वराह अवतार (भगवान विष्णु का तीसरा अवतार)

  1. वराह अवतार भगवान विष्णु का तीसरा अवतार होता है, जिसमें उनका शरीर मानव और सिर शूकर (सूअर) का होता है, इस अवतार में भगवान ने हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध किया था, जिसने माता पृथ्वी का अपरहरण करके उन्हें पाताल की गहराई में छुपा दिया था, आइये इस आर्टिकल के माध्यम से भगवान नारायण के इस अवतार के बारे में गहराई से जानते हैं > वराह अवतार (भगवान विष्णु का तीसरा अवतार)

गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 और 8 में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि…..

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌।। (7)

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (8)

भावार्थ

हे भरतवंशी, जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है तब तब मै अवतार लेता हूँ।

हे अर्जुन, भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ।

भक्तों, गीता का यह श्लोक हालाँकि महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, लेकिन इससे पहले भी विष्णु भगवान ने यह श्लोक बहुत बार बोला है, विष्णु पुराण में भगवान ने कहा है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म धर्म पर हावी होने लगेगा तब-तब मै अवतार लूंगा और धर्म की रक्षा करूँगा।

अपने इसी प्रण को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने पहला अवतार मत्स्य का अर्थात मछली का और दूसरा अवतार कूर्म अर्थात कछुए का लिया था जिसके बारे में हमने इससे पहले के आर्टिकल में आपको बताया है, इसके बाद भगवान पृथ्वी की रक्षा के लिए अपना तीसरा अवतार वराह अवतार लेते हैं जिसके बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं, तो आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतार के बारे में….

वराह अवतार (भगवान विष्णु का तीसरा अवतार)

भगवान विष्णु ने वराह अवतार क्यों लिया ?

एक समय की बात है, जब हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने समस्त सृष्टि पर आतंक का तांडव मचा रखा था, समस्त पृथ्वीवासी उसके आतंक से थर-थर कांपते थे, यहाँ तक कि देवतागण भी उसके नाम से थर्राते थे, स्वर्गलोक पर उसने कब्ज़ा कर लिया था, देवराज इंद्र सहित समस्त देवतागण वरुणदेव के आश्रय में शरण लेने को मजबूर हो गए थे।

हिरण्याक्ष को जब पता चला तो वह वरुणदेव को भी धमकी देने लगा, तब वरुणदेव ने कहा कि हे हिरण्याक्ष एक दिन तुम्हारे पापों का अंत अवश्य होगा क्योंकि तुमने अपने शक्तियों का दुरूपयोग सृष्टि को आतंकित करने में लगाया है और तुम्हारे पापों का अंत होना निश्चित है, क्योंकि अभी तुम्हारा सामना नारायण से नहीं हुआ है, जब होगा तब तुम्हें पता चलेगा कि तुमसे भी बढ़कर सर्वशक्तिमान कोई इस सृष्टि में है और वही तुम्हें समयानुसार दण्डित भी करेंगे।

वरुणदेव की इस बात को सुनकर हिरण्याक्ष अत्यंत क्रोधित हो गया क्योंकि उसे अपनी शक्तियों पर बड़ा घमंड था, वह अपने आगे किसी को भी शक्तिशाली मानने को तैयार नहीं था, और वरुणदेव ने भगवान विष्णु का नाम लेकर उसे और उसकी शक्तियों को ललकारा था जिससे क्रोधित होकर वह भगवान विष्णु को युद्ध के लिए उकसाने लगा था।

क्योंकि हिरण्याक्ष देवताओं पर विजय प्राप्त कर चुका था और उसे ऐसा लगता था कि वह भगवान विष्णु पर भी आसानी से विजय प्राप्त कर लेगा, लेकिन सवाल यह था कि वह विष्णु जी तक पहुँचेगा कैसे, उधर पृथ्वीलोक पर ऋषिमुनियों द्वारा यज्ञ का सञ्चालन भी हिरण्याक्ष को रास नहीं आ रहा था, क्योंकि पृथ्वी पर यज्ञ सञ्चालन से देवताओं को शक्ति मिलती है जिसे असुर लोग सहन नहीं कर सकते।

हिरण्याक्ष को यह बात पता थी कि भगवान विष्णु को पृथ्वी और पृथ्वीवासियों से बड़ा लगाव है और अगर मै पृथ्वी का अपहरण करके उसे सागर में छुपा देता हूँ तो भगवान विष्णु पृथ्वी को ढूंढते हुये मेरे पास जरूर आयेंगे और तब मै उनसे युद्ध करके उन्हें पराजित कर दूंगा, और इसीलिए उसने माता पृथ्वी का अपहरण कर लिया और उन्हें ले जाकर रसातल में छुपा दिया।

इस घटना के बाद समस्त देवतागण भगवान विष्णु के पास क्षीरसागर जाकर उनसे इस समस्या के समाधान के लिए उपाय करने की विनती करते हैं, उसके बाद ब्रह्मा जी के बाईं नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में अपना तीसरा अवतार लेते हैं। जो कि उनका पहला मानव अवतार होता है जिसमें वे शारीरिक रूप से तो मानव लेकिन उनका सिर शूकर रूप का होता है।

वराह अवतार लेकर बड़े ही क्रोधित होकर वे पृथ्वी की तलाश में निकल पड़ते हैं और ढूंढते-ढूंढते पाताललोक में उस स्थान पर पहुँच जाते हैं जहाँ पर हिरण्याक्ष ने माता पृथ्वी को छुपा रखा था और पृथ्वी को अपनी दांतों पर रखकर पाताललोक से बहार ले जाने लगे और जैसे ही हिरण्याक्ष यह देखता है उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है और उन्हें युद्ध के लिए ललकारने लगता है।

भगवान विष्णु और हिरण्याक्ष के बीच युद्ध होने से पहले हम हिरण्याक्ष और उसके शक्तियों के बारे में आपको अवगत करना चाहेंगे…..तो आइये अब हम पहले हिरण्याक्ष के जीवन के बारे में जानते हैं…..

