आपके शब्द ही आपके अंदरूनी व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं, इससे ही लोग आपसे प्रभावित होते हैं और इससे ही लोग आप पर हँसते हैं, जिसने इसको समझा उसकी चल पड़ी रेल है क्योंकि यह “शब्दों का खेल” है।
नमस्कार दोस्तों, मै अमित दुबे आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ………………………………..
दोस्तों, समस्त जीवों में एक इंसान ही है जिसे उसके शब्दों से पहचाना जाता है, अब आप कहेंगे कि इंसान की पहचान तो उसके चेहरे से होती है, तो साहेब आप अपनी जगह बलकुल सही हैं क्योंकि सबसे पहले तो आपके सामने उसका चेहरा ही आता है और इस बात पर मै आपका पूरा समर्थन करता हूँ, लेकिन यकीन मानिये दोस्त गलत मै भी नहीं हूँ इसका प्रमाण मै आपको नीचे दिए गए लाइनों में देने जा रहा हूँ।
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शब्दों का खेल | आपकी जुबान ही आपकी पहचान है
एक बार मै अपने परिवार के साथ ट्रेन में सफर कर रहा था, और मेरे सामने वाली सीट पर एक साहेब भी अपने परिवार के साथ सफर कर रहे थे। इलाहाबाद से नई दिल्ली के बीच का वो सफर लगभग नौ घंटे का था, रात साढ़े नौ बजे प्रयागराज एक्सप्रेस नामक ट्रेन इलाहाबाद से छूटती है और नई दिल्ली सुबह लगभग साढ़े छः बजे पहुँचती है।
आइये अब आगे बढ़ते हैं और वापिस चलते हैं, इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर जहाँ से यह ट्रेन नई दिल्ली के लिए रवाना होने वाली हैं। रात के लगभग नौ बज रहे थे हालाँकि ट्रेन इससे पहले ही प्लेटफार्म पर लग चुकी थी और लोग बहुत ही तेजी से उसमे प्रवेश कर रहे थे मेरे पास सामान कुछ ज्यादा था इसलिए मै रुक गया और नौ बजे जब भीड़ कुछ कम हुई तब मैंने अपने परिवार के साथ ट्रेन के अंदर प्रवेश किया।
जैसा कि आप सभी जानते ही होंगे, कि स्लीपर क्लास के डिब्बे में सीट से ज्यादा लोग होते हैं क्योंकि लोकल डिब्बे में जब भीड़ बढ़ जाती है तो लोग स्लीपर क्लास के डिब्बे में आ जाते हैं और उस दिन भीड़ कुछ ज्यादा ही थी जिस कारण से हमारे डिब्बे में भी काफी लोग जमा हो गए थे और मजे की बात यह थी कि जब मै अपने परिवार के साथ अपनी सीट तक पहुँचता हूँ तो यह देखता हूँ कि हमारी तीनों सीटें फुल हैं अर्थात उस पर पहले से ही कुछ लोग बैठे हुए थे।
मैंने उनको जैसे-तैसे वहां से विदा किया, लेकिन उनमे एक Couple ( नव विवाहित जोड़ा ) को काफी परेशान देख मै उनसे कुछ बोल नहीं पाया क्योंकि उनके पास वेटिंग टिकट था जो कन्फर्म नहीं हो पाया था और उन्हें दिल्ली तक का सफर तय करना था इसलिए मै फ़िलहाल सामने वाली सीट पर बैठ गया जिस पर एक व्यक्ति के बैठने की जगह खाली था और हमारे सीट पर मेरी वाइफ, बेटी और वो Couple बैठे थे।
लगभग सवा नौ बजे, एक पति, पत्नी और उनका लगभग 13 साल का बेटा सभी हाँफते हुए हमारे करीब आते हैं और वे साहेब बड़ी ही बदतमीजी से सीट खाली करने के लिए कहते हैं हालाँकि मेरा तो सीट था ही इसलिए मैंने अपनी 6 साल बेटी को ऊपर वाले सीट पर कर दिया और खिड़की के किनारे बैठ गया।
अब उस सीट पर 3 लड़के बैठे हुए थे, उनसे साहेब की बहस हो गयी उन लड़कों का कहना था कि उन्हें कानपुर तक जाना है महज ढाई-तीन घंटे का सफर है हम ऊपर वाली सीट पर बैठ जाते हैं इस पर भाई साहेब को गुस्सा आ जाता है और वे उन लड़कों को भला बुरा कहने लगते हैं हालाँकि वे लड़के अच्छे घर के लग रहे थे और वे कानपुर अपना पेपर देने जा रहे थे वे बार-बार विनती कर रहे थे कि ट्रेन में बहुत भीड़ है हमें बहुत दिक्कत हो जाएगी पर वे साहेब मानने को तैयार नहीं थे उन्हें तो बस यह था कि कैसे भी मेरी सीट खाली करो।
