चाणक्य नीति: अध्याय – 4 | आचार्य चाणक्य के 19 विचार > इस लेख में आचार्य चाणक्य के 19 अनमोल और जीवन को सार्थक बनाने वाले विचारों को बताया गया है जिन्हें Follow करके कोई भी व्यक्ति अपने आप को दुनियाँ और समाज के बीच खाश रूप में प्रस्तुत करते हुए अपनी एक प्रभावशाली छवि बना सकता है और लोगों के बीच खुद को अक्लमंद और बुद्धिमान एहसास करा सकता है, तो बने रहिएगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ और सिर्फ बुद्धिमानी की बात।
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चाणक्य नीति: अध्याय – 4
विचार : 1 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, इंसान को कुछ चीजें उसके भाग्य से मिलती हैं और वह चीजें जब वह अपने माँ के गर्भ में रहता है तभी निश्चित हो जाती हैं। ये पांच चीजें हैं – उसकी उम्र, उसके कर्म, धन-संपत्ति, विद्या और मृत्यु।
विचार : 2 >
आचार्य जी यह भी कहते हैं कि, जो लोग सत्संगी होते हैं वे अपने जीवन को तो सार्थक बनाते ही हैं साथ ही अपने कुल को भी पवित्र कर देते हैं वैसे सच कहें तो ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होती है क्योंकि ज्यादातर लोग भौतिक इच्छाओं की पूर्ति में संलग्न होने के कारण सत्संग से दूर रहते है।
विचार : 3 >
चाणक्य ने यह भी कहा है कि, जब तक शरीर स्वस्थ है, तभी तक मृत्यु भी दूर रहती है। इसलिए व्यक्ति को समय रहते ही अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए, जब मृत्यु सिर पर आकर खड़ी हो जायेगी तब सोचने से क्या फायदा होगा। उसी प्रकार आत्मकल्याण का रास्ता भी पहले से ही बना लेना चाहिए क्योंकि अंत समय आने पर बहुत देर हो चुकी होती है।
विचार : 4 >
चाणक्य नीति में यह भी कहा गया है कि, विद्या कामधेनु के सामान गुणों से सुसज्जित होती है, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी साथ नहीं छोड़ती है, यह एक ऐसा गुप्त धन है जिसे कोई लुटेरा भी नहीं लूट के ले जा सकता है, इसलिए विद्या के महत्व को समझना चाहिए, विद्यावान व्यक्ति हर जगह सम्मान का हकदार होता है।
विचार : 5 >
आचार्य जी का कहना है कि, सैकड़ों गुणहीन और निकम्मे पुत्रों से अच्छा है कि एक ही पुत्र हो लेकिन वह गुणवान और विद्वान हो, जैसे असंख्य तारे मिलकर रात्रि के गहन अंधकार को दूर नहीं कर सकते लेकिन एक चन्द्रमा अकेले ही रात्रि के अंधकार को दूर कर देता है।
विचार : 6 >
चाणक्य के अनुसार, मूर्ख पुत्र का जल्दी मर जाना ही अच्छा है क्योंकि उसका ज्यादा दिन जिन्दा रहना उसके माँ-बाप के लिए मुसीबत के सिवा और कुछ भी नहीं है।
विचार : 7 >
चाणक्य यह भी कहते हैं कि, यदि दुष्टों के साथ रहना पड़े, नीच खानदान वालों की सेवा करनी पड़े, घर में झगड़ालू पत्नी हो, मूर्ख पुत्र हो, बेटी विधवा हो जाये, ऐसे में इंसान अंदर ही अंदर जलता रहता है।
विचार : 8 >
चाणक्य नीति में लिखा है कि, उस गाय का क्या फायदा जो ना तो दूध देती हो और ना ही गाभिन ही होती हो। वह पुत्र किस काम का जो ना तो विद्वान हो और ना ही भक्त हो।
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विचार : 9 >
