हम जैसा भी अपने बारे में सोचते हैं, कुछ दिन, हफ्ते, महीनों या साल के बाद बिलकुल वैसा ही लोग हमारे बारे में सोचने लगते हैं, अब सवाल यह उठता है कि आखिर हम अपने बारे में क्या सोचते हैं………………………..? क्योंकि आप “जैसा सोचेंगे वैसा बनेंगे”।
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जैसा सोचेंगे वैसा बनेंगे
नमस्कार दोस्तों, मै अमित दुबे आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ।
दोस्तों, मेरे अंदर मोटिवेशन का कीड़ा कुछ इस कदर है, कि मै कोई भी काम या बात कहीं से भी शुरू करूँ लेकिन आगे चलकर जब तक उसमें मोटिवेशन का तड़का न लगे तब तक मेरी तसल्ली नहीं होती और मेरे इसी लत के परिणाम स्वरुप मैंने दुनियाँ के 300 सफल लोगों की जीवनी पढ़ डाली जिससे मुझे यह प्रेरणा मिली कि लोग अपने जीवन में सफल कैसे बनते हैं।
सफल लोगों के जीवनियों को पढ़ते-पढ़ते, एक दिन मेरे मन में एक विचार आया कि क्या सिर्फ सफल लोगों की ही जीवनी होती है आखिर असफल लोग भी तो हमारे समाज के ही हिस्से हैं फिर उनकी जीवनी क्यों नहीं होती इसी सवाल ने मुझे असफल और गरीब लोगों के बारे में एक आर्टिकल लिखने के लिए विवस किया जिसके परिणाम स्वरुप मैंने यह जानने की कोशिश की कि आखिर लोग गरीब क्यों होते हैं।
आपने सड़क के किनारे बेघर लोगों को जीवन गुजारते देखा होगा, आपने गन्दे नाले के पास लोगों को झोपड़ी डालकर उसमें जीवन गुजारते देखा होगा, आपने गरीब बस्तियों में लोगों को गरीबी और बेबसी में जीवन गुजारते देखा होगा।
क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है, कि उनकी ऐसी दयनीय हालत क्यूँ होती है, नहीं ना आखिर आपको क्या पड़ी है उनके बारे में जानने कि, वे आपके रिस्तेदार थोड़े ही लगते हैं, आप बिल्कुल सही हैं, सभी का अपना जीवन होता है और वे सभी काफी हद तक अपने उस जीवन के लिये खुद ही जिम्मेदार होते हैं।
अब आप यह कहेंगे कि सभी के अपने-अपने भाग्य होते हैं, लेकिन दोस्त मै यहाँ पर आपकी बात को काटते हुये यह कहूँगा कि सभी के अपने-अपने कर्म होते हैं और वही कर्म किसी को झोपड़ी और किसी को महल में रहने के लिये जिम्मेदार होते हैं। आपके कर्म कैसे कैसे होंगे जैसे कि आपके सोच होंगे। क्योंकि आपके सोचने का तरीका ही आपके कर्म को प्रभावित करता है और आपका वही कर्म आपके भाग्य को प्रभावित करते हैं।
जैसा सोचेंगे वैसा बनेंगे
आज के इस आर्टिकल में, हम आपके सोचने और काम करने के तरीकों से आपके भाग्य को जोड़ते हुये यह साबित करेंगे कि आपके सोचने के तरीके ही आपको अमीर या गरीब बनाते हैं, तो आइये अब आगे बढ़ते हैं और आज के टापिक के गहराई में जाते हैं।
दोस्तों, जब मैने दिल्ली के सड़क के किनारे जीवन गुजारने वाले बेघर और बेसहारा लोगों को करीब से देखा और उनका इन्टरव्यू लिया तो पाया कि उनके सोचने का तरीका ही उनके ऐसे जीवन जीने का कारण था। लेकिन एक बात और जिस पर मैंने गौर किया कि अगर वे चाहें तो उस मक्कड़ जाल से बाहर निकल सकते हैं, लेकिन कैसे…..? अपनी सोच को बदल कर, अपने अंदर छुपे कौशल को पहचान कर, कौशल कौन सा कौशल…..? आपके मन में यह सवाल पनप सकता है।