अंततः वे लड़के अपने छोटे-छोटे बैगों को उठाते हैं, और सीट खाली करने लगते हैं तभी साहेब की जुबान फिर कड़वे वचन उगलती है कि पता नहीं कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं, हमने महीनों पहले से ही टिकट निकाल रक्खा है तुम्हारे लिए थोड़े ही, चलो-चलो दफा हो जाओ यहाँ से यह सुनते ही वे तीनों लड़के एक दूसरे की शक्ल देखते हैं और फिर जो हुआ उसकी मुझे पूरी उम्मीद थी कि शायद अब कुछ ऐसा ही होने वाला था। उनमे से एक लड़के ने आव देखा ना ताव साहेब को एक थप्पड़ जड़ दिया और इससे पहले कि साहेब उसपे अपना हाथ छोड़ते वे दोनों लड़के भी उन पर टूट पड़ते हैं और उनकी जमकर सुताई कर देते हैं और डिब्बे से बाहर चले जाते हैं।
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शब्दों का खेल | आपकी जुबान ही आपकी पहचान है
उन लड़कों के चले जाने के बाद वे साहेब अपनी सेखी बघारने लगे, हिम्मत होती तो रुकते भाग गए, अभी फोन करता उनकी ऐसी-तैसी करा देता, लेकिन कुछ भी हो उनका चेहरा देखने लायक था, हालाँकि उनकी पत्नी उन्हें बार-बार रोक रही थीं, लेकिन वे एक निहायत ही बदतमीजी की मिशाल कायम करने में लगे हुए थे।
नौ बजकर पैंतीस मिनट हो चुके थे, और ट्रेन अब धीरे-धीरे चलने लगी थी और कुछ ही मिनटों में ट्रेन अपने पूरे गति में थी खिड़की से ठंडी हवा के झोकें सफर के माहौल को खुशनुमा बनाने में अपना योगदान दे रहे थे इतने में मेरी बेटी ने ऊपर से आवाज दी पापा मै नीचे आऊंगी और नीचे आते ही उसने खिड़की के किनारे बैठने का इशारा किया और मैं वहां से उठा अपनी बेटी को खिड़की के किनारे बिठाकर वाशरूम चला गया।
लगभग पाँच मिनट बात जब मै वापिस आया तो क्या देख रहा हूँ, भाई साहेब चाय वाले से भीड़ चुके थे क्योंकि ट्रेन की चाय तो वैसे ही माशाअल्ला होती है, पहली घूंट में ही साहेब भड़क चुके थे, और चाय वाले को भला-बुरा कहने लगे थे उनकी इस हरकत पर चाय वाला भी डिस्टर्ब हो गया था और जाते-जाते अपने मन में गालियां ही दे रहा था।
थोड़ी देर बाद ही फतेहपुर स्टेशन आ जाता है, और जैसे ही वहाँ से ट्रेन आगे बढ़ती है साहेब ने अपनी पत्नी को इशारा किया कि खाना खा लेते हैं और फिर शुरू होता है एक और नौटंकी वो भी क्या कि वे घर से जो पानी का छोटा जग लेकर चले थे वे उसे कहीं भूल गए और इस बात पर वे अपनी पत्नी पर राशन-पानी लेकर टूट पड़े और सबसे मजे की बात तो यह है कि साहेब काफी बारीक़ इंसान लग रहे थे, शायद ही उन्होंने कभी पानी की बोतल खरीदकर पी होगी और यहाँ तो कई बोतलें खरीदने पड़ सकते हैं।
इतने में पानी बेचने वाला भी टपक पड़ता है, उससे एक पानी की बोतल खरीदते हैं और खाना खाने लगते हैं, जैसे-तैसे यह अध्याय भी पूरा होता है। थोड़ी देर बाद कानपुर स्टेशन आ जाता है और वहाँ पर वे अपने बोतल में पानी भरने के लिए ट्रेन से नीचे उतरते हैं उनके जाने के बाद अचानक ही मैंने उनकी पत्नी से कहा कि लगता है कि भाई साहेब को गुस्सा बहुत आता है इस पर उनकी पत्नी कहती हैं हाँ ये ऐसे ही बोलते हैं ये तो इनकी आदत है लेकिन दिल के बहुत अच्छे हैं।
उनकी इस बात वहाँ बैठे और लोग जिसमे मै भी शामिल था, एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं इतने में ट्रेन की सिटी बजती है और वे भाई साहेब भी आ जाते हैं थोड़ी ही देर में ट्रेन अपने पूरे गति में थी और खिड़की से मदमस्त हवा का झोंका फिर माहौल को खुशनुमा बनाने में अपना योगदान देने लगा।
मै बार-बार उस शख्स की तरफ देख रहा था, और वह भी समझ रहा था कि मै उसकी गतिविधियों पर गौर कर रहा हूँ। उसने मुझसे बात करने की कोशिश की और शुरुआत भी होती है, उसने मुझसे पूछा दिल्ली जा रहे हैं मैंने कहा हाँ फिर उसने मुझसे कहा आप लोगों ने खाना नहीं खाया खा लीजिये अब तो बारह से ऊपर हो रहा है मैने कहा हाँ मै भी यही सोच रहा था। हमने खाना खाया और उस Couple ने भी जो हमारे सीट पर बैठे थे उसके बाद उस Couple से मैंने कहा कि आप लोग सबसे ऊपर वाले सीट पर सो जाएँ बाकी दो सीटों पर हम एडजस्ट कर लेंगे और वे ऊपर वाली सीट पर चले गए।
