रामा अवतार | भगवान विष्णु का सातवां अवतार

रामा अवतार भगवान विष्णु का सातवां अवतार होता है, यह अवतार भगवान ने लंकापति रावण के बढ़ते अहंकार और अत्याचार का नाश करने के लिये लिया था, लेकिन ऐसा क्या कर दिया था रावण ने कि भगवान विष्णु को उनके विनाश के लिये पृथ्वी पर श्री राम के रूप में जन्म लेना पड़ा, आइये इस आर्टिकल के माध्यम से भगवान नारायण के इस अवतार के बारे में गहराई से जानते हैं > रामा अवतार | भगवान विष्णु का सातवां अवतार

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रामा अवतार | भगवान विष्णु का सातवां अवतार

गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 और 8 में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि…..

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌।। (7)

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (8)

भावार्थ

हे भरतवंशी, जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है तब तब मै अवतार लेता हूँ।

हे अर्जुन, भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ।

भक्तों, गीता का यह श्लोक हालाँकि महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, लेकिन इससे पहले भी विष्णु भगवान ने यह श्लोक बहुत बार बोला है, विष्णु पुराण में भगवान ने कहा है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म धर्म पर हावी होने लगेगा तब-तब मै अवतार लूंगा और धर्म की रक्षा करूँगा।

अपने इसी प्रण को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने पहला अवतार मत्स्य का अर्थात मछली का, दूसरा अवतार कूर्म अर्थात कछुए का, तीसरा अवतार वराह अर्थात (शरीर मानव का+सिर सूअर का) चौथा अवतार नरसिंह अर्थात (शरीर मानव+सिर शेर का) तथा पाँचवाँ अवतार वामन अवतार जो पूर्ण मानव रूप में लेते हैं, जिसके बारे में हमने इससे पहले के आर्टिकल में आपको बताया है, इसके बाद भगवान पृथ्वी की रक्षा के लिए अपना छठवाँ अवतार परशुराम अवतार लेते हैं जिसके बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं, तो आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम अवतार के बारे में….

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भगवान विष्णु ने राम अवतार क्यों लिया ?

पुराणों के अनुसार मान्यता है कि वैंकुंठ लोक में भगवान विष्णु के दो दरबारी थे जिनका नाम था जय और विजय, यह बात उस समय की है जब सनकादिक मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए वैकुण्ठ धाम गए थे।

वे जब वैकुण्ठ धाम के द्वार से अंदर को जाने लगे तो दोनों द्वारपालों ने उन्हें अंदर जाने से मना किया और उनकी हंसी भी उड़ाई जिस बात से सनकादिक मुनि उनसे रुष्ट हो गए और उन दोनों को तीन जन्मों तक राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

सनकादिक मुनियों के श्राप देते ही दोनों द्वारपाल उनसे क्षमा की भीख मांगने लगे तो मुनियों ने कहा कि आने वाले तीनों ही जन्मो में तुम्हारा उद्धार भगवान विष्णु ही करेंगे, और तीन जन्म के बाद ही तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।

और उसी श्राप के कारण सतयुग के समय में पहले जन्म में वे दोनों हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में जन्म लेते हैं, जिनके उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने वराह रूप लेकर हिरण्याक्ष तथा नरसिंह रूप लेकर हिरण्यकशिपु का वध किया था।

दूसरे जन्म त्रेतायुग के समय में उन दोनों ने रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्म लिया, और इस युग में भगवान विष्णु ने श्री राम का अवतार लिया और दोनों का वध किया।

तीसरे जन्म द्वापर युग के समय में दोनों ने शिशुपाल और दन्त वक्र के रूप में जन्म लिया, और इस युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेकर दोनों का वध किया था।

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राम अवतार की कहानी

वैसे तो लगभग सभी सनातनी हिन्दू भगवान राम के बारे में जानते ही हैं, फिर भी जब हम इस आर्टिकल के माध्यम से भगवान विष्णु के सातवें अवतार (राम अवतार) के बारे में चर्चा कर ही रहे हैं तो संक्षेप में उनके जीवन के बारे में बात कर ही लेते हैं।

जब लंकापति रावण ने पृथ्वी पर अत्याचार का तांडव मचा रखा था तब उसके अहंकार और अत्याचार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या के गर्भ से राजा दशरथ के प्रथम पुत्र के रूप में श्री राम अवतार लेकर पृथ्वी पर जन्म लिए।

