चाणक्य नीति अध्याय 17 | चाणक्य के 23 प्रेरणादायक विचार > आचार्य चाणक्य के विचार जीवन के हर क्षेत्र जैसे – आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक, कूटनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं से मनुष्य को अवगत कराते हैं और व्यक्ति को सामान्य से बेहतर बनाते है। तो बने रहियेगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ और सिर्फ आचार्य जी के प्रेरणादायक विचारों पर बात।
चाणक्य नीति अध्याय 17
विचार : 1 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, जो व्यक्ति केवल पुस्तकों को पढ़कर विद्या प्राप्त करता है, किसी गुरु से नहीं, उस व्यक्ति का किसी सभा में अवैध सम्बन्ध से गर्भवती हुई स्त्री के समान कोई आदर नहीं होता।
विचार : 2 >
आचार्य कहना है कि, उपकारी के साथ उपकार, हिंसक के साथ प्रतिहिंसा करनी चाहिए तथा दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यव्हार करना चाहिए। इसमें कोई दोष नहीं है।
विचार : 3 >
चाणक्य यहाँ तप की चर्चा चर्चा करते हुए कहते हैं कि, जो वस्तु दूर है, दुराराध्य है, दूर स्थित है, वह सब तप से साध्य है। तप सबसे प्रबल है।
विचार : 4 >
आचार्य जी यहाँ व्यक्ति की सम्बद्धता की चर्चा करते हुए कहते हैं कि, लोभी को दूसरे के अवगुणों से क्या लेना ? चुगलखोर को पाप से क्या ? सच्चे व्यक्ति को तपस्या से क्या ? मन शुद्ध है, तो तीर्थों से क्या ? ख्याति होने से बनने-संवरने से क्या ? सदविद्या होने से धन का क्या ? बदनामी होने पर मृत्यु से क्या ? बदनामी तो वैसे भी मौत से बढ़कर होती है।
विचार : 5 >
आचार्य जी कहते हैं कि जिसका पिता रत्नों की खान समुद्र है, और सगी बहन लक्ष्मी है, ऐसा शंख भिक्षा मांगता है। इससे बड़ी बिडम्बना क्या हो सकती है।
विचार : 6 >
चाणक्य के अनुसार, शक्तिहीन व्यक्ति साधु बन जाता है, निर्धन ब्रह्मचारी हो जाता हैं, रोगी भक्त कहलाने लगता है वृद्धा स्त्री पतिव्रता बन जाती है।
विचार : 7 >
पंडित जी का कहना है कि, अन्न और जल के समान कोई दान नहीं है। द्वादशी के समान कोई तिथि नहीं है। गायत्री से बढ़कर कोई मंत्र नहीं है। माँ से बढ़कर कोई देवता नहीं है।
विचार : 8 >
आचार्य जी कहते हैं कि, सर्प के दांत में विष होता है, मक्खी के सिर में, बिच्छू की पूंछ में तथा दुष्ट के पूरे शरीर में विष होता है।
चाणक्य नीति अध्याय 17
विचार : 9 >
आचार्य जी के अनुसार, अपने पति की आज्ञा के बिना उपवास लेकर व्रत करने वाली पत्नी पति की आयु को हर लेती है। ऐस स्त्री अंत में नरक में जाती है।
विचार : 10 >
चाणक्य का कहना है कि, स्त्री न दान से, न सैकड़ों व्रतों से और न तीर्थों की यात्रा करने से उस प्रकार शुद्ध होती है, जिस प्रकार अपने पति के चरणों को धोकर प्राप्त जल के सेवन से शुद्ध होती है।
विचार : 11 >
चाणक्य नीति कहती है कि, दान से ही हाथों की सुंदरता है न कि कंकड़ पहनने से। शरीर स्नान से शुद्ध होता है न कि चन्दन लगाने से। तृप्ति मान से होती है न कि भोजन से। मोक्ष ज्ञान से मिलता है न कि श्रंगार से।
विचार : 12 >
आचार्य जी कहते हैं कि, नाई के घर जाकर दाढ़ी, बाल आदि नहीं कटाने चाहिए। पत्थर पर घिसा हुआ चन्दन या कोई भी सुगन्धित चीज शरीर में नहीं लगानी चाहिए। अपना मुंह पानी में नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने पर सभी की सुंदरता नष्ट हो जाती है।
विचार : 13 >
आचार्य जी के अनुसार, नाई के घर जाकर बाल बनवाना, पत्थर में सुगन्धित गन्ध लगाना और जल में अपने स्वरुप की परछाई देखना – ये कार्य करनेवाले की संपत्ति तथा लक्ष्मी नष्ट हो जाती है।
