मध्यकालीन भारत का इतिहास > के बारे में अगर हम बात करते हैं तो इसमें इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। कोई कहता है छठीं से सोलहवीं शताब्दी, कोई कहता है आठवीं से पंद्रहवीं शताब्दी तो कोई कहता है बारहवीं अठारहवीं शताब्दी, कोई कुछ तो कोई कुछ।
जब हमने इस विषय पर गहन अध्ययन किया तो पाया कि सही मायने में देखा जाये तो मध्यकालीन भारत का इतिहास का समय महमूद गजनवीं के भारत पर आक्रमण के साथ शुरु होकर भारत में अंग्रेजों के आगमन के समय था जिसकी अवधि (1000 ईस्वी से लेकर 1600 ईस्वी) था।
वैसे यह भी कहा जाता है कि 1526 ईस्वी में मुगल शासक बाबर के भारत में आने के साथ ही मध्यकाल समाप्ती के कगार पर था। अर्थात् मध्यकालीन भारत के वास्तविक अवधि को (दसवीं से सोलहवीं शताब्दी केे बीच का समय कह सकते हैं।
मध्यकालीन भारत का इतिहास
महमूद गजनवी का आक्रमण
महमूद गजनवी मध्य अफगानिस्तान के गजनवी वंश का शासक था। जिसने सिर्फ 27 वर्ष की अवस्था में राजगद्दी संभाली। उसने भारत के मंदिरों में रखे खजानों के बारे में सुना था जिसकी वजह से वह भारत की तरफ रुख करता है।
महमूद गजनवी ने भारत पर पहली बार 1000 ईस्वी में आक्रमण किया और लुटा हुआ खजाना लेकर गजनी वापिस चला गया लेकिन उसकी प्यास बुझी अभी बुझी नहीं थी और उसने एक के बाद एक लगातार 17 बार भारत पर आक्रमण किया जिसकी अवधि (1000 ईस्वी से लेकर 1027 ईस्वी तक) थी।
महमूद गजनवी भारत पर आक्रमण करता, मंदिरों में रखे खजानों को लूटता और वापिस गजनी चला जाता लेकिन उसने भारत पर शासन नहीं किया।
मोहम्मद गौरी का आक्रमण
मोहम्मद गौरी एक अफगान सेनापति था जो 1202 ईस्वी में गौरी साम्राज्य का सुल्तान बना लेकिन अपने सेनापति रहते हुए उन्होंने गौरी साम्राज्य का काफी विस्तार किया। मोहम्मद गौरी ने भारत पर पहला आक्रमण 1175 ईस्वी में मुल्तान पर किया, 1178 में पाटन (गुजरात) पर किया।
पृथ्वीराज चौहान के साथ मोहम्मद गौरी का 1191 में तराईन का युद्ध होता है जिसमे मोहम्मद गौरी बुरी तरह हार जाता है लेकिन 1192 में तराईन द्वितीय युद्ध के दौरान वह एक बड़ी सेना लेकर फिर आक्रमण करता है और पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर देता है और उन्हें बंदी बना लेता है।
1194 में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली के शासक जयचंद को हराया और जीता हुआ साम्राज्य अपने सेनापतियों को देकर गजनी वापिस लौट गया जिसके बाद से ही दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई जिसे मोहम्मद गौरी के गुलामों का शासनकाल कहा जाता है।
दिल्ली सल्तनत की स्थापना (1206-1526)
दिल्ली सल्तनत की स्थापना मोहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1206 ईस्वी में किया गया था। इसलिए उस शासनकाल को गुलाम वंश कहा जाता है। उसके बाद अलग-अलग वंशों ने दिल्ली पर राज किया जिनके बारे में हम आगे आपको बताने जा रहे हैं।
गुलाम वंश (1206-1290)
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 ईस्वी से 1210 ईस्वी तक)
आरामशाह (अयोग्य साबित हुए थे)
इल्तुतमिश (1210 ईस्वी से 1236 ईस्वी तक)
रुकनुद्दीन फिरोजशाह (हत्या कर दी गयी थी)
रजिया सुल्तान (1236 ईस्वी से 1240 ईस्वी तक)
बहरामशाह (1240 ईस्वी से 1242 ईस्वी तक)
मसूदशाह (1242 ईस्वी से 1246 ईस्वी तक)
नासिरुद्दीन महमूद (1246 ईस्वी से 1266 ईस्वी तक)
बलबन (1266 ईस्वी से 1286 ईस्वी तक)
कैकुबाद और क्यूमर्स (1286 ईस्वी से 1290 ईस्वी तक)
खिलज़ी वंश (1290-1320)
बलबन की मृत्यु के बाद जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी सेनापति नियुक्त किया जाता है जो सुल्तान कैकुबाद की हत्या करके खुद सुल्तान की गद्दी पर बैठ जाता है। उसके बाद उसका दामाद अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान की गद्दी संभालता है।
