प्राचीन भारत का इतिहास > यह एक ऐसा विषय है जिसे हर एक भारतीय को जानना चाहिए क्योंकि इसमें भारत के मानव, धर्म और उसके इतिहास के बारे में सब कुछ बताया गया है। प्राचीन भारत मानव जाति के बारे में सब कुछ बताता है कि वह कब, कहाँ, कैसे और किस तरह अस्तित्व में आया और विकसित हुआ। इस आर्टिकल के माध्यम से हम प्राचीन भारत का पूर्ण विश्लेषण करेंगे, इसलिए बने रहिएगा हमारे साथ क्योंकि इस आर्टिकल होगी भारत के प्राचीन इतिहास के बारे में बात, तो आइये अब शुरू करते हैं।
प्राचीन भारत का इतिहास
प्राचीन भारत वह विषय है जिसके के बारे में मुख्यतः हमें हमारी किताबों में स्नातक (B.A.) की पढ़ाई के दौरान इतिहास विषय में पढ़ाया जाता है इसके बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी में भी इस विषय की अपनी महत्ता है। यह विषय वाकई में बड़ा ही दिलचस्प है क्योंकि इसमें मानव के उदय से लेकर भारत में महमूद गजनवी के आक्रमण के पहले तक के काल के बारे में सब कुछ बताया गया है।
प्राचीन भारत के इतिहास का समय मानव सभ्यता के शुरुआत से लेकर मुस्लिम शासकों के द्वारा दिल्ली में अपना आधिपत्य स्थापित करने के बीच के काल को माना जाता है (मानव उदय से 10 वीं शताब्दी)। जिसके अंतर्गत मानव सभ्यता, मानव विकास, ईसा पूर्व के शासनकाल से लेकर मुस्लिम शासनकाल के पहले का समय आता है।
प्राचीन भारत के सभ्यता की शुरुआत वैदिक सभ्यता से होती है जो आर्यों से सम्बंधित है, आर्यों के आगमन के साथ ही साहित्यिक वेदों के नाम से ही इसका नामकरण हुआ। जैसा कि आप जानते ही होंगे कि आर्य लोगों की भाषा संस्कृत थी और उनका धर्म “वैदिक धर्म या सनातन धर्म” के नाम से जाना जाता था तत्पश्चात विदेशी आगमन द्वारा इस धर्म को हिन्दू नाम दिया गया।
पाषाण युग
पाषाण युग ही वह समय था जिसे मानव सभ्यता का शुरुआती काल कहते हैं उस समय मानव आज जैसे मानव की तरह विकसित नहीं था बल्कि प्राकृतिक आपदाओं से जूझता रहता था, पत्थर की गुफाओं में रहता था, पत्थर के औजार से शिकार करता था और कंद-मूल खाकर अपना जीवन व्यतीत करता था।
पुरापाषाण युग
पृथ्वी का वह समय जिसे हिमयुग कहते हैं, जब बहुत ठंढ पड़ती थी, पाषाणयुग का एक लम्बा समय उसी युग में बीता था। वह युग जलवायु परिवर्तनों और पत्थर के औजारों के निर्माण का समय था।
पुरापाषाण युग को तीन भागों में बाँटा जाता है :
प्रारंभिक पुरापाषाण युग (25 लाख ईसा पूर्व से 1 लाख ईसा पूर्व तक)
मध्य पुरापाषाण युग (1 लाख ईसा पूर्व से 40 हजार ईसा पूर्व तक)
उच्च पुरापाषाण युग (40 हजार ईसा पूर्व से 10 हजार ईसा पूर्व तक)
नवपाषाण युग
भारत में नव पाषाणयुग लगभग (6 हजार ईसा पूर्व से 1 हजार ईसा पूर्व तक) के काल को माना जाता है। इस युग में मानव पत्थर के कुल्हाड़ियाँ बनाता था और उन्हें घिसकर-चमकाकर तैयार रखता था। उत्तर भारत में नव पाषाणयुग का स्थल बुर्जहोम जो कश्मीर स्थित है में पाया गया है।
ताम्रपाषाण युग
नव पाषाणयुग के समाप्ति के साथ से ही धातुओं का प्रयोग शुरू हो गया था। ताम्र पाषाणयुग में तांबा तथा प्रस्तर के हथियार ही प्रयोग में लाये जाते थे। इस समय तक लोहा या कांसे की शुरुआत नहीं हुई थी। इस युग में भारत में पश्चिमी महाराष्ट्र, पश्चिमी मध्य प्रदेश, दक्षिण पूर्वी राजस्थान समेत दक्षिणी-पूर्वी भारत में मानवीय बस्तियाँ पायी गई थीं। ताम्र पाषाणयुग के समय तक समस्त भारत में जंगल ही जंगल था।