हिरण्याक्ष कौन था ?

Image source : The Times of India
Image source : The Times of India

हिरण्याक्ष हिरण्यकशिपु का छोटा भाई और विष्णु भक्त प्रह्लाद का चाचा था, विष्णु पुराण कथा के अनुसार आदिपुरुष कश्यप और उनकी पत्नी के दो पुत्र हुये जिसमें बड़ा पुत्र हिरण्यकशिपु और छोटा पुत्र हिरण्याक्ष था। और अगर हिरण्याक्ष के पूर्व जन्म की बात करें तो वह पूर्व जन्म में विष्णु भगवान का द्वारपाल था।

हिरण्याक्ष और उसका बड़ा भाई हिरयकशिपु दोनों ही पूर्व जन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल थे, जो शनकादिक मुनि के श्राप के कारण अगले जन्म में असुर रूप में जन्मे इसके पीछे की कहानी क्या है आइये जानते हैं…..जय-विजय के कहानी के माध्यम से…..

जय-विजय कैसे बने हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष ?

Image source : Dil Se Deshi
Image source : Dil Se Deshi

भगवान विष्णु के दो द्वारपाल जिनके नाम जय और विजय थे, ये दोनों बैकुंठ के द्वार पर भगवान विष्णु के दरबारी के रूप में उनकी सेवा करते थे, एक समय की बात है जब सनकादिक मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिये वैकुंठ आये और जैसे ही द्वार से होकर गुजरने लगे उन्हें जय-विजय ने आगे बढ़ने से रोक दिया और उनका मज़ाक भी उड़ाया।

जय-विजय के उस अभद्र व्यव्हार से क्रोधित होकर सनकादिक मुनि ने उन दोनों को ही यह श्राप दे दिया कि तुमने एक ऋषि के साथ राक्षसों जैसा व्यव्हार किया है इस कारण तुम दोनों ही आने वाले अपने तीन जन्मों तक राक्षस योनि में जन्म लोगे, जिसके बाद वे दोनों उस श्राप से भयभीत होकर उनसे क्षमा मांगते हैं और उनके क्षमा मांगने के उपरांत सनकादिक मुनि ने उनको बताया कि अब यह श्राप तो वापिस हो नहीं सकता लेकिन इसका उपाय यह है कि तुम्हारे तीनों जन्मो में तुम्हारा अंत भगवान विष्णु के द्वारा ही होगा तुम दोनों राक्षस योनि में जन्म लोगे और भगवान विष्णु तुम्हारा वध करके तुम्हारा कल्याण करेंगे।

सनकादिक मुनि के श्रापवश ही उन दोनों के तीन जन्म राक्षस योनि में हुये जिसमें पहला जन्म सतयुग में हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के रूप में हुआ जिसमें भगवान विष्णु ने वराह रूप में हिरण्याक्ष और नरसिंह रूप में हिरण्यकशिपु का वध किया, दूसरा जन्म त्रेतायुग में रावण और कुंभकर्ण के रूप में हुआ जिसमें भगवान विष्णु ने राम अवतार लेकर उनका वध किया और तीसरा जन्म शिशुपाल और दन्तवक्र के रूप में हुआ जिसमें भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लेकर उनका वध किया और शताब जाकै वे दोनों ही सनकादिक मुनि के श्राप से मुक्त हो पाये।

हिरण्याक्ष का वध कैसे हुआ ?

Image source : Iskon Bangalore
Image source : Iskon Bangalore

जब दैत्य हिरण्याक्ष ने माता पृथ्वी को ले जाकर रसातल में छुपा दिया तो भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर उसे ढूंढना शुरू किया और अपनी थूथनी की सहायता से वे पाताल लोक के उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ माता पृथ्वी को हिरण्याक्ष ने छुपा रखा था, और जैसे ही भगवान विष्णु पृथ्वी को अपनी दांत पर रखकर ले जाने लगे तो यह देखकर हिरण्याक्ष ने भगवान के उस वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा, और उन दोनों के बीच एक लम्बे अवधि तक युद्ध हुआ, परिणामतः भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया।

हिरण्याक्ष के वध के उपरांत भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया, तत्पश्चात भगवान वराह अंतर्धान हो गए और वापिस जहाँ से उनकी उत्पत्ति (ब्रह्मा जी के बाईं नाक) से हुआ था वहाँ ही वापिस चले गए।

दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही साथ आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय श्री कृष्णा..जय श्री कृष्णा..जय श्री कृष्णा।

लेखक परिचय

इस वेबसाइट के संस्थापक अमित दुबे हैं, जो दिल्ली में रहते हैं, एक Youtuber & Blogger हैं, किताबें पढ़ने और जानकारियों को अर्जित करके लोगों के साथ शेयर करने के शौक के कारण सोशल मीडिया के क्षेत्र में आये हैं और एक वेबसाइट तथा दो Youtube चैनल के माध्यम से लोगों को Motivate करने तथा ज्ञान का प्रसार करने का काम कर रहे हैं।

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