चाणक्य नीति : अध्याय – १ | आचार्य चाणक्य के १३ विचार

चाणक्य नीति : अध्याय – १ > में आचार्य चाणक्य के १३ महत्वपूर्ण विचारों के बारे में आसान शब्दों में बताया गया है, जो भी व्यक्ति इन विचारों को पढ़ते हुये अपने जीवन में इनका पालन करेगा वह जीवन के किसी भी मोड़ पर धोखा नहीं खायेगा साथ ही साथ अपने दिमाग को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करते हुए अपने आप को सामान्य से बेहतर बनायेगा तो बने रहियेगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ चाणक्य नीति की बात….. तो आइये अब शुरू करते हैं।

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चाणक्य नीति : अध्याय - १
चाणक्य नीति : अध्याय – १

चाणक्य नीति : अध्याय – १

चाणक्य का परिचय :

चाणक्य का जन्म ३२५ ईशा पूर्व के काल में चणक नामक आचार्य के घर हुआ था, उन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, वे एक कुशल राजनीतिज्ञ थे, उन्होंने मगध देश के नन्द राजा घनानंद की सत्ता का सर्वनाश करके मौर्य राज्य की स्थापना की थी। चंद्र गुप्त मौर्य चाणक्य के ही शिष्य थे। चाणक्य के जन्म का नाम विष्णुगुप्त था आचार्य चणक के पुत्र होने के कारण उनका नाम चाणक्य पड़ा कुटिल राजनीतिक विशारद होने के कारण उन्हें कौटिल्य के नाम से भी संबोधित किया गया।

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चाणक्य नीति
चाणक्य नीति

चाणक्य नीति :

चाणक्य नीति आचार्य चाणक्य के दिमाग से उपजी हुई वह नीति है जिसे जानने के बाद कोई भी व्यक्ति दिमागी रूप से इतना मजबूत हो जाता है कि अपने समस्त जीवन काल में शायद ही वह कभी किसी से धोखा खाये लेकिन इसके लिए उस व्यक्ति को पूरी चाणक्य नीति को पढ़ते हुए उसको अपने दिमाग में समाहित भी करना होगा।

चाणक्य नीति वह नीतिशास्त्र है जिसका अधिकांश प्रयोग राजनीतिक गतिविधियों में की जाती है, इसमें राजा और प्रजा दोनों के कर्म और धर्म के बारे में फोकस किया गया है साथ ही साथ जीवन मुल्यों से सम्बंधित नैतिक कर्तव्यों और अधिकारों को भी शामिल किया गया है इसके अलावा जीवन के हर मोड़ पर आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की युक्ति भी बताई गयी है।

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चाणक्य के विचार
चाणक्य के विचार

चाणक्य के विचार :

विचार : 1 >

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि समस्त ब्रह्माण्ड के मालिक भगवान विष्णु को चरण स्पर्श करते हुये मै विष्णुगुप्त अर्थात कौटिल्य अर्थात चाणक्य “चाणक्य नीति” को समस्त मानव जाति के कल्याण के लिये प्रस्तुत करता हूँ। यह नीति राजा और प्रजा दोनों के लिए है, राजा के द्वारा प्रजा के प्रति निभाया जाने वाला धर्म ही राज धर्म होता है और प्रजा द्वारा राजा या राष्ट्र के प्रति निभाया जाने वाला धर्म ही प्रजा धर्म होता है।

विचार : 2 >

चाणक्य के अनुसार, श्रेष्ठ मनुष्य वह होता है जिसे अपने धर्म का अच्छा ज्ञान हो, जो अच्छे और बुरे की पहचान रखता हो साथ ही उसका पालन भी करता हो, ज्ञानी व्यक्ति नीतिशास्त्र को पढ़कर उसके हिसाब से ही मानव जीवन व्यतीत करता है और दूसरों को भी वही करने की सलाह देता है।

विचार : 3 >

नीतिशास्त्र को मानने वाला व्यक्ति राजनीति का धुरंधर हो सकता है, सिर्फ अपने कल्याण या हित के लिए ही नहीं बल्कि जनकल्याण के लिए राजनीति को जानना और समझना चाहिए।

