आधुनिक भारत का इतिहास > इससे पहले हमने प्राचीन भारत और उसके बाद मध्यकालीन भारत के बारे में पढ़ा, इस आर्टिकल में हम आधुनिक भारत अर्थात सोलहवीं शताब्दी के बाद के समय और घटनाओं के बारे में जानेंगे, जिसमें 1526 में बाबर और 1600 में अंग्रेजों का आगमन होता है और वहीं से भारत का इतिहास करवट लेते हुए मध्यकालीन से आधुनिक भारत में प्रवेश करता है।
आधुनिक भारत का इतिहास
बाबर का आगमन
बाबर मध्य एशिया के फरगना घाटी का रहने वाला था जो वहाँ से काबुल में आकर बस गया था। वह 1526 ईस्वी में भारत की तरफ रुख करता है एक बड़ी सेना लेकर भारत पर आक्रमण करता है और उस समय केे दिल्ली सल्तनत के शासक इब्राहिम लोदी को पराजित कर दिल्ली की सत्ता पर मुगल शासक की नींव डालता है।
मुग़ल साम्राज्य की स्थापना
बाबर द्वारा भारत की सर जमीं पर मुगल शासक की नींव के साथ ही मुगल साम्राज्य का उदय होता है जो एक लम्बी अवधि तक आस्तित्व में बना रहता है।
बाबर के आगे की कई पीढ़ियों ने मुगल साम्राज्य का काफी विस्तार किया और अंग्रेजों के भारत के पूर्ण कब्जे तक मुगल शासन अस्तित्व में रहा। आइये अब हम उन शासकों के नाम और अवधि के बारे में जानते हैैं।
मुग़ल शासकों के नाम और शासनकाल
- बाबर (1526-1530) इनको ज़हीर भी कहते थे।
- हुमायूँ (1530-1540)
- (1555-1556) इनको नासिर भी कहते थे।
- अकबर (1556-1605) इनको जलालुद्दीन भी कहते थे।
- जहांगीर (1605-1627) इनको सलीम भी कहते थे।
- शहरयार (1627-1628)
- शाहजहां (1628-1658) इनको ख़ुर्रम भी कहते थे।
- औरंगजेब (1658-1707) इनको आलमगीर भी कहते थे।
- बहादुर शाह प्रथम (1707-1712)
- जहांदार शाह (1712-1713)
- फर्रुख्शियार (1713-1719)
- रफ़ी उल-दर्जत (1719)
- शाहजहां द्वितीय (1719)
- मुहम्मद शाह (1719-1748)
- अहमद शाह बहादुर (1748-1754)
- आलमगीर द्वितीय (1754-1759)
- शाहजहां तृतीय (1759-1760)
- शाह आलम द्वितीय (1760-1806)
- अकबर शाह द्वितीय (1806-1837)
- बहादुर शाह द्वितीय (1837-1857)
अंग्रेजों का आगमन
वैसे तो 1498 ईस्वी में एक यूरोपीय नागरिक वास्को डी गामा अपनी नाव से यात्रा करते हुए भारत तक पहुँचा था इसीलिए यूरोपीय इतिहास में यह कहा जाता है कि भारत की खोज वास्को डी गामा ने की थी। और उसी ने यूरोपियों को जाकर बताया कि भारत में मशालों का अंबार है जिसके बाद से ही यूरोप और भारत के बीच समुद्री रास्ते खुले और समुद्र के रास्ते व्यापार शुरू हो गया।
1600 ईस्वी में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के इजाजत से भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई जिसका उद्देश्य था दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का साथ व्यापार सम्बन्ध स्थापित करना।
उसके बाद 24 अगस्त 1608 ईस्वी को सूरत के बंदरगाह पर अंग्रेजों का आगमन हुआ जिनका मुख्य उद्देश्य था भारत में ज्यादा से ज्यादा व्यापारिक गतिविधियों को अपने हक़ में करना जिससे वे ढेर सारा पैसा कमाकर अपने देश में ले जाना और उसी उद्देश्य से वे धीरे-धीरे अपना पैर पसारना शुरू करते हैं और कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास जैसे शहरों से वे अपनी व्यापारिक शुरुआत करते हैं।