उसके बाद हम सभी सो जाते हैं,और सुबह करीब साढ़े पाँच बजे मेरी नींद खुल जाती है तो क्या देखता हूँ कि चाय वाला सामने खड़ा था और वे साहेब बड़बड़ाते हुए चाय वाले को आर्डर कर रहे थे कि दूध भी डाला है कि बस ऐसे ही चाय बना डाली। साथ ही मुझे भी चाय पीने के लिए कहते हैं और मजे की बात यह कि मेरे चाय के पैसे भी वही देने लगते हैं, मेरे मना करने के बावजूद भी कि (मैंने दिए या आप ने दिए एक ही बात है) उन्होंने ही मेरे चाय के पैसे दिए।
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शब्दों का खेल | आपकी जुबान ही आपकी पहचान है
उसके बाद मेरे और उनके बीच काफी देर तक बातें हुई, जिसमे मैंने यह निचोड़ निकाला कि वाकई में वह एक अच्छा आदमी था सिर्फ जुबान का कड़वा था साथ ही यह भी पता चला कि वह दिल्ली में सरकारी स्कूल में एक टीचर है।
इतने में वे टॉयलेट के लिए जाते हैं, उनके जाने के बाद मैंने उनकी पत्नी से कहा वाकई में भाई साहेब दिल के अच्छे इंसान हैं यह सुनते ही उनकी पत्नी के मुँह से जो बात निकलती है वो उसके दर्द को बयां कर देती है कि काश ये जुबान के भी अच्छे होते, इनके जुबान की वजह से मुझे अक्सर शर्मिंद होना पड़ता है।
थोड़ी देर में साहेब टॉयलेट से वापिस आते हैं, फिर हमारे बीच बातें होने लगती हैं और थोड़ी देर में ही ट्रेन झटके देकर रुकने लगती है बाहर देखा तो नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आ चुका था ट्रेन के रुकते ही लोग बाहर निकलते हैं और अपने-अपने घर की तरफ प्रस्थान करते हैं और मै भी।
लेकिन मेरे आँखों के सामने उस सफर की तस्वीरें कई दिन तक घूमती रहीं, और खाश कर उन साहेब की पत्नी की वो बात कि काश ये जुबान के भी अच्छे होते तो मुझे लोगों के सामने शर्मिंदा नहीं होना पड़ता क्योंकि अपनी कड़वी जुबान की वजह से इलाहाबाद में उनकी सुताई हो गयी थी जबकि वे एक Respective Person अर्थात Teachar हैं और यह भी हो सकता है कि उनकी इस आदत की वजह से पता नहीं कितनी बार उनकी सुताई हो चुकी होगी।
दोस्तों, हमारे जुबान से निकला हुआ प्रत्येक शब्द बहुत ही कीमती होता है, क्योंकि यही शब्द हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं, इसी की वजह से हमें इज़्ज़त और बेइज़्ज़ती दोनों मिलती हैं इसलिए कुछ भी बोलने से पहले हमें उसको तोलना चाहिए कि ये शब्द यहाँ पर बोलना है कि नहीं।
इसीलिए तो कहा गया है कि>>>>>>>>>>>>> पहले तोलो फिर बोलो <<<<<<<<<<<<<<
दोस्तों, शब्दों में वो ताक़त होती है, जो इंसान को कहीं का कहीं पहुँचा सकती है इसके सही इस्तेमाल से ही आप अपनी एक अलग पहचान बना सकते हैं और इसके गलत इस्तेमाल से ही आप अपनी साख गिरा सकते हैं अब चुनाव आपको करना है कि आप इसका कैसे इस्तेमाल करते हैं।
शब्दों का खेल जिसने भी समझ लिया, उसने जिंदगी की बड़ी सी बड़ी बाजी को जीत लिया है इसके साक्षात् उदाहरण हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जो शब्दों का सही और सटीक इस्तेमाल करके ही आज पुरे विश्व को अपनी तरफ आकर्षित करने में कामयाब रहे हैं।
तो सोच क्या रहे हैं, आज से ही आप भी इस शब्दों के खेल के महत्व को समझते हुए अपने जिंदगी की पारी को एक नया आयाम देते हुए अपनी एक नई पहचान बनाने के बारे में सोचें मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं।
आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा, तो सोच क्या रहे हैं इसे अभी और इसी वक्त अपने दोस्तों,पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ सोशल मीडिया पर Share करें, Like करें और अगर आप कुछ कहना चाहते हाँ तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर Comment करें।
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Thanking You………..धन्यवाद………….शुक्रिया…………मेहरबानी………..जय हिन्द – जय भारत
आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com
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