मत्स्य अवतार (मछली का अवतार) जो कि भगवान विष्णु के मुख्य 10 अवतारों में से सबसे पहला अवतार हुआ था, इस अवतार में भगवान विष्णु ने पृथ्वी को भयानक जल प्रलय से बचाया था, साथ ही साथ उस समय के सबसे भयानक दैत्य हयग्रीव का वध करके चारों वेदों की रक्षा किया था, जिन्हें दैत्य हयग्रीव ने अपहरण करके समुद्र की गहराई में ले जाकर छिपा दिया था, इसके बारे में विस्तार पूर्वक जानने के लिए हम आपके समक्ष इस आर्टिकल को लेकर आये हैं, तो आइये अब शुरू करते हैं..मत्स्य अवतार (भगवान विष्णु का पहला अवतार)
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मत्स्य अवतार (भगवान विष्णु का पहला अवतार)
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता हैं, और उन्होंने कहा भी है कि जब-जब भी पृथ्वी पर अधर्म की प्रधानता होगी और धर्म पर संकट आने की संभावना होगी, तब-तब मैं पृथ्वी की रक्षा के लिए अवतार लूंगा और अधर्मियों का नाश करके धर्म की रक्षा करूँगा।
भगवान का “मत्स्य अवतार” यह सतयुग की एक घटना है, जब प्रलय के अंत में ब्रह्मा जी ने पृथ्वी के शुद्धिकरण के लिए भगवान शिव से जल प्रलय करने को कहा क्योंकि ब्रह्मा जी का यह मानना था कि पृथ्वी की उत्पत्ति का जो कारण था, बहुत कुछ उसके विपरीत हो रहा है, इसलिए एक बार जल प्रलय करके पृथ्वी को दोबारा से शुद्ध करके पृथ्वी पर फिर से नवजीवन की शुरुआत की जाए।
जलप्रलय की बात सुनकर माता पार्वती ने भगवान शिव से चिंता प्रकट करते हुए एक सवाल किया कि हे प्रभु इस जल प्रलय में सारी पृथ्वी जल मग्न हो जाएगी और ऐसे में निर्दोष भी इसके शिकार हो जायेंगे, क्या यह जल प्रलय रोका नहीं जा सकता…?
इस बात पर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि हे देवी ये जल प्रलय करने का आदेश ब्रह्मा जी का है जिसे मै नहीं टाल सकता, लेकिन हाँ इस जल प्रलय में किसका विनाश होगा और कौन बचेगा, ये भगवान विष्णु के हाथ में है और इसका उपाय वही करेंगे।
दोस्तों, यहाँ पर हम आपको एक बात यह बताना चाहेंगे कि ब्रह्मा,विष्णु और महेश अर्थात शिव ये तीनों ही सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ देवता हैं जिनमें ब्रह्मा जी सृष्टि के निर्माता, विष्णु जी सृष्टि के पालनकर्ता और शिव जी सृष्टि के संहारक हैं। ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों ही देवता अपनी-अपनी भूमिकाओं में श्रेष्ठ हैं, और कोई भी एक-दूसरे के कार्यों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता।
तभी तो भगवान शिव ने पार्वती से कहा था कि ब्रह्मा जी के आदेश का पालन तो मुझे करना ही होगा अर्थात पृथ्वी पर जल प्रलय करना ही होगा, इसे ना ही शिव और ना ही विष्णु रोक सकते हैं, हाँ जल प्रलय के पश्चात् किसका क्या होगा ये भगवान विष्णु को सोचना है क्योंकि वे पृथ्वी के पालनकर्ता हैं।
अब सवाल यह उठता है कि पृथ्वी पर जल प्रलय होने वाली है, और इसमें किसका क्या होगा ये भगवान विष्णु का विभाग है और अब शुरू होता है भगवान की महिमा जिसके फलस्वरूप होता है भगवान का मत्स्य अवतार जिसमें वे मछली का रूप धारण करके पृथ्वी पर आते हैं, लेकिन कैसे…? आइये जानते हैं…..
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राजा सत्यव्रत (वैवस्वत मनु) जो कि उस समय के एक प्रतापी राजा थे, वे कृतमाला नदी में स्नान कर रहे थे, स्नान के पश्चात् जब वे सूर्य देवता के तर्पण के लिए अपना हाथ ऊपर उठाते हैं तभी एक छोटी सी मछली उनके अंजलि में आ जाती है जिसे वे दोबारा फिर से उस नदी में छोड़ देते हैं।
राजा सत्यव्रत द्वारा नदी में छोड़े जाने पर वह मछली राजन से बोली कि हे राजन इस जल में बड़े-बड़े जीव रहते हैं, जिनसे मुझे खतरा है, क्योंकि बड़े जीव छोटे जीवों को अपना आहार बना लेते हैं, कृपया मेरे प्राणों की रक्षा करें, और मछली की इस बात को सुनकर राजा सत्यव्रत को उस पर दया आ जाती है जिस कारण वे उस मछली को शरण देते हुए अपने कमंडल में रखकर अपने घर ले जाते हैं।
राजा सत्यव्रत राजमहल में पहुँचकर अपना कमंडल एक स्थान पर रख देते हैं, थोड़ी देर पश्चात् उस कमंडल में से आवाज आती है तो राजा देखते हैं कि उस मछली का आकार काफी बड़ा हो चूका था, जो कि अब उस कमंडल में नहीं रखा जा सकता था, इसलिए उस मछली ने भी उनसे अनुरोध किया कि कृपया मेरे लिए कोई और इससे बड़ा स्थान ढूंढे मै इसमें नहीं रह पा रही हूँ, तब राजा सत्यव्रत ने उसे कमंडल से निकालकर पानी के बड़े पात्र में डाल दिया।
कुछ समय पश्चात् वह पात्र भी उस मछली के लिए छोटा पड़ने लगा, और देखते ही देखते उसका आकार इतना बड़ा हो गया कि अब उस मछली को उस पात्र में से निकालकर सरोवर में डालना पड़ा, कुछ समय बाद उस मछली का आकार इतना बड़ा हो गया कि अब वह सरोवर भी उसके लिए छोटा पड़ने लगा तत्पश्चात अंततः उस मछली को समुद्र में ही डाल दिया गया।
