कोरोना, क्या नाम है, एक ऐसा नाम जिसे इस पृथ्वी का कोई भी प्राणी नज़र अंदाज़ नहीं कर सकता। 2020 वर्ष का कोरोना नामक महामारी शायद 21वीं सदी का सबसे दर्दनाक हादसा हो। यह कोरोना एक ऐसा अदृश्य दुश्मन है जो दिखता तो नहीं है पर दिखा देता है या तो मौत या बेबस जिंदगी और जिंदगी भी ऐसी जिसमें डर, बेबसी और मायूसी के सिवा और कुछ भी नहीं है। “कोरोना के रंग जीवन के संग | क्या करके जाएगा कोरोना“।
नमस्कार दोस्तों, मै अमित दुबे आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ……………………………….
कोरोना के रंग जीवन के संग
कोरोना का आतंक :
आज पूरा संसार मिलकर एक छोटे से वायरस से लड़ रहा है और यह वायरस इस भूमण्डल के सबसे ताक़तवर प्राणी इंसान से आँख मिचौली खेल रहा है और कह रहा है कि ये इंसान बहुत घमंड था ना तुझे अपने दिमाग पर तू तो अंतरिक्ष पर राज करने चला था पर क्या हुआ तू तो हार गया मुझ जैसे एक छोटे से वायरस से, कहाँ गया तेरा दिमाग क्यों नहीं खोज पा रहा अब तू मेरा तोड़।
दोस्तों, यह व्यंग कोरोना की वाणी तो नहीं है, पर अगर वह कोई जीव होता और कुछ सोच और बोल पाता तो शायद ऐसे ही आज इंसान का मजाक उड़ा रहा होता। और हम इंसान उसके इस मज़ाक को झेलने के लिए शायद बेबस ही होते और हमारे पास कोई जबाब नहीं होता और शायद हम यह कह रहे होते कि ये कोरोना अब तो तू ही बतादे कि तेरी रजा क्या है और इसके बदले हम बड़ी से बड़ी कीमत भी चुकाने को तैयार हो जाते। कुछ ऐसा ही आतंक फैला हुआ है ना दोस्तों कोरोना नामक महामारी का हमें कुछ भी नहीं सूझ रहा है कि हम क्या करें और क्या ना करें।
इंसान की बेबसी :
आज पूरा संसार इस महामारी के आगे बेबस हो चूका है, क्या मंदिर, क्या मस्जिद, क्या गुरुद्वारा और क्या चर्च सब बंद पड़े हैं, पूरी दुनियाँ की अर्थव्यवस्था खतरे पड़ गयी है, दुनियाँ की सबसे बड़ी ताक़त वाला देश अमेरिका भी माथा पीट रहा है किसी को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है, सबकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी है, सारी हेकड़ी निकल गयी है। एक कहावत है कि हर रात की एक सुबह होती है लेकिन इस रात की सुबह कब होगी कोई भी नहीं बता पा रहा है।
अमीर से लेकर गरीब तक कोई भी नहीं बच पा रहा है इस प्रकोप से, कब, कहाँ और कैसे किसपे गाज गिर जायेगी इसका अनुमान नहीं लगा पा रहा है कोई, अमीर अपने व्यापार और उद्योग को लेकर परेशान है तो गरीब अपनी रोजी-रोटी को लेकर परेशान है, एक मध्य वर्ग है जो अपनी अलग ही राग गाये जा रहा है कि मेरा क्या होगा, मै इतना अमीर नहीं कि इसे ज्यादा दिन तक झेल पाऊं और इतना गरीब भी नहीं कि किसी से भी रोटी की मांग कर सकूँ, मेरी चिंता रोटी कि नहीं अपनी EMI और इज़्ज़त की है काश की कोई मेरा भी दर्द समझ पाता।
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कोरोना के रंग जीवन के संग | क्या करके जाएगा कोरोना
लॉकडाउन का दर्द :
कोरोना से बचने का सबसे कारगर तरीका है Lockdown लेकिन आखिर कब तक इस Lockdown को कोई झेल सकता है क्योंकि Lockdown करके कोरोना से बचाव तो समझ में आता है लेकिन इसका जो दूरगामी प्रभाव पड़ेगा उसका भुगतान कौन करेगा। दुनियाँ के लगभग सभी वह देश जो कोरोना से पीड़ित हैं Lockdown के दौर से गुज़र रहे हैं और इस कारण वो अंदर ही अंदर घुट कर मर भी रहे हैं कि फ्यूचर में इसकी कवरिंग कैसे करेंगे।