उनके बीच मैने देखा, कि एक महिला बेंत से सुन्दर स्टूल बना रही थी तो मै देखता रह गया, जब मैने देखा कि एक 12 साल की और एक 10 की लड़की कितनी सुन्दर चटाई बुन रही थी, तो मै अवाक रह गया, जब मैंने देखा कि 7 साल का बच्चा सड़क की लाल बत्ती पर गुब्बारे बेच रहा था तो मेरी आँखें नम हो गयीं यह सोचकर कि इस परिस्थिति का जिम्मेदार आखिर कौन है। जबकि देखा जाए तो वह महिला और बच्ची उत्पादन के कार्य में और वह 7 साल का बच्चा बिक्री के कार्य में लगे हुए थे।
उनकी कला और संघर्ष को देखने के बाद, मैने उनसे उनके उस दयनीय जीवन के बारे में चर्चा किया तो पाया कि उनका सोचने का तरीका निम्न स्तर का था और वही सबसे बड़ा कारण था जो उन्हें निम्न स्तर की जीवन शैली जीने को मजबूर कर रहा था।
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जैसा सोचेंगे वैसा बनेंगे
उन्होने बताया कि, वे दूर-दराज के क्षेत्रों से यहाँ पर रोजी-रोटी की तलाश में आये हैं उनके पास रहने को घर नहीं है इसलिये वे सड़क के किनारे झोपड़ी बनाकर और थोड़े बहुत छोटे-मोटे काम करके किसी तरह अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण कर लेते हैं।
उन्होने यह भी बताया कि, उनके गाँव में जीविका का कोई साधन नहीं है और ना ही उनके पास कोई खेत और खलिहान हैं उनके गाँव में उन्हे बहुत ही हेय दृष्टि से देखा जाता है, उनके छोटी जाति के कारण उन्हे बड़े जातियों द्वारा शोषित किया जाता है।
वे हीन-भावना के शिकार हैं, वे अपने आप को समाज से कटा हुआ मानते हैं आखिर वे करें भी क्या और कर भी क्या सकते हैं, यह उनका मानना है। उनके जीवन में कोई उमंग नहीं है इसलिये वे नशे का सहारा लेते हैं। वे शिक्षित भी नहीं हैं, अज्ञानता के कारण उनकी सोच सीमित होती है, वे दूर की नहीं सोच पाते हैं, उनके दिन की शुरुआत रोटी के लिये संघर्ष से शुरु होती है और शाम के नशे के साथ ही समाप्त होती है।
उन्होने यह स्वीकार कर लिया है, कि यही उनका जीवन है और इससे ज्यादा उन्हें अपने बारे में सोचना एक बड़े और न पूरे होने वाले सपने की तरह है। उनका मानना है कि सोचने से क्या होता है आखिर जो भाग्य में लिखा है वही तो मिलेगा फिर हम क्यूँ सोचें।
दोस्तों, उनकी बातों को सुनने और समझने के बाद, मै इस नतीजे पर पहुंचा कि उनकी सोच को अगर सही दिशा दिया जाए तो उनकी जिंदगी को बदला जा सकता है और यही सोचकर मैंने उनके सामने मोटिवेशन के सिद्धांत का सहारा लेते हुए उन्हें एक पाठ पढ़ाने की कोशिश की जिसके अंतर्गत उनके अंदर के कौशल के बारे में उन्हें परिचित कराकर उनका आत्म-विश्वास जगाना था।
जब मैंने उनको यह बताया, कि आपके घर की महिला और बच्चियाँ एक अच्छी उत्पादक हैं, तो वे बड़े ध्यान से मेरी तरफ देखने लगे और बोले कि ये उत्पादक क्या होता है तब मैंने उन्हें बहुत ही विस्तार पूर्वक उसके बारे में बताया और वे समझ भी गये फिर मैंने कहा कि आपके घर का बच्चा कितना अच्छा सेल्स मैन है तो वे हँसने लगे और कहने लगे कि साहब आप क्यूँ हमारा मज़ाक उड़ा रहे हैं इस पर मैंने गुब्बारे बेच रहे बच्चे की तरफ इशारा किया और बोला कि वो आज लालबत्ती पर गुब्बारे बेच रहा है अगर आप के घर के बने हुए बेंत के स्टूल और चटाइयाँ यही बच्चा गली-गली, घर-घर जाकर बेचें तो इससे आपको अच्छा-खाशा मुनाफा हो सकता है और वही मुनाफा आप लोगों की तक़दीर बदल सकता है।
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जैसा सोचेंगे वैसा बनेंगे
