना व्यक्ति भी कुछ नहीं देखता, स्वार्थी व्यक्ति भी किसी में कोई दोष नहीं देखता।
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चाणक्य नीति: अध्याय – 6
विचार : 9 >
चाणक्य के अनुसार, प्राणी स्वयं कर्म करता है और उसके फल को भोगता है, स्वयं संसार में भटकता है और स्वयं ही मुक्त हो जाता है।
विचार : 10 >
चाणक्य जी का ही कथन है कि, राष्ट्र द्वारा किये गए पाप को राजा भोगता है, राजा के पाप को उसका पुरोहित भोगता है, पत्नी के पाप को पति भोगता है तथा शिष्य के पाप को गुरु भोगता है।
विचार : 11 >
चाणक्य ने यह भी कहा है कि, कर्जा करने वाला पिता शत्रु के समान है, व्यभिचारिणी माँ शत्रु के समान है, रूपवती पत्नी तथा मूर्ख पुत्र भी किसी शत्रु से कम नहीं हैं।
विचार : 12 >
आचार्य जी कहते है कि, लालची व्यक्ति को धन का लालच देकर वश में करना चाहिए, अहंकारी को हाथ जोड़कर वश में करना चाहिए, मुर्ख को उपदेश देकर वश में करना चाहिए और पंडित को यथार्थ बात बताकर वश में करना चाहिए।
विचार : 13 >
चाणक्य नीति में यह भी लिखा है कि, दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा कैसे खुश रह सकती है, दुष्ट मित्र से आनंद कैसे मिल सकता है, दुष्ट पत्नी से घर में सुख कैसे हो सकता है तथा दुष्ट -मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से यश कैसे मिल सकता है।
विचार : 14 >
चाणक्य नीति यह भी तो कहती है कि, सीख किसी से भी ले लें, जैसे – सिंह से एक, बगुले से एक, मुर्गे से चार, कौवे से पांच, कुत्ते से छः तथा गधे से तीन बातें सीखनी चाहिए।
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चाणक्य नीति: अध्याय – 6
विचार : 15 >
आचार्य जी कहते हैं कि, शेर से सीख लेने से तात्पर्य है कि, छोटा हो या बड़ा, जो भी काम करना हो उसमे अपनी पूरी ताक़त झोंक दें, यह गुण शेर में होती है और हमें इसे फॉलो करना चाहिए।
विचार : 16 >
आचार्य जी कहते हैं कि, बगुले से सीख लेने से मतलब है जैसे – बगुला सब कुछ भूलकर मछली को हो देखता रहता है और मौका लगते ही उसे झपट लेता है, मनुष्य को भी काम करते समय अन्य सभी बातों को भूलकर केवल देश, काल और बल का विचार करना चाहिए।
विचार : 17 >
आचार्य जी मुर्गे से सीखने योग्य चार बातों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि, समय पर जागना, लड़ना, भाइयों को भगा देना और उनका हिस्सा स्वयं झपटकर खा जाना, ये चार बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए।
विचार : 18 >
आचार्य जी कौवे से पांच बातें सीखने पर जोर देते हुए कहते हैं कि, छिपकर मैथुन करना चाहिए, समय-समय पर संग्रह करना चाहिए, हमेशा सावधान रहना चाहिए, किसी पर भरोसा नहीं करना और आवाज देकर औरों को भी इकठ्ठा कर लेना, ये पांच गुण कौवे से सीखें।
विचार : 19 >
आचार्य जी स्वामिभक्ति की चर्चा करते हुए कुत्ते से छः गुण सीखने की बात करते हैं कि, कुत्ता कितना भी भूखा क्यों ना हो उसे जितना मिल जाए उसी में संतोष कर लेता है, साथ ही उसे जितना खिला दो वह सब खा भी जाता है, थोड़ी ही देर में उसे गहरी नींद आ जाती है, किन्तु गहरी नींद में भी थोड़ी सी आहट होते ही वह जाग भी जाता है, अपने मालिक के साथ पूरी वफादारी निभाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर बहादुरी भी दिखाता है, ये छः गुण कुत्तों से सीखने योग्य हैं।
विचार : 20 >
आचार्य जी गधे से सीखे जाने वाले गुणों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि, श्रेष्ठ और विद्वान व्यक्तियों को चाहिए कि वे गधे से तीन गुण सीखें, जिस प्रकार अत्यधिक थका होने पर भी वह बोझ ढोता रहता है, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति को भी आलस्य न करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति और सिद्धि के लिए सदैव प्रयत्न करना चाहिए, कर्तव्यपथ से कभी विमुख नहीं होना चाहिए, कार्यसिद्धि में ऋतुओं के सर्द और गर्म होने की भी चिंता नहीं करनी चाहिए। जिस प्रकार गधा संतुष्ट होकर जहाँ-तहाँ चर लेता है, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति को भी सदा संतोष रखकर, फल की चिंता किये बिना, यथावत कर्म में प्रवृत्त होना चाहिए।
विचार : 21 >
आचार्य चाणक्य के अनुसार, जो मनुष्य इन 20 गुणों को अपने जीवन में धारण करेगा वह सब कार्यों और अवस्थायों में विजयी होगा। भाव यह है कि 20 गुणों को उन-उन पशुओं से सीखने का अभिप्राय मनुष्य को साहसी, अभिमान रहित और दृढ़निश्चयी बनाता है। साथ ही जीवन में अच्छे गुणों का आदान करता है तथा दुर्गुणों को छोड़कर सत्संकल्प और सत्समाज के निर्माण में योगदान देता है।
दोस्तों, आशा करता हूँ कि आचार्य चाणक्य के ये सर्वश्रेष्ठ विचार आपके दिमाग में कुछ हलचल जरूर पैदा किये होंगे जिसके कारण आप भविष्य में आने वाले कठिनाइयों से लड़ने में अवश्य सक्षम होंगे।
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आज के लिए सिर्फ इतना ही अगले आर्टिकल में हमारी फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए……………….जय हिन्द – जय भारत
आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com