चाणक्य नीति: अध्याय-10 | आचार्य चाणक्य के 20 अनमोल विचार > इस संसार में ज्ञान से बड़ा कोई धन नहीं है, जिसके पास ज्ञान है सच कहें तो वही असली धनवान है। चाणक्य नीति दुनियादारी की समझदारी से भलीभांति परिचित कराती है और आपको सामान्य से बेहतर बनाती है, इसलिए बने रहिएगा हमारे साथ क्योंकि यहाँ पर नहीं होती इधर-उधर की बकवास, हमारे वेबसाइट पर होती है सिर्फ और सिर्फ समझदारी की बात।
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चाणक्य नीति: अध्याय-10
विचार : 1 >
आचार्य चाणक्य विद्या के महत्त्व को दर्शाते हुए कहते हैं कि, धनहीन व्यक्ति हीन नहीं कहा जाता बल्कि उसे धनी ही समझना चाहिए। जो विद्या रत्न से हीन है वस्तुतः वह सभी वस्तुओं में हीन है।
विचार : 2 >
आचार्य जी यहाँ कर्म की चर्चा करते हुए कहते हैं कि, इंसान को अच्छी तरह देखभाल कर ही आगे कदम बढ़ाना चाहिए, पानी को छानकर ही पीना चाहिए, शास्त्रों के अनुसार ही बात कहनी चाहिए तथा जिस काम को करने में मन आज्ञा दे वही करना चाहिए।
विचार : 3 >
आचार्य जी कहते हैं कि, यदि जीवन में बहुत सुखों की इच्छा है, तो विद्या को त्याग दो, और यदि विद्या की इच्छा है, तो सुखों का त्याग कर दो। क्योंकि सुख चाहने वालों को विद्या कहाँ और विद्या चाहने वालों को सुख कहाँ।
विचार : 4 >
आचार्य जी का कहना है कि, कवि अपनी कल्पना शक्ति सूर्य से भी आगे पहुँच जाते हैं, स्त्रियां हर अच्छा-बुरा काम कर सकती हैं, शराबी नशे में कुछ भी बक सकता है और कौवा गन्दी से गन्दी चीज भी खा सकता है।
विचार : 5 >
चाणक्य यहाँ भाग्य के बारे में चर्चा करते हुए कहते है कि, भाग्य बड़ा बलवान होता है, भाग्य रंक को राजा तथा राजा को रंक बना सकता है, धनी को निर्धन तथा निर्धन को धनी बना सकता है, क्योंकि कर्म के बाद का फल काफी कुछ भाग्य पर ही निर्भर होता है।
विचार : 6 >
चाणक्य पंडित कहते हैं कि, लोभी व्यक्तियों के लिए भीख, चंदा तथा दान मांगने वाले व्यक्ति शत्रुरूप होते हैं, क्योंकि मांगने वाले को देने के लिए उन्हें अपने गांठ के धन को छोड़ना पड़ता है। इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति को भी समझाने-बुझाने वाला व्यक्ति अपना दुश्मन लगता है, क्योंकि वह उनकी मूर्खता का समर्थन नहीं करता।
विचार : 7 >
पंडित जी यह भी कहते हैं कि, जिन लोगों में विद्या, तपस्या, दान देना, शील, गुण तथा धर्म में से कुछ भी नहीं है, वे मनुष्य पृथ्वी पर भार हैं। वे मनुष्य के रूप में पशु हैं जो मनुष्यों के बीच में घूमते रहते हैं।
विचार : 8 >
पंडित जी ने यह भी कहा है कि, जो लोग अंदर से खोखले हैं और उनके अंदर समझने की शक्ति नहीं है, ऐसे लोगों को उपदेश देने का कोई लाभ नहीं, क्योंकि वे बेचारे समझने की शक्ति के अभाव के कारण शायद चाहते हुए भी कुछ समझ नहीं पाते।
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चाणक्य नीति: अध्याय-10
विचार : 9 >
चाणक्य कहते हैं कि, जो लोग शास्त्र को समझने की बुद्धि नहीं रखते, शास्त्र उनका कैसे और क्या कल्याण कर सकता है..? जैसे जिसके दोनों नेत्रों में ज्योति नहीं है, जो जन्म से अँधा है, वह दर्पण में अपना मुख किस प्रकार देख सकता है। अर्थात शास्त्र अथवा विद्या भी उसी को लाभ पहुंचा सकती है जो अपनी बुद्धि के प्रयोग से उसे समझ सके।
विचार : 10 >
चाणक्य यह भी कहते हैं कि, जैसे मल का त्याग करने वाली इन्द्रिय को चाहे जितनी बार भी स्वच्छ किया जाए, साबुन, पानी से सैकड़ों बार धोया जाए, फिर भी वह स्पर्श करने योग्य नहीं बन पाती, उसी प्रकार दुर्जन को समझाना-बुझाना व्यर्थ ही होता है, वह सज्जन नहीं बन सकता।