अंग्रेजों का विस्तार
अंग्रेजों द्वारा भारत में व्यापारिक शुरुआत के साथ ही प्रशासनिक महकमों में हस्तक्षेप के मामले भी बढ़ने लगे वे लोग मुग़ल शासकों में फूट डालकर उन्हें आपस में लड़ाने लगे। उन्हें लालच देकर उनसे उनकी जमीन भी हथियाने लगे और इस तरह वे लोग भारतीय सर जमीं पर साम्राज्य बढ़ाने लगे।
मुग़ल शासकों की बहुत सी कमजोरियों का अंग्रेजों ने बखूबी फायदा उठाया और एक दिन ऐसा भी आया जब अंग्रेजों ने मुग़ल शासकों को ही धूल चटाया और भारत में मुग़ल हुकूमत को ख़त्म करके ब्रिटेन का झंडा फहराया।
प्लासी की लड़ाई
1757 ईस्वी में प्लासी की लड़ाई होती है जिसमे रोबर्ट क्लाइव ने बंगाल के नवाव को हराकर भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन स्थापित किया जो कि पहले एक व्यापारिक कंपनी थी। और वहीं से अंग्रेजी शासन पुरे भारत में पैर पसारना शुरू कर देती है।
अंग्रेजी हुकूमत अपने मनमाने तरीके से काम करने लगी उनका हर एक क़ानून सिर्फ उनके फायदे वाले ही होते थे। वे लोग भारतीयों पर मनमाने तरीके से जुल्म भी करते लगे थे।
आंग्ल मराठा युद्ध
अंग्रेजों के बढ़ते साम्राज्य के समय ही उन्हें मराठों का सामना करना पड़ता है परिणामतः अंग्रेजों और मराठों के बीच तीन युद्ध होते हैं।
पहला आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782) रघुनाथ राव और अंग्रेजों के बीच हुआ।
दूसरा आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805) पेशवा बाजीराव द्वितीय और अंग्रेजों के बीच हुआ।
तीसरा आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1819) दोबारा फिर पेशवा बाजीराव द्वितीय और अंग्रेजों के बीच हुआ।
1857 का विद्रोह
1857 के विद्रोह के वैसे तो कई कारण मने जाते हैं लेकिन सबसे मुख्य कारण सैनिकों द्वारा अंग्रेजों के प्रति अविश्वास का कारण माना जाता है। ब्रिटिश सैनिक भारतीय सैनिकों के साथ नस्लीय भेदभाव करते थे। माना जाता है कि सैनिकों के बंदूकों के जो कारतूस थे उनकों दांत से खोलना पड़ता था जिन पर गाय और सूअर की चर्बी लगी होती थी जिससे हिन्दू और मुशलमान दोनों के ही धर्म भ्रष्ट होने का खतरा था इस कारण सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिकों से विद्रोह कर लिया और उस घटना ने ऐसी तूल पकड़ी की पुरे देश में आग की तरह वह आंदोलन फैला और लगभग दो साल तक चला लेकिन वह विद्रोह असफ़ल रहा।
बक्सर की लड़ाई
1764 ईस्वी में बक्सर की लड़ाई को जीतने के बाद अंग्रेजों का हौसला और बढ़ गया क्योंकि उस युद्ध में ब्रिटिश सैनिक भारतीय सैनिक पर काफी भारी पड़े क्योंकि उनके पास आधुनिक हथियार थे जिनके बल पर उन्होंने भारतीय सैनिकों को युद्ध में धूल चटाई।
