किसी ने सच ही कहा है, कि जो डर गया वो मर गया, यह 100 % सत्य है, अब है तो है लेकिन ये डर आता कैसे है, इसके कितने रूप होते हैं और इसे कैसे भगाया जाता है यह सब जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें “डर को कैसे भगायें | डर के 6 रूप” और जानें सब कुछ।
नमस्कार दोस्तों, मै अमित दुबे आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ………………………………..
दोस्तों, इस संसार में अधिकतर लोग कहते हैं कि मुझे डर नहीं लगता, मै किसी से भी नहीं डरता हूँ, सच कहूं तो वे लोग झूठ बोलते हैं क्योंकि संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो डरता ना हो बस फर्क इस बात का है कि “कोई कम डरता है तो कोई ज्यादा” डरता है, कुछ लोग डर का सामना करके उससे पार जाते हुए आगे निकल जाते हैं और कुछ लोग डर नामक भूत के नीचे दबकर एक दब्बू इंसान बनकर ही पूरा जीवन गुज़ार देते हैं।
इस आर्टिकल में हम डर के उन सभी बड़े पहलुओं पर फोकस करेंगे जो ज्यादातर लोगों में पाए जाते हैं और साथ ही उनके समाधान पर भी चर्चा करेंगे, तो आइये अब आगे बढ़ते हैं और डर की गहराई में जाते हैं।
डर को कैसे भगायें | डर के 6 रूप
डर को कैसे भगायें | डर के 6 रूप
सबसे पहले हम डर के उन रूपों के बारे में जानते हैं जो हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं, डर के 6 महत्वपूर्ण रूप इस प्रकार हैं।
1. असफलता का डर
2. बिछड़ने का डर
3. गरीबी का डर
4. मृत्यु का डर
5. समाज का डर
6. आगे बढ़ने का डर
आपने ऊपर डर के 6 महत्वपूर्ण रूपों के बारे में जाना और अब हम इनके बारे में विस्तार से जानेंगे कि कौन से रूप का हमारे जीवन में किस प्रकार का प्रभाव पड़ता है।
असफलता का डर :
यह एक ऐसा डर है, जो हमें किसी भी काम को करने से पहले कई दुविधाओं में डालता है, जैसे – अगर मै इस काम में असफल हो गया तो लोग क्या कहेंगे, हमारा मज़ाक उड़ाएंगे, हमारी आलोचना करेंगे और हम पर छींटा-कसी करेंगे आदि।
इस दुनियाँ में जितने भी लोग सफल हुए हैं, उन्होंने कभी ना कभी असफलता का सामना जरूर किया होगा, क्योंकि बिना असफल हुए कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता, असफलता तो सफलता के रास्ते का राजमार्ग है इसलिए असफलता से निराश न होकर निरंतर आगे बढ़ना चाहिए और ऐसा करने से हमारे अंदर का डर दूर हो जाता है और एक दिन हम सफलता को प्राप्त कर लेते हैं और जो लोग कभी हमारा मज़ाक उड़ा रहे थे वही एक दिन हमारी इज़्ज़त करने लगते हैं।
इस डर से पार पाने का सीधा सा उपाय है, कि हम असफलता से निराश न होकर उसे गले लगायें और उससे कुछ नया सीखने की कोशिश करें क्योंकि ऐसा करने से हम धीरे-धीरे अपने कामों में निपुण हो जाते हैं और एक दिन ऐसा भी आता है जब हम सफल भी हो जाते हैं।
सफलता की राहों में चलते हुए, जब भी आपको थकान महसूस हो तो एक पल के लिए रुकना और सोचना उन लोगों के बारे में जिन्होंने आपके चलते वक्त आपका मज़ाक उड़ाया था और जो आपके हार का इंतज़ार कर रहे हैं अगर आप यहाँ से हारकर वापिस जाते हैं तो वे लोग आपका कितना मजाक उड़ाएंगे यह सोचते ही आपकी सारी थकान मिट जायेगी और आपका डर भी भाग जाएगा और आप नई ऊर्जा के साथ पुनः उठ खड़े होने और आगे बढ़ने लगेंगे और जाहिर सी बात है कि अगर आप निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे तो एक दिन आप अपनी मंज़िल को जरूर प्राप्त कर लेंगे।
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बिछड़ने का डर :