यहाँ पर एक बात मै आप लोगों से और बताना चाहूंगा, कि वो महिला और बच्चियाँ जो स्टूलें और चटाइयाँ बना रही थीं वह किसी और के लिए ठेके पर काम कर रही थीं जिसके लिए उन्हें प्रति पीस के 10 रूपये मिलते थे और वे सभी दिन में लगभग 5 पीस बनाकर 50 रूपये कमा लेती थीं और इतने में ही वे संतुष्ट भी थी।
लेकिन जब मैंने उनको बताया, कि 40 रूपये की सामग्री और 10 की मजदूरी देने के बाद जो सामान तैयार हो रहा है वह बाजार में 100 रूपये का बिकता है तो उनकी आँखें फटी की फटी रह गयी फिर मैंने पूछा कि वह बच्चा जो लालबत्ती पर गुब्बारे बेच रहा है वह कितना कमा लेता होगा तो उसके पिता बोले कि लगभग 100 रूपये प्रतिदिन।
इन सब बातों में लगभग 1 घंटे का समय गुज़र गया था, और मज़े की बात यह है कि मै जिस आदमी से यह इंटरव्यू ले रहा था वह उस परिवार का मुखिया था जो खुद कुछ नहीं करता था बल्कि अपने बीबी और बच्चों द्वारा कमाए गए पैसों से नशा करता था जो बड़े ही मुश्किल से इस इंटरव्यू के लिए तैयार हुआ था वह भी इस शर्त पर कि मै उसे इस इंटरव्यू के बदले 200 रूपये देने वाला था और मुझे पता था कि वह आदमी आज शाम को उस पैसे से शराब पियेगा। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी मै वह इंटरव्यू लिए चला जा रहा था क्योंकि उसमे मेरे अपने भी कुछ फायदे थे पहला यह कि मुझे अपने आर्टिकल के लिए कंटेंट मिल रहा था और दूसरा यह कि हो सकता है कि अपने मोटिवेशनल तीर द्वारा मै इनके दरिद्रता को नष्ट करते हुए इनके जीवन को एक नई दिशा दे सकूँ जो मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना है कि मोटिवेशन के द्वारा लोगों के जीवन को सामान्य से बेहतर बनाना।
जैसा सोचेंगे वैसा बनेंगे
दोस्तों, आगे बढ़ते हैं और इधर-उधर की बातें न करके मेन टॉपिक पर आते हैं :
अब मैंने अपने मोटिवेशनल तीर चलाने शुरू किये, वह भी कुछ इस तरह कि बाबूलाल (परिवार के मुखिया का नाम) को एक सपना दिखाना शुरू किया कि आज तुम्हारे घर की कमाई आपकी बीबी 50 रूपये, आपकी दोनों बच्चियाँ 100 रूपये और आपका बच्चा जो गुब्बारे बेचता है 100 रूपये कुल मिलाकर 250 रूपये प्रतिदिन की कमाई है जिसमे 5 लोगों का खर्च और तुम्हारा नशा भी इसी में शामिल है। जाहिर सी बात है कि यह एक जटिल समस्या है लेकिन अगर इस पर विचार किया जाये तो इसका एक बेहतर समाधान निकाला जा सकता है।
बाबूलाल बोले पर कैसे साहब, इस पर मैंने एक बेहतर योजना बाबूलाल को सुनाई और वह योजना क्या है आइये इस पर बात करते हैं। मैंने कहा कि बाबूलाल अगर तुम स्टूल और चटाइयाँ बनाने का सामान अपने पैसों से खरीदो और तुम्हारे घर वाले जो कि वैसे भी किसी और के लिए वही काम करते हैं लेकिन अब वे इस काम को अपने लिए करेंगे तुम्हारे बीबी और बच्चे मिलकर प्रतिदिन 15 पीस बनाते हैं जिसके बदले उन्हें सिर्फ 150 रूपये मिलते हैं अगर आप वही 15 पीस अपने तैयार करवाओगे और आप और आप का लड़का मिलकर बेच देते हैं तो आपको 60 रूपये एक पीस के हिसाब से 15 पीस बेचने पर 900 रूपये प्रतिदिन की कमाई हो सकती है।
यह सुनते ही बाबूलाल बोले, कि साहब पर सामान खरीदने के लिए पैसे भी तो होने चाहिये इस पर मैंने उन्हें समझाया कि 15 पीस बनाने के लिए 40 रूपये के हिसाब से 600 का सामान आपको खरीदना पड़ेगा इस पर फिर बाबूलाल बोले की वह 600 रुपया कहाँ से आएगा फिर मैंने उनसे एक सवाल पूछा कि आप प्रतिदिन कितने की शराब पीते हैं इस पर वे भड़क गए कि भाई साहब आप तो मेरे शराब के पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं इस पर मैंने उन्हें समझाया कि कृपया आप मेरे सवालों का जबाब दें ताकि मै सही आंकड़े एकत्रित कर सकूँ फिर वे बोले कि 50 रूपये वाली देशी की बोतल मै रोज़ाना पीता हूँ साथ में अपने आपको क्लीन चिट भी देते हैं कि दिमाग में इतनी टेंशन रहती है कि बिना गला तर किये नींद ही नहीं आती।