कांस्य युग
कांस्य युग पाषाणयुग और लौहयुग के बीच के समय को माना जाता है जिसमे मानव ने तांबे और रांगे के मिश्रित धातु कांसे का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। इस युग में मनुष्य शहरी सभ्यताओं में बसने लगा था। जिस कारण से दुनियाँ के कई जगहों में पौराणिक सभ्यताओं का विकास होना शुरू हो गया था। इस युग में ही विभिन्न सभ्यताओं में अलग-अलग लिपियों का विकास हुआ जिसके कारण से आज के पुरातत्विकों को उस युग के बारे में बहुत कुछ जानकारियाँ मिलती हैं।
सिंधुघाटी सभ्यता
सिंधुघाटी सभ्यता को तीन भागों में बांटा गया है :
पूर्व हड़प्पा काल (3300 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व तक)
परिपक्व काल (2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक)
उत्तरार्ध हड़प्पा काल (1900 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक)
सिंधुघाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिम में था, यह सभ्यता हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना जाता है जिसे लगभग 8000 वर्ष पुराना माना जाता है।
सिंधुघाटी सभ्यता सिंधु नदी घाटी के आस-पास फैली हुई थी। सिंधु (इंडस) के कारण ही इसके आस-पास रहने वाले लोगों के लिए सिंधु से हिन्दू उच्चारण का जन्म हुआ। प्राप्त अवशेषों के अनुसार इसे सबसे प्राचीन नगर का दर्जा दिया गया है साथ ही कांस्य का सबसे पहले प्रयोग होने के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है।
प्राचीन भारत का इतिहास
वैदिक काल
सिंधुघाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के बाद जिस सभ्यता का विकास हुआ उसे ही आर्य अथवा वैदिक सभ्यता कहते हैं। जिसकी जानकारी हमें वेदों से मिलती है। जो ऋग्वेद से सम्बन्ध रखता है क्योंकि ऋग्वेद ही सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण माना जाता है।
वैदिक काल को दो भागों में बांटा गया है :
पूर्व वैदिक काल (1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक)
उत्तर वैदिक काल (1000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक)
वैसे विद्वानों के अनुसार वैदिक सभ्यता का अनुमानित समय 5000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
उत्तर वैदिक काल
माना जाता है कि ऋग्वैदिक काल में आर्य लोग सिंधु नदी और सरस्वती नदी के बीच में रहते थे लेकिन बाद में वे धीरे-धीरे पूरे भारत में फैलते चले गए और गंगा नदी समेत उससे निकली अन्य नदियों के आस-पास बसते चले गए। इस तरह उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे जगहों पर कुछ नए राज्यों का विकास हुआ, जैसे – काशी, मिथिला, मगध आदि।
ऋग्वैदिक काल में गंगा और यमुना से भी ज्यादा सरस्वती नदी को महत्वपूर्ण माना जाता था। इसी काल में ही वर्णों के विभाजन में बदलाव होना शुरू हुआ और व्यवसाय के बदले जन्म ने यह स्थान ले लिया अर्थात इससे पहले लोग जो काम करते थे उसी से उनका वर्ण निर्धारित होता था लेकिन इसके बाद से जो परिवर्तन हुआ उसके अंतर्गत जो मनुष्य जिस वर्ण में पैदा होगा उसी के नाम से जाना जायेगा।