समुद्र में जब उस मछली को डाला गया तब भी उसका आकार लगातार बढ़ता ही जा रहा था, और देखते ही देखते इतना बढ़ गया कि वह विशालकाय समुद्र भी उस मछली के लिए छोटा जान पड़ रहा था, यह सब देखकर राजा काफी आश्चर्यचकित हो रहे थे, तब जाकर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने उस रहस्यमयी मछली से विनम्रतापूर्वक पूछा कि आप कौन हैं…? जिनके लिए ये विशाल सागर भी छोटा जान पड़ रहा है, कृपया अपने बारे में बतायें।
राजा सत्यव्रत के विनम्रतापूर्वक पूछने पर भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि मै हयग्रीव नामक दैत्य का वध करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुआ हूँ, क्योंकि उसने छल से वेदों को चुरा लिया है, जिसके कारण जगत में चारों ओर अज्ञानता और अधर्म फ़ैल गया है।
भगवान विष्णु ने इसके आगे के बारे में भी सचेत करते हुए राजा सत्यव्रत को बताया कि आज से 7 दिन बाद पृथ्वी पर जल प्रलय आएगी, और वह दृस्य बहुत ही भयानक होगा, तत्पश्चात सम्पूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी, जल के अतिरिक्त वहाँ कुछ भी नहीं होगा, और हे राजन – मै आपको मानव की रक्षा हेतु एक नाव की सुविधा प्रदान कर रहा हूँ, आप अपने साथ अपनी पत्नी सतरूपा तथा सभी प्रकार की आवश्यक सामग्री जैसे – अनाज, औषधि, बीज, पशु-पक्षी आदि एवं सप्त ऋषियों को साथ लेकर उस नाव पर सवार हो जाइयेगा।
भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत से आगे और भी कहा कि इन सबके साथ आप वासुकी नाग को भी अपने साथ ले लीजियेगा, जब प्रलय आएगी तब मै मत्स्य अवतार में आपको दिखाई दूंगा और आप उस नाव को वासुकी नाग की सहायता से मेरे सींघ से बांध देना, जिससे कि मै उस नाव के द्वारा आप सभी को सुमेरु पर्वत पर सुरक्षित पहुँचा दूँगा।
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भगवान की इस बात को राजा सत्यव्रत ने स्वीकार किया और सातवें दिन जब पृथ्वी पर प्रलय का तांडव मंडराने लगा और समुद्र अपनी सीमाओं को लांघकर पृथ्वी को जलमग्न करने पर उतारू हो रहे थे कि जैसे अब पृथ्वी जल में समाने वाली है, और तभी राजा सत्यव्रत को एक नाव दिखा जिसमें भगवान के आदेशानुसार उन्होंने सम्मानपूर्वक समस्त सप्त ऋषियों, साथ में आवश्यक सामग्री जैसे – अनाज, औषधि और बीज को भरकर राजा सत्यव्रत भी उसी नाव पर सवार हो गए।
सागर के वेग के कारण नाव अपने आप चलने लगी, चारों ओर जल ही जल इसके अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, और उसी क्षण सागर के मध्य राजा सत्यव्रत को भगवान विष्णु मत्स्य रूप में दिखाई दिए, और राजा ने उनके कहे अनुसार ही सब कुछ किया।
उस नाव को वासुकी नाग के सहारे मत्स्य की सींघ से बांध दिया, और भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार ने उन सबको सुरक्षित सुमेरु पर्वत तक पहुँचाकर अपना वचन निभाया। साथ ही साथ श्री हरी से आत्मज्ञान पाकर राजा सत्यव्रत और सप्त ऋषि धन्य हो गए।
और इससे पहले ही भगवान विष्णु ने दैत्य हयग्रीव का वध करके चारों वेदों को उसके चंगुल से छुड़ाकर अपने मुंह के द्वारा अपने अंदर समाहित कर लिया था जिन्हें प्रलय के पश्चात् उन्होंने राजा सत्यव्रत (वैवस्वत मनु) को समर्पित किया ताकि वे स्वयं तथा अपनी पत्नी सतरूपा, चारों वेदों, सप्त ऋषियों, आवश्यक सामग्री जैसे – अनाज, औषधि, बीज, और पशु-पक्षी आदि की सहायता से पृथ्वी पर फिर से मानव जीवन की उत्पत्ति और विकास को संभव बना सकें।
इस प्रकार भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा तो की ही साथ ही साथ वेदों का भी उद्धार किया जिसमें समस्त पृथ्वीवासियों का कल्याण समाहित है। और भगवान ने पृथ्वीवासियों से किया हुआ अपना सपथ भी पूरा किया, जिसमे उन्होंने कहा है कि…..
गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 और 8 में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि…..
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। (7)
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (8)
भावार्थ
हे भरतवंशी, जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है तब तब मै अवतार लेता हूँ। हे अर्जुन, भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ।
भक्तों, गीता का यह श्लोक हालाँकि महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, लेकिन इससे पहले भी विष्णु भगवान ने यह श्लोक बहुत बार बोला है, विष्णु पुराण में भगवान ने कहा है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म धर्म पर हावी होने लगेगा तब-तब मै अवतार लूंगा और धर्म की रक्षा करूँगा।
दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही साथ आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय हिन्द – जय भारत
लेखक परिचय
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