चाणक्य नीति: अध्याय – 5 | आचार्य चाणक्य के 21 अनमोल विचार

चाणक्य नीति: अध्याय – 5 | आचार्य चाणक्य के 21 अनमोल विचार > जो करेंगे जीवन में शामिल दरिद्रता पर प्रहार और लाएंगे आपके जीवन में बहार, क्योंकि चाणक्य नीति में छुपा है ज्ञान का भंडार जो बदल देता है इंसान के दिमाग का आकार और जब बदलेगा दिमाग का आकार तो जाहिर सी बात है कि जीवन में होंगी खुशियाँ अपरम्पार। तो बने रहिएगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ और सिर्फ ज्ञान की बात।

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चाणक्य नीति अध्याय - 5
चाणक्य नीति अध्याय – 5

चाणक्य नीति: अध्याय – 5

विचार : 1 >

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, इन तीनों वर्णों का गुरु अग्नि है। ब्राह्मण अपने अतिरिक्त सभी वर्णों का गुरु है। स्त्रियों का गुरु उनका पति है और घर में आया हुआ मेहमान सभी का गुरु होता है।

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चाणक्य ने यह भी कहा है कि, घिसने, काटने, तपने, और पीटने, इन चार प्रकारों से जिस तरह सोने का परिक्षण होता है बिलकुल वैसे ही पुरुषों के बारे में बताते हैं कि, त्याग, शील, गुण, एवम कर्मो से पुरुष की परीक्षा होती है।

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आचार्य जी यह भी कहते हैं कि, आपत्तियों एवं संकट से तभी तक डरना चाहिए जब तक वे दूर हों, लेकिन अगर वे आपके सामने आकर खड़े हो जाएँ तो उन पर निर्भय होकर हमला कर देना चाहिए अर्थात उन्हें समाप्त करने की कोशिश करनी चाहिए, अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो वे तो आपको समाप्त कर ही देंगे।

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चाणक्य नीति में यह भी कहा है गया कि, एक ही माँ के गर्भ से, एक ही नक्षत्र में पैदा होने पर भी दो लोगों का स्वभाव एक जैसा नहीं होता, उदहारण के लिए बेर और काँटों को ही देख लीजिये।

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चाणक्य नीति में यह भी लिखा गया है कि, विरक्त व्यक्ति किसी भी विषय का अधिकारी नहीं होता, जो व्यक्ति कामी नहीं होता, उसे श्रंगार की आवश्यकता नहीं होती, विद्वान व्यक्ति प्रिय नहीं बोलता है तथा स्पष्ट बोलने वाला ठग नहीं होता।

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चाणक्य जी यह भी कहते हैं कि, मूर्ख इंसान ज्ञानियों से, गरीब आदमी अमीरों से, वेश्याएं घरेलु बहुओं से और विधवाएं सुहागिनों से जलती हैं।

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चाणक्य ने यह भी कहा है कि, आलस्य से विद्या नष्ट हो जाती है, दूसरे के हाथ में जाने से धन नष्ट हो जाता है, कम बीज से खेत नष्ट हो जाते हैं और बिना सेनापति वाली सेना नष्ट हो जाती है।

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आचार्य जी कहते हैं कि, अभ्यास से विद्या का पता चलता है, शील-स्वभाव से कुल का पता चलता है, गुणों से श्रेष्ठता का पता चलता है तथा आँखों से क्रोध का पता चलता है।

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चाणक्य नीति

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आचार्य ने यह भी कहा है कि, धन से धर्म की रक्षा होती है, योग से विद्या की रक्षा होती है, मधुर स्वभाव से राजा की रक्षा होती है और अच्छी स्त्री से घर की रक्षा होती है।

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चाणक्य नीति कहती है कि, जो लोग वेदों को बदनाम करते हैं, पंडितों की बुराई करते हैं, शास्त्रों की आलोचना करते हैं, तथा सदाचारी मनुष्य की बेइज्जती करते हैं, ऐसा करके वे अपनी अज्ञानता और दुष्टता का परिचय देते हैं, ऐसे लोगों का त्याग करना ही समझदारी का काम है।

विचार : 11 >

चाणक्य ने यह भी कहा है कि, दान दरिद्रता को नष्ट कर देता है, शील स्वभाव से दुःखों का नाश हो जाता है, बुद्धि ,अज्ञान को नष्ट कर देती है तथा भावना से भय दूर हो जाते हैं।

विचार : 12 >

आचार्य जी कहते है कि, काम के समान व्याधि नहीं है, मोह-अज्ञान के समान कोई शत्रु नहीं है, क्रोध के समान कोई आग नहीं है तथा ज्ञान के समान कोई सुख नहीं है।

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आचार्य जी का कथन है कि, इंसान इस संसार में अकेला ही जन्म लेता है, अकेला ही मृत्यु को प्राप्त होता है, अकेला ही शुभ-अशुभ कर्मो का भोग करता है, अकेला ही नरक में पड़ता है तथा अकेला ही परमगति को भी प्राप्त करता है।

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चाणक्य के अनुसार, ब्रह्मज्ञानी को स्वर्ग, वीर को अपना जीवन, संयमी को अपनी स्त्री तथा निस्पृह को सारा संसार तिनके के समान लगता है।

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आचार्य चाणक्य के 21 अनमोल विचार

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पंडित चाणक्य ने यह भी कहा कि, घर से बाहर विदेश में रहने पर विद्या मित्र होती है, घर के अंदर पत्नी मित्र होती है, बीमार व्यक्ति के लिए दवा मित्र होती है तथा मृत्यु के बाद व्यक्ति का धर्म ही उसका मित्र होता है।

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पंडित जी कहते हैं कि, समुद्र में वर्षा व्यर्थ है, तृप्त को भोजन कराना व्यर्थ है, धनी को दान देना व्यर्थ है तथा दिन में दीपक जलाना व्यर्थ है।

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आचार्य ने यह भी कहा है कि, बादल के समान कोई जल नहीं होता, अपने बल के समान कोई बल नहीं होता, आँखों के समान कोई ज्योति नहीं होती और अन्न के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं होती।

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चाणक्य ने यह भी कहा है कि, निर्धन लोग धन की कामना करते हैं, पशुओं में बोलने की कामना होती है, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता लोग मोक्ष प्राप्ति की इच्छा करते हैं और इसी प्रकार जिसे जो भी प्राप्त है सभी उससे आगे की इच्छा रखते हैं।

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चाणक्य नीति यह भी कहती है कि, सत्य ही पृथ्वी को धारण करता है, सत्य से ही सुर्य तपता है, सत्य से ही वायु बहती है, सच कहें तो सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है।

विचार : 20 >

चाणक्य कहते हैं कि, लक्ष्मी चंचल होती है, प्राण, जीवन, शरीर, सब कुछ चंचल और नाशवान है, संसार में केवल धर्म ही निश्चल है।

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आचार्य चाणक्य ने कहा है कि, पुरुषों में नाई, पक्षियों में कौवा, चौपायों में शियार तथा स्त्रियों में मालिन धूर्त होती है।

दोस्तों, आशा करता हूँ कि, आचार्य चाणक्य द्वारा बतायी गयी बातें आपको सतर्क करते हुए जीवन में आने वाली कठिनाइयों से लड़ने में आपको मजबूत बनायेंगी और आपके दिमाग को सामान्य से बेहतर बनायेंगी।

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आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com

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