हमारा देश भारत तो पहले से ही परेशानी के दौर से गुज़र रहा था, ऊपर से ये कोरोना जो 54 दिन के Lockdown के बाद भी सरपट ऊपर की तरफ ही मुँह उठाये चला जा रहा है और कह रहा है मै तो ना रुकूँ, मै तो कुछ करके ही मानूंगा, भारतवासियों दुनियाँ को बर्बाद कर चुका हूँ तो तुम्हें कैसे छोडूंगा तुम मेरे रिस्तेदार थोड़े ही लग रहे हो, मेरा रिस्तेदार तो चीन है जो मेरा जन्म स्थान है। मै तो विश्व भ्रमण पर निकला हूँ और जो भी जहाँ भी मिल रहा है उसे नापता जा रहा हूँ।
वैक्सीन तो मै ही बनाऊँगा :
कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच देश की अर्थव्यवस्था को मद्देनज़र रखते हुए भारत सरकार ने जान भी है और जहान भी है का नारा देते हुए Lockdown में थोड़ी ढील करने के बारे में सोचा है और इसका फैसला राज्य सरकारों के ऊपर छोड़ा है कि आप फैसला करो कि कैसे लोगों की जान की रक्षा भी हो और देश की अर्थव्यवस्था भी संभल सके और सभी राज्य इस बारे में गंभीरता से विचार करके कदम उठा भी रहे हैं।
कोरोना का वैक्सीन जब तक नहीं बन जाता, तब तक इसका खतरा कम नहीं हो पायेगा और यह इसी तरह अपना प्रकोप दिखाता रहेगा। अब सवाल यह है कि आखिर वैक्सीन कौन बनाएगा, कब तक बनाएगा, और कोई बना पायेगा या फिर कोशिशें ही चलती रहेंगी।
कोरोना की वैक्सीन बनाने की होड़ पूरी दुनियाँ में चल रही है और 100 से ऊपर कम्पनियाँ इस पर काम कर भी रही हैं लेकिन अभी तक कोई भी ऐसी उम्मीद की किरण कहीं से भी नज़र नहीं आ रही है कि जल्दी में कोई परिणाम देखने को मिल सके। क्योंकि किसी भी वायरस की वैक्सीन बनाने के लिए पहले उस वायरस की पूरी जानकारी एकत्रित की जाती है, उसके हर एक पहलु से रूबरू हुआ जाता है उसके बाद भी एक लम्बा वक्त इसमें लगता है जैसे 6 महीने, 12 महीने, 18 महीने या फिर इससे ज्यादा का वक्त भी लग सकता है और वैक्सीन बनने के बाद भी कोई गारंटी नहीं हे कि वह पहले ही परिक्षण में सफल हो जाए।
कोरोना की वैक्सीन बन ही जाए, इस बात की कोई गारंटी भी नहीं है क्योंकि दुनियाँ में ऐसे बहुत से वायरस हैं जिनके वैक्सीन आज तक नहीं बन पाए हैं इसलिए कोई गारेंटी नहीं है कि कोरोना की वैक्सीन बन ही जायेगी लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अगर वैक्सीन नहीं बन पायी तो जिंदगी भर लोगों को Lockdown में ही रहना पड़ेगा इसलिए हमें कोरोना की वैक्सीन के अतिरिक्त भी कोई न कोई ऐसा रास्ता निकालना पड़ेगा ताकि इंसान अपना जीवन यापन कर सके।
वैसे दुनियाँ के कई देश वैक्सीन बनाने के काम में बहुत ही तेजी से लगे हुए हैं और वे दावा भी कर रहे हैं कि हम वैक्सीन जल्द ही दुनियाँ के सामने पेश करेंगे इस दौड़ में हमारा देश भारत भी बहुत ही तेज गति से शामिल है और मोदी जी के नेतृत्व में 30 कम्पनियाँ इस पर तेजी से काम कर रही हैं।
कोरोना की वैक्सीन बनाने की होड़ दुनियाँ में लगी हुई है और “पहले मै-पहले मै” वाली दौड़ चल रही है क्योंकि जो भी देश कोरोना की वैक्सीन पहले बना लेगा वह एक नये अविष्कारक के रूप में दुनियाँ में जाना जाएगा और साथ में कमाई का भी एक जबरदस्त जरिया होगा। अब देखना यह है कि यह चमत्कार कौन सा देश करता है और कोई कर भी पायेगा या फिर यह दौर यूँ हीं चलता रहेगा और कोरोना फूलता और फलता रहेगा ये तो वक्त ही बताएगा कि वह कौन सा देश होगा जो कोरोना पर विजय पायेगा।