वैदिक साहित्य
वैदिक साहित्य में चार वेद और उनकी संहिताओं – ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषदों और वेदांग सम्मिलित हैं। वैदिक साहित्य के अंतर्गत चार्रों वेद के नाम हैं – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद और ये चारों ही विश्व के सबसे पहले प्रमाणित ग्रन्थ हैं। आइये इनको बारीकी से समझते हैं।
ऋग्वेद
गायत्री मंत्र ऋग्वेद में सर्व प्रथम है, यह देवताओं की स्तुति से सम्बंधित रचनाओं का संग्रह है, इसमें 33 प्रकार के देवों का उल्लेख मिलता है।
यजुर्वेद
यजु का अर्थ यज्ञ होता है, इसमें धनुर्य विद्या का उल्लेख है, इसमें यज्ञ की विधियों का वर्णन किया गया है, यह 40 अध्यायों में विभाजित है।
सामवेद
इसकी रचना ऋग्वेद में दिए गए मन्त्रों को गाने योग्य बनाने के लिए की गयी थी, इसमें 1810 छंद हैं, यह भारत की प्रथम संगीतात्मक पुरतक है।
अथर्ववेद
इसमें तंत्र-मंत्र,-जादू-टोना, चमत्कार, रहस्यमयी विद्या एवं आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों का उल्लेख है, इसमें कुल 20 अध्यायों में 5687 मन्त्र हैं।
जैन और बौद्ध धर्म की स्थापना
600 ईसा पूर्व वैदिक कर्मकांडो का असर कम होने लगा जिसके फलस्वरूप बहुत सारे सम्प्रदायों की स्थापना हुई। ऐसा माना जाता है कि लगभग 60 से ज्यादा संप्रदाय अस्तित्व में आये लेकिन उनमे से ज्यादातर समय के साथ लुप्त हो गए लेकिन दो संप्रदाय अपना प्रभाव जमाया जिनमे जैन धर्म और बौद्ध ने काफी लोगों को प्रभावित किया।
जैन धर्म
जैन धर्म के दो तीर्थकरों की चर्चा ऋग्वेद में मिलती है जिनमे ऋषभनाथ और अरिष्टनेमि का नाम आता है। माना जाता है कि हड़प्पा की खुदाई के दौरान कुछ ऐसे साक्ष्य मिले थे जो किसी तीर्थकर के होने का प्रमाण पेश करते हैं।
पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेइसवें और भगवान महाबीर चौबीसवें तीर्थकर हैं। वर्धमान महाबीर जैन धर्म के सबसे प्रमुख और अंतिम तीर्थकर थे जिनका जन्म 540 ईसा पूर्व कुंडग्राम (वैशाली) में हुआ था महाबीर स्वामी को 42 वर्ष की उम्र में परम ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उनके अनुयायी जैन धर्म को अपनाने लगे और इस तरह जैन धर्म की स्थापना हुई। जैन धर्म भारत की बनिया जाति की श्रेणी में आती है ये लोग मंझे हुए व्यापारी होते हैं।
बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध की विचारधारा से प्रभावित है जो एक क्षत्रिय परिवार में जन्मे थे। उनका जन्म 563 ईसा पूर्व में शाक्यकुल के राजा शुद्दोधन के घर हुआ था। वे अचानक ही अपना घर-बार छोड़कर सत्य की खोज में निकल गए।
गौतम बुद्ध के विचार लोगों को अच्छे लगे और उनके अनुयायी बौद्ध धर्म को अपनाने लगे इस तरह बौद्ध धर्म अस्तित्व में आया। भारत के बाहर भी बौद्ध धर्म ने अपना प्रभाव फैलाया। जिनमे चीन, जापान और श्री लंका जैसे देश शामिल हैं।
यूनानी आक्रमण
