कृष्णा अवतार भगवान विष्णु का आठवां अवतार होता है, यह अवतार भगवान ने मथुरा नरेश कंस के बढ़ते अहंकार और अत्याचार का नाश करने के लिये लिया था, लेकिन ऐसा क्या कर दिया था कंस ने कि भगवान विष्णु को उनके विनाश के लिये पृथ्वी पर श्री कृष्ण के रूप में जन्म लेना पड़ा, आइये इस आर्टिकल के माध्यम से भगवान नारायण के इस अवतार के बारे में गहराई से जानते हैं > कृष्णा अवतार | भगवान विष्णु का आठवां अवतार
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कृष्ण अवतार | भगवान विष्णु का आठवां अवतार
गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 और 8 में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि…..
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। (7)
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (8)
भावार्थ
हे भरतवंशी, जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है तब तब मै अवतार लेता हूँ।
हे अर्जुन, भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ।
भक्तों, गीता का यह श्लोक हालाँकि महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, लेकिन इससे पहले भी विष्णु भगवान ने यह श्लोक बहुत बार बोला है, विष्णु पुराण में भगवान ने कहा है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म धर्म पर हावी होने लगेगा तब-तब मै अवतार लूंगा और धर्म की रक्षा करूँगा।
अपने इसी प्रण को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने पहला अवतार मत्स्य का अर्थात मछली का लिया था और दूसरा अवतार कूर्म अर्थात कछुए का लेते हैं जिसके बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं, तो आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं भगवान विष्णु के दूसरे अवतार अर्थात कूर्म अवतार के बारे में…..
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भगवान विष्णु ने कृष्णा अवतार क्यों लिया ?
पुराणों के अनुसार मान्यता है कि वैंकुंठ लोक में भगवान विष्णु के दो दरबारी थे जिनका नाम था जय और विजय, यह बात उस समय की है जब सनकादिक मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए वैकुण्ठ धाम गए थे।
वे जब वैकुण्ठ धाम के द्वार से अंदर को जाने लगे तो दोनों द्वारपालों ने उन्हें अंदर जाने से मना किया और उनकी हंसी भी उड़ाई जिस बात से सनकादिक मुनि उनसे रुष्ट हो गए और उन दोनों को तीन जन्मों तक राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
सनकादिक मुनियों के श्राप देते ही दोनों द्वारपाल उनसे क्षमा की भीख मांगने लगे तो मुनियों ने कहा कि आने वाले तीनों ही जन्मो में तुम्हारा उद्धार भगवान विष्णु ही करेंगे, और तीन जन्म के बाद ही तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।
और उसी श्राप के कारण सतयुग के समय में पहले जन्म में वे दोनों हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में जन्म लेते हैं, जिनके उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने वराह रूप लेकर हिरण्याक्ष तथा नरसिंह रूप लेकर हिरण्यकशिपु का वध किया था।
दूसरे जन्म त्रेतायुग के समय में उन दोनों ने रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्म लिया, और इस युग में भगवान विष्णु ने श्री राम का अवतार लिया और दोनों का वध किया।
तीसरे जन्म द्वापर युग के समय में दोनों ने शिशुपाल और दन्त वक्र के रूप में जन्म लिया, और इस युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेकर दोनों का वध किया था।
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कृष्ण अवतार की कहानी