यह डर, हमारे अंदर अपने चाहने वालों के प्रति पैदा होने वाला डर होता है इसके अंतर्गत हमारे अंदर हमेशा एक भय सा बना रहता है कि हम जिन्हे चाहते हैं, चाहे दोस्त हो या रिस्तेदार, पड़ोसी हो या फिर परिवार उनसे दूर हो जाने पर हम उनके बिना कैसे रह पाएंगे।
यहाँ पर हमें यह जरूर समझना चाहिए, कि यह जिंदगी एक सफर है और इस सफर में समय के साथ-साथ हमारे परिवार, रिस्तेदार, दोस्त, पड़ोसी आदि बदलते रहते हैं जिसमे सबसे बड़ी भूमिका उम्र निभाती है, हमारे उम्र के साथ ही हमारे सम्बन्ध भी बदलते जाते हैं और यह हमारे बस में भी नहीं होता है कि हम सब कुछ अपने हिसाब से ही चला सकें इसलिए इस कटु सत्य को स्वीकार करते हुए हमें जीवन पथ पर चलते रहना चाहिए क्योंकि यह दुनियाँ एक मेला है लोग मिलते बिछड़ते रहते हैं लेकिन जिंदगी चलती रहती है यह किसी का भी इंतज़ार नहीं करती है तो फिर आप किसका इंतज़ार कर रहे हैं अकेले आये हैं और अकेले जाएंगे भी, जो अभी आपके साथ हैं उन्हीं के साथ खुश रहने की कोशिश करें और जो राहों में मिलते रहें उनसे भी प्रेम पूर्वक व्यवहार करते रहें लेकिन हद से ज्यादा किसी को भी ना चाहें क्योंकि वही चाहत आपके अंदर बिछड़ने का डर पैदा करता है।
बिछड़ने का डर प्यार से सम्बन्ध रखता है, क्योंकि हम जिससे प्यार करते हैं उससे बिछड़ने से डरते हैं। दोस्तों, यहाँ पर मै एक कड़वा सत्य कहना चाहूंगा कि इतना प्यार ही क्यों किसी से करें कि उससे बिछड़ने का डर आपके अंदर भय पैदा करे, वैसे भी जो इंसान बुद्धजीवी होता है वह यह जानता है कि इस दुनियाँ में कोई भी किसी का सच्चा साथी नहीं है सब स्वार्थ्य का रिस्ता है, सच्चा रिस्ता तो सिर्फ आत्मा और परमात्मा का है हम एक आत्मा हैं और ऊपर वाला परमात्मा है बाकी सब भ्रम है कब टूट जाए कुछ पता नहीं इसलिए मै ये नहीं कहता कि आप किसी से प्यार ही ना करें लेकिन उतना भी ना करें कि वह प्यार आपके अंदर बिछड़ने का भयानक डर पैदा करे।
डर को कैसे भगायें | डर के 6 रूप
गरीबी का डर :
इस दुनियाँ में सबसे गंभीर बीमारी है गरीबी और इसकी गंभीरता को वही जानता है जिसने भी इसे झेला है, गरीबी वह भयंकर बीमारी है जिसके कारण लोग इंसान को इंसान समझने में भी शर्म करते हैं, अपने बेगाने हो जाते हैं, रिश्ते भी अनजाने हो जाते हैं। यह डर, सभी डरों में एक अजीब ही डर होता है क्योंकि इसके कारण लोग आपसे दूरी बनाने लगते है जैसे यह कोई अभिशाप हो।
किसी महापुरुष ने कहा है, कि अगर हम गरीब पैदा हुए हैं तो यह हमारी गलती नहीं हो सकती लेकिन अगर हम गरीब मरते हैं तो इसमें हमारी जरूर कहीं न कहीं गलती रही होगी। इसलिए इस बीमारी से बाहर निकलने के लिए हमें अपनी सोच को बदलना होगा अमीर बनने का सपना देखना होगा और उस पर गंभीरता से अमल भी करना पड़ेगा अगर हम अपने दिमाग और शरीर का अपने जीवन में सही इस्तेमाल करें तो गरीबी नामक बीमारी से बाहर निकला जा सकता है।
ज्यादातर लोगों की शिकायतें कुछ इस तरह की होती हैं :
मेरे परिवार से मुझे कोई सहयोग नहीं मिल पाया इसलिए मै कुछ बड़ा नहीं कर पाया।
मै ज्यादा पढ़-लिख नहीं पाया इसलिए आज मेरी यह दशा है।
मेरी अंग्रेजी अच्छी नहीं है इसलिए मुझे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली।
बचपन में मै गलत संगत में पड़ गया था इसलिए मेरा जीवन पथभ्रष्ट हो गया।
मेरा परिवार गरीब था इसलिए मै गरीब हूँ इसमें आश्चर्य की बात क्या है।
दोस्तों, गरीबी कुछ नहीं महज एक सोच है और यह एक ऐसा दीमक है जो हमारे दिमाग को बुरी तरह चाट जाता है इससे बाहर निकलने के लिए सबसे पहले इस गरीबी नामक डर को पार करना होगा और इसके लिए आपको उन लोगों की जीवनियों को पढ़ना चाहिए जो कभी गरीब थे लेकिन आज वो बहुत अमीर हैं।
