कभी सोचा है क्या ? जो माता-पिता अपने पूरे जीवन काल की इच्छाओं की बलि देकर अपने बच्चों को पालते-पोसते हैं, उनकी हर एक फरमाइस को पूरा करते है और उन्हें पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाते हैं और वही बच्चा एक दिन अपनी पत्नी के बहकावे में आकर उनको नज़र-अंदाज़ करने लगता है, बात-बात पर उन्हें आलोचित करने लगता है अपने मॉर्डन लाइफ स्टाइल जीवन-शैली को जीने के लिए उन्हें छोड़कर चला जाता है तो उनके दिल पर क्या गुज़रती होगी।
और यह सिर्फ माता-पिता और बच्चों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मानवीय व्यावहारिक विचारधारा में हम ऐसी बाते अक्सर देखते और सुनते रहते हैं कि फलां व्यक्ति ने फलां व्यक्ति को ऐसा कह दिया जबकि उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। अब आप यह सोच रहे होंगे कि भला किसने किसको क्या कह दिया, तो आइये आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं मानवीय विचारधारा के उस पहलु के बारे में जिसने मुझे इस आर्टिकल को लिखने की प्रेरणा दी कि “कभी सोचा है क्या ?“…..
कभी सोचा है क्या ?
जब बेटा माता-पिता को इग्नोर करता है तो क्या होता है ?
एक गरीब के बेटे ने कहा, कि मेरे माता-पिता भले ही कितने भी गरीब थे लेकिन मुझे हमेशा ही अमीर बनाकर रखा अर्थात घर में कितनी भी मुसीबते रही हों लेकिन मेरे माता-पिता ने कुछ भी किया, कैसे भी किया लेकिन जितनी भी हो सकती थी उन्होंने मेरे हर एक जरुरत को पूरा करने की पूरी कोशिश की।
दोस्तों, चाहे आमिर हो या फिर गरीब हर एक शख्स अपने बच्चों को बेहतर से बेहतर जीवन शैली देने की कोशिश करता है, कोई भी माँ-बाप नहीं चाहते कि उनका बच्चा मुफ़रसी भरी जिंदगी जिए, अब इसके लिए उसे खुद क्यों ना ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़े।
हर एक माँ-बाप अपने बच्चों को अपनी औकात के हिसाब से पालता-पोसता है, उनका सपना होता है कि मेरा बच्चा खूब पढ़े-लिखे और बड़ा होकर बड़ा आदमी बने जिसमे बहुत से लोगों का सपना पूरा भी हो जाता है और बहुत सारे लोगों की उम्मीदें टूट जाती हैं।
जिन माँ-बाप की उम्मीदें टूट जाती हैं वो तो किसी तरह अपने-आप को मना लेते हैं लेकिन जिनके सपने पूरे हो जाते हैं उन्हें अपने बच्चों पर बहुत गर्व होता है और होना भी चाहिए। बच्चा बड़ा आदमी बन जाता है, अच्छे खाशे पैसे भी कमाने लगता है, अच्छे रिश्ते भी आते हैं, खूब धूम-धाम से उसका विवाह भी हो जाता है, घर में खुशहाली ही खुशहाली छा जाती है।
समय बीतने लगता है माँ-बाप बूढ़े होने लगते हैं और उनका वर्चस्व धीरे-धीरे घटने लगता है क्योंकि उनको जो भी देना था वह सब कुछ दे चुके होते हैं, अब सत्ता नए हाथों में आ चुकी होती है क्योंकि उनका बेटा अब कमाऊ हो चूका होता है जिस पर अब उसकी पत्नी का अधिकार जम चुका होता है।
माँ-बाप को अब सहारे की जरुरत होती है पर सहारा बने कौन बेटे के पास समय नहीं होता, बहु आखिर क्यों करे उनकी नौकरानी थोड़े ही है, घर का कमाऊ उसके चंगुल में है, वैसे भी अब वह अपने बच्चों की परवरिश करे जो उसके भविष्य हैं या फिर उनकी जिनके पास अब देने के लिए कुछ भी नहीं है।
घर का माहौल बूढ़े माँ-बाप की वजह से ख़राब होने लगता है, बेटा जब शाम को घर में आता है तो उसकी पत्नी उसके माँ-बाप के खिलाफ उसे भड़काने का काम करती रहती है, अब बेटा क्या करे, एक तरफ माँ-बाप जिन्होंने उसे जीवन दिया और दूसरी तरफ पत्नी जिसके साथ उसका भविष्य कटना है और ऐसे में मामला बड़ा गंभीर हो जाता है।
जैसे-तैसे बेटा दोनों रिश्तों को निभाते हुए कशमकश भरी जिंदगी काटता रहता है लेकिन धीरे-धीरे गृह मंत्रालय का प्रभाव काम करने लगता है और वही बेटा ना चाहते हुए भी अपने माँ-बाप को इग्नोर करने लगता है। आखिर ऐसा क्यों होता है, क्योंकि इस मतलबी दुनियाँ में हर कोई अपना फायदा देखता है और बेटे को अब अपने पत्नी की बात में ही सारा फायदा दिखता है।
ऐसे बेटों के लिए दो शब्द > क्या आपने कभी सोचा है क्या ? कि जब आप बूढ़े हो जायेंगे और आपका बेटा भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करेगा तो आप पर क्या गुज़रेगी।
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जब पति या पत्नी का भरोसा टूटता है तो क्या होता है ?