लगभग 400 ईसा पूर्व पश्चिम एशिया जो आज का तुर्की है पर यूनानी और फ़ारसी राजाओं की नज़र पड़ी और दोनों के बीच अपने-अपने प्रभुत्व को ज़माने के लिए संघर्ष शुरू हुआ जिसमें यूनानी शासक सिकंदर विजयी हुआ।
सिकंदर को तो आप जानते ही होंगे जिसने विश्व विजय का सपना देखा था और अपने सपने को पूरा करने के अभियान में वह आगे बढ़ रहा था और अपने अभियान को सफल बनाते हुए वह पश्चिम एशिया को पार करते हुए अरब और मिस्र होते हुए फारस के केंद्र ईरान तक पहुँच गया।
सिकंदर के विश्व-विजयी अभियान में भारत का नाम भी था इसलिए वह अपनी विशाल सेना को लेकर ईरान से आगे बढ़ता है और अफगानिस्तान होते हुए 326 ईसा पूर्व में उत्तर-पश्चिम भारत तक पहुँच जाता है।
भारत में सिकंदर का सामना करने के लिए राजा पोरस सामने आते हैं और उसका डटकर मुकाबला करते हैं लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ता है और उन्हें सिकंदर के सामने बंदी बनाकर लाया जाता है और जब सिकंदर राजा पोरस से यह पूछता है कि तुम्हारे साथ क्या किया जाए तो पोरस निर्भय होकर कहते हैं कि जो एक राजा दूसरे राजा के साथ वर्ताव करता है वही आप भी मेरे साथ करें।
राजा पोरस की यह बात सिकंदर को अच्छी लगी और उसने उन्हें उनका पूरा राज्य वापिस दे दिया क्योंकि सिकंदर एक बहादुर शासक था इस कारण से वह बहादुर लोगों की क़द्र करता था।
सिकंदर के विश्व-विजयी अभियान को तब झटका लगा जब उनका सामना भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य से हुआ क्योंकि चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु कौटिल्य जिन्हें आचार्य चाणक्य के नाम से जाना जाता है ने अपनी बेहतरीन कूटनीति और चन्द्रगुप्त मौर्य की विशाल सेना के दम पर विश्व-विजेता का सपना देखने वाले सिकंदर को नाकों चने चबवा दिए जिससे सिकंदर पूरी तरह से पस्त होकर वापिस मुड़ जाता है।
मौर्य साम्राज्य
नन्द राजा घनानन के द्वारा उनके राजमहल में आचार्य चाणक्य की बेइज़्ज़ती होने पर उन्होंने घनानन के बर्बादी की कसम खाई और अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए चाणक्य ने एक छोटे से बालक जो घनानन के जुल्मों का शिकार हुआ था चंदू को योद्धा चन्द्रगुप्त बना दिया जिसने घनानन को हराकर उसकी गद्दी को प्राप्त किया।
प्राचीन भारत का इतिहास
चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद बिंदुसार के पुत्र अशोक (जिन्हें बाद में सम्राट अशोक के नाम से जाना गया) ने मौर्य साम्राज्य को काफी आगे बढ़ाया। सम्राट अशोक के जीवन का सबसे आखरी युद्ध कलिंग का युद्ध था जिसमे उनके सेना द्वारा मारे गए दुश्मन के सेना के लाशों को देखने के बाद उनका मन बड़ा विमुख हुआ जिससे उन्हें आत्म-ग्लानि हुई तत्पश्चात उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और उसका प्रचार भी करवाया।
मौर्यों के बाद के शासनकाल
मौर्य वंश के बाद शुंग वंश आया जिसने 185 ईसा पूर्व से 75 ईसा राज किया और उसके बाद सातवाहनों, चेर, चोल और पांड्यों ने राज किया। तत्पश्चात पह्वों, शकों का शासनकाल रहा। उसके बाद 78 ईस्वी से लेकर 101 ईस्वी तक कनिष्कों का शासनकाल रहा।
गुप्त काल