किसी महापुरुष ने कहा है, कि हम कल क्या थे यह मायने नहीं रखता, हम आज क्या हैं यह भी उतना मायने नहीं रखता बल्कि मायने यह रखता है कि हम भविष्य में क्या बन सकते है। एक कहावत है कि “हम आज जो बोते हैं कल वही काटते हैं” अगर आप अपने दिमाग में गरीबी का बीज बोयेंगे तो कल भी आप गरीब ही रहेंगे इसलिए आज ही अपने दिमाग में अमीरी का बीज बोयें कल जरूर आप अमीरी का ही फसल काटेंगे क्योकि जो आज बहुत्त अमीर हैं उन्होंने या फिर उनके बाप-दादा ने कभी ना कभी अपने दिमाग में अमीरी का बीज जरूर बोया होगा। इसलिए अगर आप गरीबी नामक डर से पार पाना चाहते हैं तो आपको अपने दिमाग में अमीरी का बीज तो बोना ही पड़ेगा और इसका असर आपके सोचने के तौर तरीकों पर पड़ेगा जो एक दिन आपको जरूर अमीर बना देगा।
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मृत्यु का डर :
यह एक ऐसा डर है, जो हमारे जन्म के साथ से ही पैदा हो जाता है और हमारी मृत्यु तक साथ रहता है। जीवन का हर पल इससे भयभीत रहता है, जैसे – बीमारी के कारण, दुर्घटना के कारण, किसी आकस्मिक घटना के कारण, क्योंकि जीवन और मृत्यु का चोली और दामन का साथ है जहाँ जीवन है वहीं मृत्यु की सम्भावना है।
जैसा की सभी जानते हैं, कि जब हम पैदा हुए हैं तो एक दिन मरेंगे भी लेकिन जीवन के साथ ही हमारी इच्छायें, हमारी आकांक्षायें जुड़ जाती हैं और हमारे सगे-सम्बन्धी जिनसे हमारा जुड़ाव हो जाता है, यह मायावी दुनियाँ हमें प्रिय लगने लगती है, हमारे जमीन-जायज़ाद जिन्हे हम अपनी परिश्रम से बनाते हैं, इस कारण हमें इस दुनियाँ को छोड़ने में तकलीफ होती है, और हम चाहते हैं कि जितना ज्यादा जी लेंगे उतना ही इन सबका भोग कर लेंगे।
लेकिन मृत्यु तो अटल है, इसे जब आना होगा आ ही जाएगा। इसलिए हम इंसानों को चाहिए कि अपने जीते जी कुछ ऐसे कर्म करलें कि इस दुनियाँ से जाने के बाद भी हमारी खूबसूरत यादें लोगों के बीच जिन्दा रहें। हम रहें ना रहें लेकिन हमारे किये द्वारा गए कर्मों और हमारे उपलब्धियों की चर्चा लोगों में सकारात्मकता के बीज बोते रहें यही मानव जीवन की असली कमाई है।
डर को कैसे भगायें | डर के 6 रूप
समाज का डर :
हमारा समाज भी बड़ा अजीब है, जो कुछ नहीं करता उसे नल्ला कहता है, जो अपने काम से काम रखता है उसे गैर सामाजिक कहता है, जो ज्यादा सामाजिक होता है उसे घर का निठल्ला कहता है,जो गरीब होता है उसकी कोई क़द्र नहीं करता और जो अमीर होता है पीठ पीछे उसकी बुराई करता है।
दोस्तों ये जो हमारा समाज है ना, इसे आप किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं रख सकते, किसी बुद्धजीवी ने कहा है कि आप हर किसी को तो पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं कर सकते इसलिए कोशिश करें कि कम से कम अपने आप को तो संतुष्टि कर ही लें।
हमारा समाज बुरा नहीं है, इसमें अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग मौजूद हैं अब आपको तय करना है कि आप किसके साथ अपना समय गुजार रहे हैं। इसमें सबसे बड़े अपवाद वह लोग हैं जो अपने गिरेबान में तो झांकते नहीं लेकिन दूसरों के जिंदगी में झांकना जैसे उनकी आदत हो वैसे ऐसे लोग जितना समय दूसरों के जीवन में झाँकने में लगाते हैं उसका एक चौथाई भी अगर अपने जीवन में झाँकने में लगा दें तो उनकी जिंदगी बहुत बेहतर बन सकती है।
दोस्तों,बात हो रही है समाज के डर की तो इससे डरना भी चाहिए और नहीं भी वैसे आप अगर सही हैं और सही रास्ते पर चल रहे हैं तो आपको किसी से भी डरने की कोई जरुरत नहीं है। “वैसे भी कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना”।