विवाह सिर्फ दो शरीरों का ही नहीं बल्कि दो आत्माओं का भी मिलन होता है, पति-पत्नी का रिश्ता भरोसे का होता है लेकिन जब उस रिश्ते में भरोसे की कमी आ जाए तो जीवन विष के समान हो जाता है, जिसका प्रभाव उनके बच्चों पर भी पड़ता है।
चाहे पुरुष हो या फिर महिला जीवन का एक ऐसा पड़ाव आता है जब उन दोनों को ही अपने अंदर प्रेम का एहसास होता है जिसके कारण वे एक दूसरे का सहारा ढूंढते है और इसी कारण ज्यादातर लोग शादी से पहले ही प्रेम प्रसंगों के चक्कर में पड़ जाते हैं।
प्रेम करना गलत नहीं होता है, लेकिन प्रेम का एक दायरा होता है, प्रेम करने की एक उम्र होती है, प्रेम की एक मर्यादा होता है, जिसको लांघना गलत होता है, जवानी अंधी होती है जिसमे युवा या युवती जोश में आकर बहुत सारी गलतियां कर जाते हैं।
हालाँकि शादी के बाद ज्यादातर लोग उन जोश और गलतियों से मुक्ति पाते हुए अपने वैवाहिक जीवन को सीरियस्ली लेते हुए अपना जीवन सकारात्मक रूप से जीने लगते है लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो शादी के बाद भी नहीं सुधरते हैं और इधर-उधर मुंह मारते रहते हैं, और यह बात खाशकर मर्दों में ज्यादा पायी जाती है।
ऐसे मर्दों के लिए दो शब्द > क्या आपने कभी सोचा है क्या ? कि जो हरकतें आप अपनी पत्नी के चोरी बाहर करते हैं अगर वैसी ही आपके चोरी आपकी पत्नी भी करने लगे और इसके बारे में आपको किसी अन्य माध्यमों से पता चले तो आप पर क्या गुज़रेगी।
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जब भाई ही भाई को धोखा देता है तो क्या होता है ?
एक ही कोख से पैदा हुए, एक ही घर में एक ही माँ-बाप की सरफरस्ती में पले-बढ़े दो भाई जो बचपन में एक-दूसरे पर जान छिड़कते हैं लेकिन बड़े होने पर जब उनकी शादी हो जाती है और उन दोनों के ही अपने-अपने परिवार हो जाते हैं जिसके कारण अपने-अपने हिस्से की बात होने लगती है।
एक भाई दूसरे भाई से प्रॉपर्टी में ज्यादा हिस्सा प्राप्त करने की फ़िराक में बहुत सारी घटिया किस्म की चालें चलता है और कुछ भी करके कैसे भी करके अपने ही सगे भाई के खिलाफ साजिश और धोखा करके उससे ज्यादा संपत्ति हासिल कर लेता है।
वह लालच के नशे में इतना अँधा हो जाता है कि उसे प्रॉपर्टी के अलावा और कुछ भी नहीं दिखता है, आखिर वह उसका सगा भाई होता है जिससे लड़ने के लिए वह बाहरी लोगों का भी सहारा लेता है जिसके लिए वह उन पर फिजूल पैसे भी खर्च करता है और अपने खानदान का नाम भी मिट्टी में मिलाता है।
ऐसे भाइयों के लिए दो शब्द > क्या आपने कभी सोचा है क्या ? कि जो आप कर रहे होते हैं कितना सही और कितना गलत होता है, आखिर आप का सगा भाई ही तो है, थोड़ा ज्यादा या कम हिस्सा मिल गया तो क्या है, मरते वक्त सारी संपत्ति अपने साथ ले जाओगे क्या, सब यहीं रह जायेगा, और अगर आपका सगा भाई आपके साथ यही करता है तो आप पर क्या गुज़रेगी।
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जब दोस्त पीठ में खंज़र मारता है तो क्या होता है ?