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कोरोना के रंग जीवन के संग | क्या करके जाएगा कोरोना
वैक्सीन नहीं बना तो क्या होगा :
आवश्यकता आविष्कार की जननी है, यह बात बिलकुल सत्य है, कि जब तक किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं होती तब तक उसके आविष्कार के बारे में कोई विचार भी नहीं किया जाता है ठीक वैसे ही कोरोना के वैक्सीन की भी कहानी है कि इससे पहले तो कोरोना था ही नहीं तो वैक्सीन भी नहीं बनी लेकिन अब-जब कोरोना का आविष्कार हुआ है तो जाहिर सी बात है कि उसके वैक्सीन का भी आविष्कार होगा ही लेकिन कब तक इस बात का किसी के पास भी कोई जबाब नहीं है लेकिन अगर वाकई में वैक्सीन नहीं बन पायी तो क्या होगा सबसे बड़ा सवाल यह है।
कोरोना की वैक्सीन या तो बन जायेगी या फिर नहीं बन पाएगी, बन गयी तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है लेकिन अगर नहीं बन पायी तब क्या होगा। यह बात अभी से चर्चा में आ चुकी है और दुनियाँ भर के वैज्ञानिक इस पर अपने-अपने बयान भी देने लगे हैं और इसमें भी दो गुट हो गए हैं।
वैज्ञानिकों का एक तबका कह रहा है कि अगर वैक्सीन नहीं बन पायी तो बहुत बड़ी तबाही होगी और वहीं पर दूसरा तबका कह रहा है कि हमें बगैर वैक्सीन के ही जीवन जीने की आदत डालनी चाहिए और कोरोना से दो-दो हाथ करने चाहिए क्योंकि हमारा शरीर खुद अपने आप में एक तत्वों का समूह है यह परिस्थितियों के हिसाब से खुद को ढाल लेता है और धीरे-धीरे यह अपने आप कोरोना से लड़ने के तत्त्व पैदा कर लेगा और एक दिन ऐसा भी आ जाएगा जब कोरोना के साथ रहने की हमें आदत सी पड़ जायेगी हालाँकि यह शुरूआती दौर में कितना घातक होगा यह नहीं कहा जा सकता लेकिन समय के साथ-साथ इसका प्रभाव कम होता जाएगा।
कोरोना के रंग जीवन के संग | क्या करके जाएगा कोरोना
क्या कोरोना हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगा :
हाँ यह भी हो सकता है अगर वैक्सीन नहीं बन पाया तो हमें इसके साथ जीने की आदत डालनी पड़ेगी जैसे – मास्क लगाना, हाथ धोना, हाथ ना मिलाना, दूर से ही बात करना, भीड़ से बचना आदि हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगा।
वैसे समय के साथ-साथ हमारे अंदर से कोरोना नामक डर भी ख़त्म होता जाएगा क्योंकि समय के साथ-साथ हमारी जानकारियाँ भी तो बढ़ती जाती हैं और किसी भी समस्या का समाधान उसकी पूर्ण जानकारी होती है।
दोस्तों, एक बात तो आप सभी जानते ही हैं कि जहाँ समस्या है वहीं आस-पास कहीं ना कहीं समाधान भी होता है कोरोना नामक समस्या का भी समाधान जल्दी ही निकल जाएगा इसलिए चिंता ना करें बल्कि चिंतन करें क्योंकि पूरी दुनियाँ के जो वैज्ञानिक हैं वे लैबों में बैठकर लॉलीपॉप नहीं खा रहें हैं बल्कि कोरोना की वैक्सीन बना रहे हैं और बना भी लेंगे। जब वे अंतरिक्ष का सीना चीर सकते हैं तो कोरोना क्या चीज है।
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दोस्तों, ये जिंदगी बहुत छोटी है और बड़ी भी है, यह तो आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे लेते हैं, इसलिए इसे “जिओ जी भर के, न कि डर-डर के” क्योंकि जिंदगी ना मिलेगी दुबारा।
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आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO www.motivemantra.com
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