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आगे बढ़ने का डर :
यह डर, हमें किसी भी काम को करने से पहले हमारे अंदर कई तरह के सवाल पैदा करता है, जैसे – किसी अनजान रास्ते पर चलने का डर, कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने का डर, आने वाले समस्याओं का डर, नए लोगों से सामना होने का डर आदि।
जब हम जिंदगी की राहों में आगे की तरफ बढ़ते हैं, तो उन रास्तों में हमें कोई खाश जानकारी नहीं होती लेकिन जब हम निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं तो जैसे-जैसे हमारे सामने समस्याएं आती हैं वैसे-वैसे हम उनको झेलते हुए उनसे पार पाने का रास्ता निकाल ही लेते हैं इसलिए आगे बढ़ने से बिलकुल भी डरना नहीं चाहिये क्योंकि आवश्यकता अविष्कार की जननी है।
अधिकांश लोग अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा सिर्फ यह सोचने में गुज़ार देते हैं, कि मै इस काम को करना चाहता हूँ और यह सोचते-सोचते सालों गुज़र जाते हैं और वे सिर्फ सोचते ही रह जाते है क्योंकि उनके अंदर एक डर होता है जिसे आगे बढ़ने का डर कहते हैं।
आगे बढ़ने का डर, दूर करने का सबसे सटीक तरीका है कि आगे बढ़ जाना क्योंकि जब हम आगे बढ़ जाते हैं और चलने लगते हैं तब हमारे अंदर स्वतः ही परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता तैयार होने लगती है और धीरे-धीरे आने वाली सभी समस्यायों लड़ना और पार पाना हमारी आदत बन जाती है इसलिए आगे निरंतर आगे बढ़ते रहें और शिखर पर चढ़ते रहें।
वैसे भी प्यासा कुँवें के पास जाता है कुँवाँ प्यासे के पास नहीं आता, इस तरह हमें प्यासा बनकर कुँवें की तरफ बढ़ना चाहिये और निरंतर आगे की तरफ बढ़ना ही चाहिए क्योंकि कुँवें तक पहुँचने का रास्ता कितना भी खतरनाक हो लेकिन अगर हमें अपनी प्यास बुझानी है तो हम किसी भी तरह उस कुँवें तक पहुँच ही जाते हैं क्योंकि उस समय हमें प्यास के आगे खतरा नहीं दिखता बिलकुल उसी तरह अगर हमें आगे बढ़ने के डर से पार पाना है तो हमें कोई बड़ा लक्ष्य बनाना होगा ऐसा करने से हमारा दिमाग सिर्फ अपने लक्ष्य के बारे में सोचता है और उसके परिणाम स्वरुप हमारा आगे बढ़ने का डर समाप्त हो जाता है।
किसी भी डर को कैसे भगायें :
डर एक ऐसा अदृश्य काँटा है, जो हमें किसी भी काम को करने से पहले चुभता है और अपनी उपस्थिति का एहसास कराता है अब हम उसकी उपस्थिति को किस तरह लेते हैं यह हमारे ऊपर निर्भर करता है।
डर कुछ नहीं महज एक भ्रम होता है, डर किसी भी प्रकार का हो उन सभी का सबसे सही जबाब होता है उनका सामना करना जब तक हम डर से डरेंगे तभी तक वह हमें डरा पाता है लेकिन जिस दिन से हम उसका सामना करना शुरू कर देते हैं उसका असर अपने आप कम होना शुरू कर देता है इसलिए सीधी सी बात है कि हम जो भी काम करें उसे निडर होकर करें और करते रहें डर को भगाने का सबसे सही तरीका यही है।
हम जैसे-जैसे किसी काम को करते जाते हैं, वैसे-वैसे ही हमारा आत्मविस्वाश बढ़ता चला जाता है और जैसे-जैसे हमारा आत्मविश्वाश बढ़ता चला जाता है वैसे-वैसे हमारे अंदर का डर दूर होता चला जाता है। इसलिए किसी भी डर का सबसे सही इलाज है उसका सामना करना सिर्फ सामना करना ही नहीं बल्कि डटकर सामना करना चाहिए ऐसा करते रहिये और अपने डर को दूर करते रहिये।
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Thanking You………………धन्यवाद……………….शुक्रिया……………….. मेहरबानी………………
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