विचार : 4 >

जड़ बुद्धि अर्थात मूर्खों को सिखाने से या उपदेश देने से, दुष्ट स्त्री के साथ रहने से, दुःखी या बीमार लोगों के बीच रहने वाला व्यक्ति भी दुःखी हो जाता है।

विचार : 5 >

आचार्य चाणक्य का कहना है कि चरित्रहीन पत्नी, घटिया मानसिकता वाला दोस्त, सिर चढ़ा अर्थात मुँह लगा नौकर से जितनी जल्दी हो दुरी बना लें अन्यथा ये आपकी परेशानी का कारण बन सकते हैं।

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विचार : 6 >

मुसीबत में किसी के सामने हाथ ना फैलाना पड़े, इसलिए धन की रक्षा करें और कैसे भी, कुछ भी करके, किसी भी तरह धन एकत्रित करें क्योंकि जब बुरा समय आता है तो कोई साथ नहीं देता और वही धन जो आपने किसी कोने में बचाकर रखा है वो आपके काम आएगा।

विचार : 7 >

जहाँ पर आपका मान ना हो, जहाँ पर आजीविका का कोई स्रोत ना हो, जहाँ पर आपका कोई परिचित ना हो, जहाँ ज्ञान अर्जित करने का कोई जरिया ना हो उस स्थान को जितनी जल्दी हो छोड़ दें, ऐसे स्थान पर रहकर आप अपना कीमती समय बर्बाद कर रहे हैं और कुछ नहीं।

विचार : 8 >

चाणक्य ने यह भी कहा है कि, आवश्यक कार्य आने पर सेवक की पहचान होती है, मुसीबत में सगे-सम्बन्धियों की पहचान होती है, मुश्किल घड़ी में मित्र की पहचान होती है और धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की पहचान होती है।

विचार : 9 >

जिस चीज को आप हासिल कर सकते हैं उसमे तनिक भी देरी ना लगाएं उसे अति शीघ्र प्राप्त करें क्योंकि जो अनिश्चितता की तरफ बढ़ता है उसका निश्चितता भी नष्ट हो जाता है, अर्थात जो दिख रहा है पहले उसे तो प्राप्त करो जो दिख ही नहीं रहा उसके पीछे भागने से कोई फायदा नहीं।

विचार : 10 >

शादी-विवाह के मामलों में यह ध्यान रखना चाहिए कि लड़का और लड़की दोनों का घराना समतुल्य हो, आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति को अपने सामान कुल की कन्या से ही विवाह करना चाहिए चाहे कन्या साधारण ही क्यों ना हो, नीच कुल की कन्या यदि सुन्दर और सुशील भी हो तो उससे विवाह नहीं करना चाहिए।

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विचार : 11 >

लम्बे नाख़ून वाले हिंसक पशुओं, बड़े सींग वाले पशुओं, शस्त्रधारियों, नदियों, स्त्रियों और राजपरिवारों का कभी भरोसा ना करें, क्योंकि ये कभी भी आपको क्षति पहुंचा सकते हैं।

विचार : 12 >

आचार्य जी कहते हैं कि, विष में से भी अमृत तथा गन्दगी में से भी सोना ले लेना चाहिए, नीच व्यक्ति से भी उत्तम विद्या ले लेनी चाहिए और अगर दुष्ट कुल में भी जन्मी कोई गुणवान और सुशील कन्या हो तो उसे स्वीकार कर लेनी चाहिए।

विचार : 13 >

आचार्य चाणक्य ने यह भी कहा है कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में आहार दोगुना, लज्जा चौगुनी, सहस छः गुना तथा कामोत्तेजना आठ गुनी होती है। इसे स्त्रियों की निंदा नहीं बल्कि प्रशंसा के रूप में कहा गया है।

आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके लिए मददगार साबित होगा और आपके जीवन में आने वाली कठिनाइयों के समय इसमें बताई गयी बातें आपकी मदद भी करेंगी। तो सोच क्या रहे हैं इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ Social Media पर Share करें, Like करें, और अगर कुछ कहना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में जाकर Comment करें, आपका सुझाव हमारे लिए महत्वपूर्ण है जैसे आप हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, इसलिए अपना बहुत-बहुत-बहुत खयाल रखियेगा, हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं।

Thaking You | धन्यवाद | शुक्रिया मेहरबानी…………….जय हिन्द – जय भारत

आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com

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