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भगवान विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य के रूप में मनाया जाता है, श्री कृष्ण मथुरा नरेश कंश के बहनोई वासुदेव और कंश की बहन देवकी के आठवें संतान थे। कंश मथुरा के राजा उग्रसेन का पुत्र था, जिसने अपने पिता राजा उग्रसेन को सिंहासन से उतार कर उन्हें कारागार में बंदी बनाकर स्वयं को मथुरा का राजा घोषित कर दिया था और उसी मामा कंश का वध करने के लिए श्री कृष्ण का जन्म हुआ था।
श्री कृष्ण के जन्म से पहले ही कंश की मृत्यु की भविष्यवाणी हो गयी थी, क्योंकि जब वासुदेव और देवकी का विवाह संपन्न हुआ, और कंश अपनी बहन की विदाई हंसी-ख़ुशी कर रहा था तभी आकाश से एक भविष्यवाणी होती है कि हे कंश तू अपनी जिस बहन का विदाई बहुत ही प्रसन्नता से कर रहा है, उसी का आठवां संतान तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।
कंश ने जैसे ही वह आकाशवाणी सुनी उसने अपने बहन और बहनोई को तत्काल ही कारावास में डलवा दिया क्योंकि उसका मानना था कि जब वह अपने किसी भी भांजे-भांजी को जीवित ही नहीं छोड़ेगा तो आखिर उसका वध कौन करेगा, और इसी के कारण वह जैसे ही देवकी का कोई संतान पैदा होता वह उसे जान से मार देता था।
लेकिन विधाता के लिखे को कोई मिटा नहीं सकता, और वही हुआ क्योंकि जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो वासुदेव की बेड़ियाँ अपने-आप खुल गई, कारागार के दरवाजे अपने आप खुल गए, सभी द्वारपालों को नींद आ गई, और तेज बरसात के बीच वासुदेव श्री कृष्ण को लेकर गोकुल के लिए निकल पड़े।
उसी बीच यमुना नदी का जलस्तर भी कम हो गया, और वासुदेव श्री कृष्ण को लेकर गोकुल नगरी के अपने मित्र नन्द के घर पहुंचे जहाँ उनकी पत्नी यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया था, वासुदेव ने धीरे से श्री कृष्ण को यशोदा की बगल में सुलाकर बदले में उनकी पुत्री को वहां से चुप-चाप लेकर जेल की कारागार में रातों-रात वापिस आ गए, और इस तरह श्री कृष्ण की जान बची।
गोकुल में नन्द और यशोदा की संतान के रूप में श्री कृष्ण ने अपना बचपन बिताया, उनके बालपन की कहानियाँ भी बड़ी अनोखी हैं, जिसमें ग्वालों संग गइयाँ चराना, गोकुल की घरों से माखन चुराना, यमुना तट पर नहाती हुई ग्वालिनों के कपड़े चुराना, राधा संग प्रेम का रास रचाना, गोवर्धन पर्वत उठाना, कालिया नाग के सिर पर नृत्य करना, दुष्ट मामा कंश के जानलेवा हमलों से खुद को बचाना और अंततः मामा कंश का वध करके अपना कर्त्तव्य निभाना आदि शामिल है।
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महाभारत की लड़ाई में श्री कृष्ण की भूमिका
महाभारत की लड़ाई के दौरान कृष्ण की बड़ी ही अहम भूमिका होती है, क्योंकि जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध निश्चित हो जाता है तब सवाल यह उठता है कि इस युद्ध में कृष्ण किसका पक्ष लेंगे, क्योंकि श्री कृष्ण पांडवों के ममेरे भाई लगते थे वह पांडवों की माता कुंती के भतीजे थे, माता कुंती कृष्ण की बुआ लगती थी, इसी कारण से कहीं ना कहीं दुर्योधन भी कृष्ण का ममेरा भाई ही लगता था।
जब दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही कृष्ण से अपने पक्ष में युद्ध करने की विनती करने लगते हैं तो कृष्ण कहते हैं कि पहली बात तो मै इस युद्ध में शस्त्र नहीं उठाऊँगा और दूसरी बात यह है कि एक तरफ मै निहत्था बिना किसी प्रकार के शस्त्र के रहूँगा और दूसरी तरफ मेरी नारायणी सेना रहेगी आप दोनों ही इनमें से एक पक्ष को स्वीकार कर सकते हैं।
इस बात पर दुर्योधन पहले अपनी मांग को रखना चाहता है जिस पर श्री कृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि पहले मेरे आँखों के सामने अर्जुन पड़े हैं इसलिए पहले अर्जुन अपनी मांग रखेंगे क्योंकि जब दुर्योधन कृष्ण के पास आया था तो वह सो रहे थे इसलिए वह उनके सिर की तरफ बैठ गया तत्पश्चात अर्जुन आये और वे कृष्ण के पैर की तरफ बैठ गए थे और जब कृष्ण की आंख खुली तो उनके सामने अर्जुन बैठे हुए थे और इसी बात को लेकर उन्होंने दुर्योधन से कहा कि पहले मेरे आँखों के सामने अर्जुन दिखे इसलिए पहले अर्जुन अपनी बात रखेंगे बाद में तुम रखना।