अलाउद्दीन खिलजी ने खिलजी वंश का साम्राज्य काफी फैलाया। मंगोल आक्रमण भी उसी समय हुए थे जिनका अलाउद्दीन खिलजी ने डटकर सामना किया था। खिलजी वंश के शासकों के नाम इस प्रकार हैं।
जलालुद्दीन खिलजी (1290 ईस्वी से 1296 ईस्वी तक)
अलाउद्दीन खिलजी (1296 ईस्वी से 1316 ईस्वी तक)
कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (1316 ईस्वी से 1320 ईस्वी तक)
तुगलक वंश (1320-1414)
तुगलक वंश की स्थापना गयासुद्दीन तुगलक ने की थी। जिसे अमीर खुसरो ने एक बुद्धिमान शासक कहा था। तुगलक वंश के शासकों के नाम इस प्रकार हैं।
गयाशुद्दीन तुगलक (1320 ईस्वी से 1325 ईस्वी तक)
मोहम्मद बिन तुगलक (1325 ईस्वी से 1351 तक)
फिरोजशाह तुगलक (1351 ईस्वी से 1387 ईस्वी तक)
सैयद वंश (1414-1451)
सैयद वंश की स्थापना खिज्र खान के द्वारा हुई थी जिन्हें तैमूर ने मुल्तान का राज्यपाल बनाया था। ख़िज़्र खान ने दौलत खान लोदी से सत्ता छीनकर सैयद वंश की स्थापना की थी। सैयद वंश के शासकों के नाम इस प्रकार हैं।
ख़िज़्र खान (1414 ईस्वी से 1421 ईस्वी तक)
मुबारक शाह (1421 ईस्वी से 1434 ईस्वी तक)
मुहम्मद शाह (1434 ईस्वी से 1445 ईस्वी तक)
आलम शाह (1445 ईस्वी से 1451 ईस्वी तक)
लोदी वंश (1451-1526)
लोदी वंश की स्थापना 1451 में हुई थी और इब्राहिम लोदी के शासनकाल की समाप्ति और बाबर के आगमन 1526 तक अस्तित्व में रहा। लोदी वंश के शासकों के नाम प्रकार है।
बहलोल लोदी (1451 ईस्वी से 1489 ईस्वी तक)
सिकंदर लोदी (1489 ईस्वी से 1517 ईस्वी तक)
इब्राहिम लोदी (1517 ईस्वी से 1526 ईस्वी तक)
दिल्ली सल्तनत का पतन
लोदी शासकों के मनमानी रवैये से देश की प्रजा में असंतुष्टि की भावना पनपने लगी। बहुत सारे गलत नीतियाँ जो प्रजा को नागुज़ार लगीं जिसके कारण उनका पतन होना शुरू हुआ।
बाबर का आगमन
मध्य एशिया के फरगना घाटी से काबुल में आकर बसे और फिर भारत की तरफ अपना रुख करने वाले बाबर ने 1526 ईस्वी में भारत पर आक्रमण किया और इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली में मुग़ल वंश की नींव डाली।
मुग़ल साम्राज्य की स्थापना
मुग़ल वंश की स्थापना 1526 ईस्वी में बाबर द्वारा हुई जिसके बाद मुग़ल साम्राज्य का उदय हुआ जिसकी कई पीढ़ियों ने सैकड़ों सालों तक भारत की सर जमीं पर राज किया और अंग्रेजों के पूर्ण कब्जे तक करते रहे तत्पश्चात भारत में ब्रिटिश शासनकाल का समय आ गया।
अंग्रेजों का आगमन
हमें हमारे किताबों में पढ़ाया जाता है कि भारत की खोज वास्को डी गामा ने की थी तो क्या इससे पहले भारत का अस्तित्व नहीं था। असल में भारत तो पहले से ही अस्तित्व में था लेकिन उस समय विश्व में युरोपीयों का दौर चल रहा था और उसी दौर में एक युरोपीय नागरिक वास्को डी गामा 1498 ईस्वी में नाव से यात्रा करते हुए भारत के बंदरगाह कालीकट पहुँचता है।
उसके बाद से ही भारत की तरफ अंग्रेजों की नज़र पड़ी क्योंकि भारत में मशालों का अम्बार था जिसकी जरुरत अंग्रेजों को थी परिणामतः यूरोप और भारत के बीच समुद्री रास्ता खुल गया और व्यापारिक गतिविधियाँ भी होने लगी।1600 ईस्वी में अंग्रेजों द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई और 24 अगस्त 1608 को सूरत के बंदरगाह पर अंग्रेजों का आगमन हुआ ।
दोस्तों, इस आर्टिकल में हमने मध्यकालीन भारत का इतिहास (दसवीं से सोलहवीं शताब्दी तक) के बारे में जाना। अगले आर्टिकल में हम आधुनिक भारत का इतिहास (सोलहवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी तक) के बारे में जानेंगे।
आशा करता हूँ कि इस आर्टिकल को पढ़कर आपको मध्यकालीन भारत के बारे में काफी जानकारी मिली होगी। अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आया हो तो कृपया इसे लाइक, शेयर और कमेंट करें, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, तब तक के लिये , जय हिन्द – जय भारत।
लेखक परिचय
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