विचार : 11 >
आचार्य जी ने कहा है कि, साधुओं-महात्माओं से शत्रुता करने पर मृत्यु होती है। शत्रु से द्वेष करने पर धन का नाश होता है। राजा से देष या शत्रुता करने पर सर्वनाश हो जाता है और ब्राह्मण से द्वेष करने पर कुल का नाश होता है।
विचार : 12 >
आचार्य जी कहते है कि, मनुष्य हिंसक जीवों – बाघ, हाथी और सिंह जैसे भयंकर जीवों से घिरे हुए वन में रह ले, पेड़ पर घर बनाकर रह ले, फल- पत्ते खाकर और पानी पीकर निर्वाह कर ले, धरती पे घास-फूस बिछाकर सो ले, फटे-पुराने कपड़ों में जीवन निर्वाह कर ले परन्तु धनहीन होने की दशा में अपने सम्बन्धियों के साथ कभी न रहे।
विचार : 13 >
चाणक्य कहते है कि, विप्र वृक्ष है, संध्या उसकी जड़ है, वेद उसकी शाखाये है और धर्म-कर्म उसके पत्ते है इसलिए जड़ की हरसंभव रक्षा करनी चाहिए क्योंकि जड़ के टूट जाने पर न तो शाखाएं रहती हैं और पत्ते।
विचार : 14 >
चाणक्य नीति कहती है कि जिस मनुष्य की माँ लक्ष्मी के समान है, पिता विष्णु के समान है और भाई-बंधु विष्णु के भक्त है, उसके लिए अपना घर ही तीनों लोकों के समान है।
विचार : 15 >
चाणक्य नीति में यह भी लिखा है कि, एक ही वृक्ष पर बैठे हुए अनेक रंग के पक्षी प्रातः काल अलग-अलग दिशाओं को चले जाते हैं, इसमें कोई नई बात नहीं है उसी प्रकार परिवार के सभी सदस्य परिवार रूपी वृक्ष पर आ बैठते है और समय आने पर चल देते हैं। इसमें दुःख या निराशा क्यों …? जो आया है वह एक दिन जाएगा ही।
विचार : 16 >
आचार्य जी का कहना है कि, जिस व्यक्ति के पास बुद्धि होती है, बल भी उसी के पास होता है। बुद्धिहीन का तो बल भी निरर्थक है, क्योंकि बुद्धि के बल पर ही वह उसका प्रयोग कर सकता है अन्यथा नहीं।
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चाणक्य नीति: अध्याय-10
विचार : 17 >
आचार्य जी ने यह भी कहा है कि, मुझे अपने जीवन की कोई चिंता नहीं है, क्योंकि भगवान को विश्व का पालन-पोषण करने वाला कहा जाता है, सत्य ही है, क्योंकि बच्चे के जन्म से पहले ही माँ के स्तनों में दूध आ जाता है, यह ईश्वर की ही माया है, इस सब का विचार करते हुए हे भगवन विष्णु, मै रात-दिन आपका ही ध्यान करता हुआ समय बिताता हूँ।
विचार : 18 >
पंडित चाणक्य कहते हैं कि, संस्कृत भाषा का विशेष ज्ञान होने पर भी मै अन्य भाषाओं को सीखना चाहता हूँ। स्वर्ग में देवताओं के पास पीने को अमृत होता है, फिर भी वे अप्सराओं के अधरों का रस पीना चाहते हैं।
विचार : 19 >
पंडित जी यहाँ पर शक्ति की चर्चा करते हुए कहते हैं कि साधारण अनाज से आटे में दस गुनी शक्ति है। आटे से दस गुनी शक्ति दूध में है। दूध से भी दस गुनी अधिक शक्ति मांस में है तथा मांस से भी दस गुनी शक्ति घी में है।
विचार : 20 >
आचार्य पंडित चाणक्य के अनुसार, शोक से रोग बढ़ते हैं, दूध से शरीर बढ़ता है, घी से वीर्य बढ़ता है और मांस से मांस बढ़ता है।
आशा करता हूँ कि, चाणक्य पंडित की बातें आपके दिमाग में कुछ न कुछ खलबली अवश्य मचाएंगे और इसके कारण भविष्य में आप अपने आप को वर्तमान से बेहतर पाएंगे।
अपने अपना कीमती समय जो हमारे आर्टिकल को पढ़ने में लगाया इसके लिए हम और हमारी टीम आपका तहे दिल से आभार प्रकट करते हैं, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, तब तक के लिए….. जय हिन्द – जय भारत।
Thanking You | धन्यवाद | शुक्रिया | मेहरबानी
आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com