राजा दशरथ की तीन रानियां (कौशल्या, सुमित्रा और कैकेई) थीं, जिनमें श्री राम कौशल्या के, लक्ष्मण सुमित्रा के तथा भरत और शत्रुधन कैकेई के पुत्र थे, राम पुत्र तो कौशल्या के थे लेकिन वे राम को अपने दोनों पुत्रों से ज्यादा स्नेह करतीवही थीं।

जनकपुर में राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर समारोह में राम और लक्ष्मण भी अपने गुरु विश्वामित्र के साथ गए थे, और जब सभी राजागण शिव धनुष को उठाने और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने में असफल हो गए तब गुरु विश्वामित्र के आदेश से श्री राम ने वहां पर रखे हुए शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाकर तोड़ दिया।

तत्पश्चात उस जनक सभा में परशुराम जी का आगमन होता है, और धनुष टूटने के बारे में परशुराम और लक्ष्मण की बीच बड़ी देर तक कटु संवाद होता है, क्योंकि वह शिव धनुष भगवान शिव ने परशुराम जी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दिया था, साथ ही एक परशा भी महादेव ने परशुराम जी को दिया था, जिसे परशुराम जी ने अपने मुख्य शस्त्र के रूप में अपने पास रखा और वह धनुष उन्होंने राजा जनक को संभालकर रखने को दे दिया था।

यहाँ पर हम आपको एक बात और बताना चाहेंगे कि परशुराम जी भगवान विष्णु के छठवें अवतार थे, जो पृथ्वी पर क्षत्रियों के बढ़ते अहंकार और अत्याचार को नष्ट करने के लिए अवतरित हुए थे, जिन्होंने ब्राह्मण होकर भी अपने हाथों में शस्त्र उठाया और पृथ्वी पर ब्राह्मणों के अस्तित्व को बचाने और राक्षस प्रवृत्ति वाले क्षत्रियों को मिटाने के लिए एक सेना का गठन किया और अपने परशे से 21 क्षत्रिय राजाओं का वध करके उनका रक्त एक कुंड में संगृहीत किया था।

वही भगवान परशुराम जनकसभा में राम के छोटे भाई लक्ष्मण से धनुष किसने और क्यों तोड़ा को लेकर वाद-विवाद कर रहे थे, जो श्री राम के बीच-बचाव के कारण शांत हुआ, तत्पश्चात राम और सीता का विवाह होना तय हुआ, विवाह पश्चात् राजा दशरथ ने श्री राम को अयोध्या का राजा बनाने का विचार बनाया और नगर भी घोषणा भी करवा दी थी।

राम के राजा बनने के समाचार से सबको ख़ुशी हुई लेकिन मंथरा को नहीं, जो कि कैकेई की मुख्य दासी थी, मंथरा ने भरत की माता कैकेई को भड़काकर राजा दशरथ द्वारा कैकेई को दिया हुआ वचन याद दिला दिया। जिसके कारण राम को चौदह वर्षों की वनवास और भरत का राजा बनना निश्चित हुआ।

राम के साथ लक्ष्मण और सीता भी वनवास गए, वन में सुपर्णखा नामक राक्षसी की दुष्टता के कारण लक्ष्मण ने उसका नाक और कान काट लिया, जिसके कारण वह रोती हुई लहूलुहान अपने भाई लंकापति रावण के पास लंकानगरी पहुंची थी। जहाँ से शुरू हुई थी राम और रावण की शत्रुता की कहानी, आइये जानते हैं…..

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राम-रावण की लड़ाई

रावण…..लंकापति रावण…..लंकेश…..जैसे कई नामों से जाना जाने वाला योद्धा जिसका वध करने के लिए स्वयं ‘श्री हरी’ भगवान नारायण राम के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए, उसी रावण की बहन है सुपर्णखा जो कि अपनी कटी नाक और कान को लेकर अपने भाई के भरे दरबार पहुंची थी।

बहन सुपर्णखा को इस हालत में देख रावण बहुत क्रोधित हुआ और बदले की भावना की आग को ठंडी करने के लिए उसने मामा मारीच की सहायता से जो कि (सोने के हिरण) बने थे, राम और लक्ष्मण को छल से कुटिया से दूर ले जाते हैं, जिससे रावण कुटिया से माता सीता का हरण कर सके।