विचार : 14 >
आचार्य जी का ही कथन यह भी है कि, तुंडी के सेवन से बुद्धि तत्काल ही नष्ट हो जाती है, वच के सेवन से बुद्धि का शीघ्र विकास होता है। स्त्री के साथ सम्भोग करने से शक्ति तत्काल नष्ट हो जाती है तथा दूध के प्रयोग से खोई हुई ताक़त फिर वापिस लौट आती है।
विचार : 15 >
चाणक्य कहते हैं कि, जिस घर में शुभ लक्षणों वाली स्त्री हो, धन-संपत्ति हो, विनम्र गुणवान पुत्र हो और पुत्र का भी पुत्र हो, तो स्वर्गलोक का सुख ऐसे घर से बढ़कर नहीं होता।
विचार : 16 >
चाणक्य का यह भी कहना है कि, भोजन, नींद, भय तथा मैथुन करना ये सब बातें मनुष्यों और पशुओं में समान रूप से पायी जाती हैं, किन्तु ज्ञान मनुष्य में ही पाया जाता है। अतः ज्ञान रहित मनुष्य को पशुओं के समान समझना चाहिए।
चाणक्य नीति अध्याय 17
विचार : 17 >
आचार्य जी कहते हैं कि, जवान हाथी के कानों से मीठा मल बहने लगता है, जिस पर भँवरे मंडराने लगते हैं। ये भँवरे हाथी की सुंदरता में चार-चाँद लगा देते हैं। मूर्ख हाथी कान फड़फड़ाकर उन्हें उड़ा देते हैं। इसमें हाथी की ही सुंदरता घटती है, भँवरों का कुछ नहीं बिगड़ता। वे किसी कमलों वाले सरोवर में चले जाते हैं। आशय है कि, यदि मूर्ख व्यक्ति गुणी लोगों का आदर नहीं करते, तो इससे गुणी का कोई नुकसान नहीं होता। उन्हें आदर देने वाले अन्य लोग मिल जाते है, किन्तु मूर्ख को गुणी लोग नहीं मिलते।
विचार : 18 >
चाणक्य का कहना है कि, राजा, वेश्या, यमराज, अग्नि, चोर, बालक, याचक और ग्रामकंटक ये लोग किसी भी व्यक्ति के दुःख को नहीं समझते।
विचार : 19 >
चाणक्य के अनुसार, किसी युवती ने किसी पुरुष को देखकर लज्जा से सिर झुका लिया, किन्तु वह ढीठ बोला – तुम नीचे जमीन पर क्या देख रही हो क्या तुम्हारा कुछ खो गया है ? ‘इस पर वह युवती बोली – मूर्ख यहीं मेरी जवानी का मोती गिर गया है, क्या तुम नहीं जानते ?’।
विचार : 20 >
चाणक्य नीति कहती है कि, दान करने से, सैकड़ों उपवास करने से या तीर्थ यात्रा करने से स्त्री उतनी शुद्ध नहीं होती, जितनी पति के पैरों के जल से होती है।
विचार : 21 >
आचार्य जी का कहना है कि, केवड़े के वृक्ष में साँप रहते हैं, फल भी नहीं लगते, वह टेढ़ा-मेढ़ा भी होता है, उसमे कांटें भी होते हैं, वह उगता भी कीचड़ में है और उस तक पहुँचना भी आसान नहीं होता। इतनी कमियां होने पर भी अपने एक ही गुण – सुन्दर गंध के कारण केवड़ा सभी को प्रिय होता है। सच ही कहा गया है कि व्यक्ति का एक ही गुण सारी कमियों को छिपा देता है।
विचार : 22 >
चाणक्य नीति में लिखा है कि, जवानी, धन-संपत्ति की अधिकता, अधिकार और विवेकहीनता – इन चारों में से प्रत्येक बात अकेले ही मनुष्य को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है। किन्तु यदि कहीं ये चारों इकट्ठे हों तो मनुष्य के विनाश में ज्यादा समय नहीं लगता।
विचार : 23 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, जिनके ह्रदय में परोपकार की भावना होती है, उनकी विपत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं तथा पग-पग पर संपत्तियां प्राप्त होती हैं।
आशा करता हूँ कि, आचार्य चाणक्य के ये विचार आपके जीवन में क्रन्तिकारी परिवर्तन लाएंगे और आपको सामान्य से बेहतर बनाएंगे।
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धन्यवाद | आपकी अतिकृपा होगी
आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com