कहते हैं दोस्ती का रिस्ता बहुत ही मायने रखता है, क्योंकि ज्यादातर रिस्ते तो सामाजिक तौर पर बनते हैं लेकिन दोस्ती का रिस्ता दिल से बनता है और यह तब बनता है जब दो लोगों के बीच किसी ना किसी रूप में कोई ना कोई ताल-मेल बनता है।
अधिकतर दोस्ती कुछ इन रूपों में होती है – छात्र दोस्त, पड़ोसी दोस्त, खेल दोस्त, सहकर्मी दोस्त, रिस्तेदारी दोस्त, व्यापारी दोस्त या फिर नशेड़ी दोस्त। दोस्त कैसा भी हो वह तो आखिर दोस्त ही है, और दोस्ती के कारण ही हम उस पर भरोसा भी करते हैं।
लेकिन वही दोस्त जब हमारे पीठ में खंज़र मारता है, जैसे – पैसों को लेकर, घर में बहन-बेटियों को लेकर, पीठ पीछे शिकायतों को लेकर या फिर किसी भी अन्य मामलों को लेकर वह हमारे विश्वास का गला घोंटता है और दोस्ती नामक रिश्ते को शर्मशार करता है तो बहुत दुःख होता है।
ऐसे दोस्तों के लिए दो शब्द > क्या आपने कभी सोचा है क्या ? कि जिस दोस्त पर आप अपने से ज्यादा भरोसा करते हैं वही दोस्त आपके पीठ पीछे आपकी शिकायत करता है या फिर आपकी गैर-हाज़िरी में आपकी बहन-बेटी पर गलत निगाह रखता है तो आप पर क्या गुज़रेगी।
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जब सुन्दर कुरूप का मज़ाक उड़ाता है तो क्या होता है ?
इस संसार में हर एक व्यक्ति में असमानता पायी जाती है, जैसे – कोई सुन्दर है तो कोई सामान्य है तो कोई कुरूप है, ईश्वर ने सबको एक जैसा नहीं बनाया है। अब ऐसे में ज्यादातर यह देखा जाता है कि जो लोग बहुत सुन्दर होते हैं वे कुरूप लोगों को बड़ी ही हेय दृष्टि से देखते हैं।
अधिकतर हमने यह देखा है कि कुछ इस तरह के लोगों का लोग मज़ाक उड़ाते हैं, जैसे – बहुत काला इंसान, बहुत पतला इंसान, शक्ल से भद्दा इंसान, बौना इंसान, किन्नर अर्थात हिज़ड़ा, काना इंसान, लंगड़ा इंसान, गंजा इंसान या फिर बहुत मोटा इंसान।
मज़ाक उड़ाने वाले लोगों के लिए दो शब्द > क्या आपने कभी सोचा है क्या ? कि अगर आपके अंदर ऐसी किसी भी प्रकार की कोई कमी होती और लोग आपका इसी तरह मज़ाक उड़ाते तो आप के दिल पर क्या गुज़रती।
निष्कर्ष
दोस्तों, वैसे तो यहाँ पर हर इंसान ही गलतियों का पुतला है, अब चाहे वह किसी का बेटा हो, पति या पत्नी हो. भाई हो, दोस्त हो या फिर कुछ भी हो, लेकिन सवाल यह उठता है कि वह गलती जान-बूझकर होती है या फिर अनजाने में, हालाँकि गलती तो गलती ही होती है लेकिन इसके रूप भिन्न-भिन्न होते हैं।
एक गलती होती है कि हम किसी काम को कर रहे हैं और उसे करते समय कुछ भूल-चूक हो जाती है, या फिर कोई हादसा हो जाता है जो हमारे हाथों से होता है इसलिए हमें ही गलत ठहराया जाता है, और ऐसी गलतियों पर सामने वाले को माफ़ भी कर दिया जाता है।
लेकिन कुछ गलतियां ऐसी होती हैं जो जान-बूझकर की जाती हैं जिन पर माफ़ी देना नागवार होता है, जैसे – औलाद द्वारा माता-पिता को निरादर, शादी के बाद भी नाजायज सम्बन्ध, संपत्ति के लिए सगे भाई से धोखा, दोस्त के घर में बैठकर गन्दी नियत रखना, और अपने आगे सबको बेवकूफ समझना आदि।
अगर आप चाहते हैं कि इन सब बातों के शिकार आप ना हों तो इसके लिए आपको अपने आस-पास कुछ ऐसा सकारात्मक माहौल बनाना होगा जो इन सबसे परे हों और इसके लिए सबसे पहले आपको अपने-आप से ही बात करनी पड़ेगी और अपने-आप से ही इसकी शुरुआत करनी पड़ेगी क्योंकि लोगों को सुधारने के लिए पहले खुद का सुधारना जरुरी होता है।
हम सभी लोगों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि जिस प्रकार का व्यवहार हम लोगों से चाहते हैं क्या हम भी वैसा ही व्यवहार दूसरों से करते हैं क्या ?
दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही आपको बुद्धजीवियों की
श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय हिन्द-जय भारत।
लेखक परिचय
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