चाणक्य नीति: अध्याय – 9 | आचार्य चाणक्य के 14 सर्वश्रेष्ठ विचार > दोस्तों, आचार्य चाणक्य के 14 विचार जो आपके जीवन में बहुत काम आ सकते हैं, इन्हें पढ़ने के बाद इस बात की पूरी गारंटी है कि आप पहले जैसे बिलकुल भी नहीं रह जायेंगे क्योंकि चाणक्य नीति है ही ऐसी चीज जो इंसान के मानसिक ढांचें को पूरी तरह से बदल देता है। इसलिए बने रहिएगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ और सिर्फ चाणक्य नीति पर बात।
चाणक्य नीति: अध्याय – 9
विचार : 1 >
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि, यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष समझकर इनका त्याग कर दो। क्षमा, आर्जव, दया, पवित्रता, सत्य आदि गुणों का अमृत के समान पान करो।
विचार : 2 आचार्य
आचार्य जी ने यह भी कहा है कि, जो व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे की बातों को अन्य लोगों को बता देते हैं, वे बांबी के अंदर के सांप के समान अपने आप ही नष्ट हो जाते हैं।
विचार : 3 >चाणक्य नीति में यह भी लिखा है कि, सोने में सुगंध, गन्ने में फल, चन्दन में फूल नहीं होते। विद्वान धनी नहीं होता और राजा दीर्घजीवी नहीं होते।
विचार : 4 >
चाणक्य ने कहा है कि, औषधियों में अमृत, (गिलोय) प्रधान है। सभी सुखों में भोजन प्रधान है। सभी इन्द्रियों में आँखें मुख्य है। सभी अंगों में सिर महत्वपूर्ण है।
विचार : 5 >
चाणक्य यह भी कहते हैं कि, आकाश में न तो कोई दूत ही जा सकता है, और न उससे कोई वार्ता ही हो सकती है, न तो पहले से किसी ने बताया है, और न वहां किसी से मिल ही सकते हैं। फिर भी विद्वान लोग सूर्य और चंद्र-ग्रहण के विषय में पहले ही बता देते हैं। ऐसे लोगों को कौन विद्वान नहीं कहेगा।
चाणक्य नीति: अध्याय – 9
विचार : 6 >
चाणक्य पंडित ने यह भी कहा है कि, विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूखे, भयभीत, भंडारी और द्वारपाल – इन लोगों को सोते से जगा देना चाहिए।
विचार : 7 >
पंडित जी ने यह भी कहा है, सांप, राजा, शेर, बर्र, बच्चा, दूसरे का कुत्ता तथा मूर्ख इनको सोते से नहीं जगाना चाहिए।
विचार : 8 >
चाणक्य का कहना है कि, धन के लिये वेदों को का अध्ययन करने वाला, शूद्रों का अन्न खाने वाला ब्राह्मण विषहीन सांप के समान है, ऐसे ब्राह्मण का क्या करेंगे।
विचार : 9 >
चाणक्य नीति यह भी कहती है कि, जिसके रुष्ट होने पर कोई भय नहीं होता और न प्रसन्न होने पर धन ही मिलता है, जो किसी को दण्ड नहीं दे सकता और न ही किसी पर कृपा कर सकता है, ऐसा व्यक्ति रुष्ट होने पर क्या कर लेगा।
विचार : 10 >
आचार्य जी यहाँ पर आडम्बर की चर्चा करते हुए कहते है कि, विषहीन साँप को भी अपने फन को फैलाना ही चाहिए। विष है या नहीं किसी को क्या पता लेकिन इससे लोगों में भय तो बना ही रहेगा।
चाणक्य नीति: अध्याय – 9
विचार : 11 >
पंडित चाणक्य महापुरुषों की जीवन चर्या बताते हुए कहते हैं कि, विद्वानों का प्रातः काल का समय जुए के प्रसंग ( महाभारत कथा ) में बीतता है, दोपहर का समय स्त्री-प्रसंग ( रामायण की कथा ) में बीतता है, रात्रि में उनका समय चोर-प्रसंग ( कृष्ण-कथा ) में बीतता है। यही महान पुरुषों की जीवन चर्या होती है।
विचार : 12 >
आचार्य चाणक्य का कहना है कि, अपने हाथ से गुथी माला, अपने हाथ से घिसा हुआ चन्दन तथा स्वयं अपने हाथों से लिखा स्त्रोत इंद्र की शोभा को भी हर लेते हैं।
विचार : 13 >
आचार्य चाणक्य यहाँ दबाये जाने की गुणवत्ता प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि, ईख, तिल, शूद्र, पत्नी, सोना, पृथ्वी, ,चन्दन, दही तथा ताम्बूल (पान) इनके मर्दन से ही गुण बढ़ते हैं।
विचार : 14 >
आचार्य चाणक्य का कहना है कि, धीरज से निर्धनता भी सुन्दर लगती है, साफ रहने पर मामूली वस्त्र भी अच्छे लगते हैं, गर्म किये जाने पर बासी भोजन भी स्वादिष्ट लगता है और शील-स्वभाव से कुरूपता भी सुन्दर लगती है।
आशा करता हूँ कि आचार्य चाणक्य के ये विचार आपके जीवन में समझदारी, बुद्धिमानी और खुशियाँ लाने में मददगार साबित होंगे।
अपना कीमती समय इस आर्टिकल पर देने के लिए आपका हम तहे दिल से आभार व्यक्त करते है। अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, तब तक के लिए जय हिन्द – जय भारत।
Thanking You धन्यवाद | शुक्रिया | मेहरबानी
आपका दोस्त शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com