सोने के हिरण के शिकार के लिए सीता ने राम से कहा और राम धनुष उठाकर चल दिए, रहस्यमयी आवाज को सुनकर सीता ने लक्ष्मण को श्री राम की सहायता के लिए भेजा, तत्पश्चात वहां पर रावण साधु के वेश में पहुँचता है और भिक्षा मांगने के छल का प्रयोग करके माता सीता को हरण करके लंकानगरी ले जाता है।

सीताहरण के बाद राम और लक्ष्मण उनकी खोज में वन-वन भटक रहे थे, जहाँ ऋषिमुख पर्वत पर उनको हनुमान जी मिलते हैं, जो उन्हें वानरराज सुग्रीव से मिलवाते हैं। जो कि अपने भाई बाली के अत्याचार का शिकार था, श्री राम बाली का वध करके सुग्रीव को उसका राज-पाट वापिस दिलाकर हनुमान जी को माता सीता का पता लगाने भेजते हैं।

हनुमान जी लंका पहुंचकर माता सीता का पता लगाकर, लंकादहन करके रामदल में वापिस आते हैं, तत्पश्चात समुन्दर पर राम नाम के पत्थरों का पल तैयार होता है, जिससे रामदल समुद्र पार करके लंका की सीमा में प्रवेश कर सकी, एक बार फिर श्री राम द्वारा अंगद को रावण के पास संधि प्रस्ताव भिजवाया गया, जहाँ अंगद रावण के दरबार में पैर जमाकर खड़े हो गए जिसे कोई भी न उठा पाया, अंत में रावण उठा तो अंगद ने अपने पैर हटा लिए और व्यंगात्मक शैली में बोले कि, हे रावण अगर पैर ही छूने हैं तो श्री राम को छुओ और माता सीता को वापिस कर दो, श्री राम तुम्हें क्षमा कर देंगे।

अभिमानी और अत्याचारी रावण ने संधि प्रस्ताव को ठुकरा दिया और राम रावण की लड़ाई शुरू हुई, जिसमें लक्ष्मण को शक्ति लगी थी और हनुमान जड़ी बूटी लाने हिमालय गए थे और पूरा पहाड़ ही उठा लाये थे। तत्पश्चात लक्ष्मण द्वारा मेघनाथ वध, श्री राम द्वारा कुम्भकर्ण वध और विभीषण की मदद से श्री राम द्वारा ही लंकापति रावण का वध होता है।

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राम-राज्य की कहानी

लंकापति रावण के वध के बाद श्री राम ने विभीषण का राज्याभिषेक करके लंका का राजा बनाया, और रावण के पुष्पक विमान द्वारा सभी अयोध्या पहुंचे जहाँ बड़े धूम-धाम से दीपोत्सव का त्यौहार मनाया गया, जो की आज भी हम दीपावली नामक त्यौहार मनाते हैं, श्री राम का राज्याभिषेक हुआ और अयोध्या में श्री राम-राज्य की स्थापना हुई। राम-राज्य से तात्पर्य एक ऐसा राज्य जहाँ न भय हो, न छल हो. न हिंसा हो, न द्वेष हो, न क्लेश हो, प्रजा अपने राजा से खुश और संतुष्ट हो।

श्री राम मर्यादापुरुषोत्तम हैं, संयम, सच्चाई, कर्त्तव्य और वीरता के प्रतीक हैं, भगवान विष्णु के सभी अवतारों में सबसे प्रसिद्द और चर्चित राम अवतार ही है, जिसके नाम मात्रा जपने से ही मनुष्य के कल्याण के रास्ते खुल जाते हैं।

“राम कहने का मज़ा जिसकी जुबां पर आ गया, मुक्त जीवन हो गया चारों पदारथ पा गया”

दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही साथ आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय श्री कृष्णा..जय श्री कृष्णा..जय श्री कृष्णा।

लेखक परिचय

इस वेबसाइट के संस्थापक अमित दुबे हैं, जो दिल्ली में रहते हैं, एक Youtuber & Blogger हैं, किताबें पढ़ने और जानकारियों को अर्जित करके लोगों के साथ शेयर करने के शौक के कारण सोशल मीडिया के क्षेत्र में आये हैं और एक वेबसाइट तथा दो Youtube चैनल के माध्यम से लोगों को Motivate करने तथा ज्ञान का प्रसार करने का काम कर रहे हैं।

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