अर्जुन ने कृष्ण से अपनी मांग में कृष्ण को ही माँगा क्योंकि वे एक बुद्धिमान व्यक्ति थे और जानते थे कि जहाँ कृष्ण होंगे वहीँ विजय होगी, अर्जुन की इस बात को सुनकर दुर्योधन बहुत ही प्रसन्न हुआ, और जब दुर्योधन की बारी आई तो उसने कृष्ण से उनकी नारायणी सेना की मांग की उसका मानना था कि कृष्ण तो किसी भी प्रकार का कोई भी शस्त्र उठाएंगे नहीं, तो युद्ध में उनको अपनी तरफ लेने का क्या फायदा जबकि उनकी नारायणी सेना तो लड़ाई में उसके सैनिकों के साथ काम आएगी।
और इस तरह अर्जुन के रथ के सारथी के रूप में कृष्ण पांडवों की सेना में शामिल हुए और कृष्ण की नारायणी सेना कौरवों की सेना में शामिल हुई। युद्ध की शुरुआत की घोषणा हुई , दोनों तरफ की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं, और तभी अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि हे केशव मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले चलो, मै देखना चाहता हूँ कि इस भयानक युद्ध में वे कौन कौन से लोग शामिल हैं जो हमसे युद्ध करने के लिए हमारे सामने खड़े हैं, और अर्जुन के ऐसा कहते ही कृष्ण ने अपने रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दिया, और वहीँ से शुरू होती है कृष्ण की एक लीला जिसे गीता का उपदेश कहते हैं, और क्या है गीता का उपदेश, कृष्ण द्वारा अर्जुन को क्यों सुनाना यह उपदेश और क्या था गीता का उद्देश्य आइये विस्तारपूर्वक जानते हैं।
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जब कृष्ण ने अर्जुन को सुनाया गीता का उपदेश
जब अर्जुन ने देखा कि इस लड़ाई में हमारे सामने कोई गैर नहीं है, बल्कि अपने ही सगे-सम्बन्धी जैसे-चाचा, ताऊ, चचेरे भाई, फूफा, पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य और कृपाचार्य जैसे लोग खड़े हैं तो वे बड़े ही असमंजस में पड़ जाते हैं, और युद्ध न करने की बात करके रथ के पिछले हिस्से में अपना गांडीव रखकर खुद को आत्म-समर्पित कर देते हैं।
अर्जुन की इस कायरता को देख कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देना शुरू किया जिसमें कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक शामिल हैं, गीता में कृष्ण ने अर्जुन को यह बताया है कि मानव जीवन क्या है, और इसे कैसे जीना चाहिए, आत्मा क्या है, मन क्या है, इन्द्रियां क्या हैं और उन्हें कैसे बस में किया जा सकता है, मनुष्य कहाँ से आया है, उसे क्या करना चाहिए और वह मृत्यु के बाद कहाँ जायेगा आदि के बारे में विस्तार पूर्वक बताया है।
कृष्ण ने अर्जुन को गीता में गीता सार के साथ-साथ सांख्ययोग, कर्मयोग, भक्तियोग, सहित अन्य योगों के बारे में तो बताया ही है, साथ ईश्वर अर्थात अपने बारे में भी विस्तारपूर्वक बताया है और अर्जुन की इच्छा पर उनको अपना साक्षात विश्वरूप दर्शन भी कराया है। कृष्ण ने अर्जुन को आधार बनाकर समस्त मानव जाति को गीता सुनाया है, जिसे समझकर उसके अनुरूप अपने जीवन को जीते हुए कोई भी मनुष्य भगवद्प्राप्ति कर सकता है।
दोस्तों, गीता में जीवन के सभी समस्यायों का समाधान है, जो भी व्यक्ति गीता को पढ़कर उसके अनुरूप अपना जीवन जीता है, वह जीवन के हर मोड़ पर ढृढ़तापूर्वक आगे बढ़ता जाता है और सफलता की ऊंचाइयों से रूबरू होते हुए एक दिन एक महान व्यक्तित्व का मालिक होता है, लेकिन इसके लिए आपको गीता निरंतर पढ़ना होगा और उसे समझना होगा और अगर आप ऐसा कर लेते हैं, तो आप एक सामान्य से बेहतर इंसान बन सकते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही साथ आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय हिन्द – जय भारत
लेखक परिचय
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