आचार्य जी कहते हैं कि, ये तीन चीजें बड़ी काम की होती हैं और इंसान को सुख का आभास कराती हैं, आज्ञाकारी बच्चे, पतिव्रता पत्नी और सदाचारी लोगों का साथ। इंसान के जीवन में ऐसे लोगों का बड़ा महत्व होता है।
विचार : 10 >
चाणक्य का ही यह भी कथन है कि, ये बातें एक बार ही होती हैं – राजा लोग एक बार ही बोलते है, विद्वान लोग भी किसी बात को एक बार ही बोलते हैं और कन्यादान भी जीवन में एक बार ही किया जाता है।
विचार : 11 >
चाणक्य नीति में यह भी कहा गया है कि, तपस्या अकेले में करना चाहिए, पढ़ाई करते समय दो लोग होने चाहियें, गाना गाते समय तीन का साथ अच्छा माना जाता है, कहीं जाते समय यदि पैदल हों तो चार का साथ अच्छा होता है, खेत में काम करते समय पांच लोग काम अच्छी तरह करते हैं, किन्तु युद्ध में जितनी अधिक सेना हो उतना ही अच्छा है।
विचार : 12 >
चाणक्य के अनुसार, पत्नी वह जो पवित्र और कुशल हो, पतिव्रता हो, अपने पति से प्रेम करती हो, अपने पति से सत्य बोलती हो। जिस पत्नी में ये सब गुण ना हों उसे पत्नी नहीं कहा जा सकता।
विचार : 13 >
आचार्य जी कहते हैं कि, पुत्रहीन के लिए घर सूना हो जाता है, जिसके भाई ना हों उसके लिए दिशाएं सूनी हो जाती हैं, मूर्ख का ह्रदय सूना होता है, किन्तु निर्धन का तो सब कुछ ही सूना हो जाता है।
विचार : 14 >
चाणक्य ने यह भी कहा है कि, यदि सीखे हुए ज्ञान का निरंतर अभ्यास ना किया जाए तो वह निरर्थक हो जाता है क्योंकि अगर कहीं उसका विश्लेषण करना पड़ जाए और उसमे कुछ त्रुटि हो जाए तो व्यक्ति को अपमानित होना पड़ सकता है।
विचार : 15 >
चाणक्य नीति के अनुसार, जिस धर्म में दया ना हो, जिस गुरु में पूर्ण ज्ञान ना हो, जिसकी पत्नी अतिक्रोधी हो, जो बंधू स्नेहहीन हों, ऐसों का शीघ्र ही त्यागना उचित होता है।
विचार : 16 >
चाणक्य कहते हैं कि, राह में चलते रहने से थककर मनुष्य अपने को बूढ़ा अनुभव करने लगता है, घोड़ा बंधा रहने पर बूढ़ा हो जाता है, सम्भोग के अभाव में स्त्री खुद को बूढ़ी अनुभव करने लगती है, धुप में सुखाये जाने पर कपड़े शीघ्र फट जाते हैं तथा उनका रंग फीका पड़ जाता है।
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विचार : 17 >
आचार्य जी कहते हैं कि, इंसान को किसी भी कार्य को करने से पहले अच्छी तरह से विचार कर लेना चाहिए कि यह काम कैसा है ? इसमें किन लोगों को शामिल करना चाहिए ? जहाँ काम करना है वह स्थान उपयुक्त है भी नहीं ? आय-व्यय के पूरे व्योरे का विश्लेषण करने के बाद ही आगे कदम बढ़ाना चाहिए।
विचार : 18 >
चाणक्य ने कहा है कि, संस्कार के दृष्टि से पांच प्रकार के पिता होते हैं – जन्म देने वाला, उपनयन संस्कार करने वाला, विद्या देने वाला, अन्नदाता तथा भय से रक्षा करने वाला।
विचार : 19 >
आचार्य जी माँ के बारे चर्चा करते हुए कहते हैं कि, राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माँ तथा अपनी माँ, ये पांच प्रकार की मायें होती हैं।
दोस्तों, आशा करता हूँ कि आचार्य चाणक्य के ये विचार आपको पहले से ज्यादा चतुर-चालाक और बुद्धिमान बनाने में सहायक होंगे साथ ही आपके जीवन के हर मोड़ पर आपको सचेत करते हुए जीवन के कठिनाइयों से लड़ने में सक्षम बनायेंगे।
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आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com