बाबूलाल की इस बात पर मैंने अपना अगला तीर चलाया, वाह बाबूलाल वाह 50 रूपये प्रतिदिन यानी 1500 रूपये महीना अब आप को सिर्फ एक महीने में 18 दिन ही शराब पीना है अगर आप 12 दिन शराब नहीं पिएंगे तो 600 रूपये की बचत हो जायेगी और उससे आप अपना रोजगार शुरू कर सकते हैं और प्रतिदिन 900 रूपये कमा सकते हैं इस पर बाबूलाल बोले कि मान लीजिये कि मैंने ऐसा कर भी किया तो इस बात की क्या गारंटी है कि 15 पीस रोज़ाना बिक ही जाएंगे इस पर मैंने अपना अगला तीर चलाया कि अगर 15 नहीं तो 10 और वो भी नहीं तो 5 तो बिक ही जाएंगे तब भी तो 250 की जगह 300 आएंगे इस पर फिर बाबूलाल बोले कि साहब हम बनायें 15 पीस बिकेंगे 5 पीस आपने हमको बेवकूफ समझ रखा है क्या चलिए उठिये यहाँ से आप हमें बेवकूफ बना रहे हैं इस पर मै थोड़ा सा मुस्कुराया और बाबूलाल की तरफ दो उंगली दिखाई अर्थात 200 रूपये इस पर बाबूलाल थोड़े नरम हुए।
बाबूलाल की नरमी का फायदा उठाते हुए मैंने फिर अपना अगला तीर चलाया, कि जितना बिक जाए अच्छी बात अपने घर का खर्च निकालो और बाजार से स्टूल और चटाई बनाने का सामान ले आओ और उन्हें तैयार करो और यह पता करो कि आपके आस-पास साप्ताहिक बाजार कहाँ लगते हैं वहाँ अपने सामान को बेचने की कोशिश करें क्योंकि वहाँ पर ऐसी चीजें बहुत बिकती हैं आपके सामान भी बिक जाएंगे।
बाबूलाल ने कुछ देर तक सोचा विचारा और बोला, हे साहब आपकी बात हमारे कछु पल्ले नहीं पड़त है हम जो जिंदगी जी रहे हैं हमको उसी हालत में छोड़ दो सामान लाओ, बनाओ, बेचो कौन साला इन सब लफड़े में पड़े ऊपर से आप हमारा शराब भी छुड़वाने के चक्कर में हो अइसा है आपने हमको दो घंटे बातचीत करने के बदले 200 रूपये देने को बोला था वो समय अब पूरा हो गया है और हम सच बोलें तो इ दो घंटे में जो आप बक-बक करे हैं वो हमको कछु भी समझ में नहीं आया आप हमारे 200 रूपये दे दो वैसे भी शाम होने वाली है और हमारा पीने का समय हो गया है और आज तो हम अंग्रेजी वाला पिऊंगा आपके नाम से और हे साहब हम गरीब लोग हैं हमको सपने देखने का कउनो अधिकार नहीं है, हम गंदे नाले के कीड़े थे, हैं और रहेंगे।
बाबूलाल के इस बात से मुझे कोई ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि मुझे काफी हद तक उससे ऐसे ही जबाब की उम्मीद थी और इस आर्टिकल के लिए मुझे जो जानकारी चाहिए थी वह बाबूलाल के सोचने के तरीकों से मिल भी गया था और मेरे इस दो घंटे का इंटरव्यू के सफर ने मुझे एक नया पाठ भी पढ़ाया कि जैसा आप सोचेंगे वैसा ही आप बनेंगे। मैंने अपने पर्स से 200 रुपया निकला उसे बाबूलाल को दिया वहाँ से उठा और अपनी बाइक स्टार्ट की और अपने घर की तरफ चल दिया।
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जैसा सोचेंगे वैसा बनेंगे
दोस्तों, इस संसार में ऐसे एक नहीं बल्कि करोड़ों बाबूलाल हैं जो हीन भावना, आलस्य और दरिद्रता के जंजीरों में कुछ इस कदर जकड़े हुये हैं कि उन्हें कुछ सोचना भी बहुत ही मुश्किल और जोखिम भरा काम लगता है और अगर वे कुछ सोचते भी हैं तो क्या…..?