320 ईस्वी में चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा गुप्त वंश अस्तित्व में आया जिसके बाद समुद्र गुप्त 340 ईस्वी, चन्द्रगुप्त द्वितीय, कुमार गुप्तप्रथम 413 ईस्वी से 455 ईस्वी और स्कंदगुप्त का शासनकाल रहा। इसके बाद भी लगभग 100 वर्षों तक गुप्त वंश का शासनकाल रहा।
606 ईस्वी में हर्ष के आने तक उथल-पुथल का माहौल चलता रहा और तब तक किसी भी एक प्रमुख शासनकाल की कमी रही। इसी काल में उत्तर और दक्षिण भारत में कला और साहित्य जैसे क्षेत्र में काफी विकास हुआ इस काल का सबसे प्रभावी शासक समुद्रगुप्त था और इसी काल में ही भारत को सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाने लगा था।
इस्लाम धर्म की स्थापना
सातवीं शताब्दी में इस्लाम धर्म की स्थापना हुई, हालाँकि इस्लाम धर्म की स्थापना भारत में नहीं हुई थी बल्कि सऊदी अरब में हुई थी लेकिन इसका एक बहुत बड़ा असर भारत की धरती पर पड़ा। क्योंकि इस्लाम धर्म के अनुयायी जो मुसलमान कहलाये उन्होंने भारत की धरती पर सैकड़ों सालों तक राज किया।
610 ईस्वी में पैगम्बर मोहम्मद के नेतृत्व में इस्लाम धर्म की स्थापना हुई और उनके द्वारा ही लोगों को कुरान सुनाया गया। 632 ईस्वी में उनके मौत के बाद इस्लाम धर्म को आगे बढ़ाने का काम खलीफा अबुबक्र ने किया और इस्लाम धर्म का विस्तार किया। इस तरह इस्लाम धर्म बड़ी ही तेजी से सऊदी अरब से दुनियाँ के अन्य हिस्सों तक फैला।
महमूद गजनवी के आक्रमण
महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण के साथ से ही भारत में एक नए युग की शुरुआत हुई जहाँ से मध्यकालीन भारत का इतिहास शुरू होता है। क्योकि इससे पहले भारत की जमीन पर भारतीय शासकों का राज था लेकिन इसके बाद से ही सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत पर विदेशी लुटेरों की ऐसी नज़र पड़ी जो कई शताब्दियों तक भारत की धरती पर अपना खेल खेलते रहे जिसके कारण सोने की चिड़िया कही जाने वाली जमीन उसके खुद के लिए आफत की पुड़िया बन गई।
महमूद गजनवी मध्य अफगानिस्तान के गजनवी राजवंश का शासक था जिसने महज 27 साल की उम्र में राजगद्दी संभाली और भारत के मंदिरों में रखे खजानों के बारे में उसने सुना था जिन्हें लूटने के उद्देश्य से वह भारत की तरफ अपनी रुख करता है।
महमूद गजनवी ने भारत पर सबसे पहला आक्रमण 1000 ईस्वी में किया उसके बाद वह गजनी लौट गया लेकिन 1000 ईस्वी से 1027 ईस्वी तक उसने लगातार भारत पर 17 बार आक्रमण किया और लूटता रहा और उसी काल को प्राचीन भारत का अंत और मध्यकालीन भारत का शुरुआती काल माना जाता है।
दोस्तों, इस आर्टिकल में हमने प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में जाना है, अगले आर्टिकल में हम मध्यकालीन भारत के इतिहास के बारे में जानेंगे। जो महमूद गजनवी के आक्रमण (दसवीं शताब्दी) से लेकर भारत में बाबर का आगमन तथा अंग्रेजों के आने (सोलहवीं शताब्दी) से पहले तक के बारे में होगा।
आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके जानकारियों की सूची में चार-चाँद लगाएगा और आपको और ज्यादा जानकार बनाएगा।
आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, तब तक के लिए, जय हिन्द-जय भारत।
लेखक परिचय
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