इंसान को ज्यादा सोचना नहीं चाहिये, सोचने से खुन जलता है। वैसे भी जितना नसीब में लिखा है उतना ही मिलेगा।
ऐसे ही कोई सोचकर अमीर थोड़ें ही बनता है, पहले तुम तो अमीर बन जाओ फिर मुझे सिखाना।
कहना बड़ा आसान होता है, करने में नानी याद आ जाती है। हमें मत सिखाओ, हमने दुनियाँ देखी है।
ऊपर वाले ने हमारे साथ अन्याय किया है, हमारे भाग्य में ही गरीबी लिखी है तो हम क्या करें।
यह हो ही नहीं सकता, मुझसे कोरे कागज पर लिखवा लो, मतलब ही नहीं है कि ऐसा हो जाये।
कुछ इस तरह की सोच होती है, ऐसे लोगों की और यही कारण होता है जो उन्हें कुछ बड़ा और बेहतर सोचने से रोकता है। जो इंसान सोचने में ही आलस्य कर रहा हो वो भला कुछ करेगा क्या, और जब वह कुछ करेगा नहीं तो भला कोई नतीजा निकलेगा क्या।
बाबूलाल ने मुझे जो इंटरव्यू दिया वह सिर्फ एक लालच था, कि इसके बदले उसे 200 रूपये मिलेंगे जिससे वह जी भर के शराब पियेगा जबकि वही दो घंटे अगर बाबूलाल कुछ सीखने और समझने में लगाता तो क्या पता उसी दिन से उसके किस्मत के दरवाजे खुलने चालु हो जाते क्योंकि उसके सामने एक ऐसा इंसान बैठा था जिसने दुनियाँ के 300 सफल लोगों के जीवन के बारे में गहरे से रिसर्च किया था यह जानने के लिए कि लोग सफल और अमीर कैसे बनते हैं और वही फार्मूला वह व्यक्ति बाबूलाल को बताने की कोशिश कर रहा था।
अफ़सोस की बात कि बाबूलाल उस स्वर्णिम मौके की नज़ाकत को नहीं समझ पाया, और सारा ध्यान सिर्फ शाम के नशे में मददगार सिर्फ 200 रूपये पाने में लगाया। काश कि वह कुछ सोच पाता, कुछ समझ पाता और उससे प्रभावित होकर कुछ कर पाता तो शायद आने वाले 10 साल बाद वह एक मंझा हुआ व्यापारी बन चुका होता और यह भी हो सकता था कि शायद वह एक बड़ा उद्योगपति बन जाता जैसे ज्यादातर लोग बनते हैं।
दोस्तों, इस दुनियाँ में सबसे ताक़तवर यदि कोई चीज है, तो वह है मानव मस्तिष्क जिसका काम है सोचना और उस सोच को कार्य रूप में परिवर्तित करके इंसान इस प्रकृति से कुछ भी प्राप्त कर सकता है लेकिन सवाल यह उठता है कि इंसान के सोचने का तरीका क्या है क्योंकि जैसा आप सोचेंगे वैसा ही आप बनेंगे।
आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा, तो सोच क्या रहे हैं इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ सोशल मीडिया पर Share करें, लाइक बटन पर जाकर Like करें, और अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में जाकर Comment करें, क्योंकि आपका सुझाव हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है जैसे आप हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, इसलिए अपना बहुत-बहुत-बहुत ख़याल रखियेगा, मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं।
Thanking You / धन्यवाद / शुक्रिया / मेहरबानी……………………………….जय हिन्द – जय भारत
आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com
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