उसके बाद से ही बड़ी तेजी से भारत में ब्रिटिश शासन अपना पैर पसारती है जो आगे के 90 वर्षों तक भारत पर अपनी हुकूमत को बनाये रखती है और यह सिलसिला भारत की आज़ादी अर्थात 1947 तक चलती है।
आजादी की लड़ाई
वैसे तो आजादी की लड़ाई का बिगुल 1857 के विद्रोह के समय ही बज चुका था। भले ही वह विद्रोह दबा दिया गया था लेकिन अंदर ही अंदर आग सुलग रही थी उसे चिंगारी देने वाले की जरुरत थी जो महात्मा गाँधी के आने से शुरू हो जाती है।
महात्मा गाँधी के अफ्रीका में रहने के दौरान एक ऐसी घटना घटती है जिसका असर भारत की आजादी की लड़ाई में पड़ती है। एक बार महात्मा गाँधी रेल में सफर कर रहे थे वे VIP डिब्बे में टिकट लेकर बैठ गए कुछ अंग्रेज उनसे नस्लभेद करते हुए उन्हें उस डिब्बे से बाहर धक्का दे देते हैं। उनका कहना था कि भारतीयों का इस डिब्बे में बैठना मना है।
उस घटना ने महात्मा गाँधी के अंदर एक ऐसी आग पैदा किया कि उन्होंने कसम खाली कि ” ऐ अंग्रेजों आज तुमने मुझे इस डिब्बे से बाहर फेंका है मै कसम खाता हूँ कि जब तक मै तुम्हें अपने देश से बाहर नहीं फेंक दूंगा चैन की सांस नहीं लूंगा” और फिर गाँधी जी भारत आकर आजादी की लड़ाई में कूद जाते हैं और लोग उनके नेतृत्व को स्वीकारते हुए उनका साथ देते हैं जिसके कारण एक दिन भारत से अंग्रेजों को सत्ता हस्तांतरित करके वापिस अपने देश जाना पड़ता है।
आजादी के स्वतंत्रता सेनानी
भारत के आजादी में इन लोगों ने अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी इनमे कोई नरम था तो कोई गरम कोई शहीद हो गया तो कोई आजादी के बाद सत्ताधारी बना भारतीय इतिहास के पन्नो पर अपना नाम सुनहरे अक्षरों से लिखवा गया। भारत के उन वीर सपूतों के नाम इस प्रकार हैं।
- बहादुर शाह ज़फर
- अशफाखउल्ला खान
- रानी लक्ष्मीबाई
- मंगल पांडे
- महात्मा गाँधी
- शहीद भगत सिंह
- चंद्रशेखर आज़ाद
- सुखदेव
- सुभाष चंद्र बोस
- जवाहरलाल नेहरू
- बाल गंगाधर तिलक
- लाला लाजपत राय
आधुनिक भारत का इतिहास
अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा
1942 में महात्मा गाँधी ने भारत के लोगों में एक ऐसा उत्साहित नारा फैलाया जिसने पुरे देश में आग की तरह काम किया “अंग्रेजों भारत छोड़ो” ने अंग्रेजी शासन को हिलाकर रख दिया और वे समझ गए कि अब भारत की सर जमीं पर हमारी दाल नहीं गलने वाली क्योंकि जब जनता जाग जाती है तो प्रशासन डगमगा जाती है।
आजादी की लड़ाई में जान आ गई थी, ब्रिटिश शासन की जुल्मों से लोग त्रस्त हो चुके थे, पढ़े-लिखे भारतीय नेता अंग्रेजों के नीतियों को भलीभांति समझ चुके थे और काफी हद तक उनके कमजोरियों को भी क्योंकि उनमे से बहुत तो उनके साथ काम भी कर चुके थे, अंग्रेजों को भी बहुत कुछ समझ में आ चुका था कि अब ये नहीं मानेंगे।
अंग्रेजी शासन का अंत
उस समय द्वितीय विश्व युद्ध भी चल रहा था जिसके कारण कई साम्राज्यवादी शक्तियाँ कमजोर पड़ती दिख रहीं थीं उसका फायदा उपनिवेशों ने बखूबी उठाया और जबरदस्त आंदोलनों की लहर उठी परिणामतः कई उपनिवेश आज़ाद हुए जिनमे भारत भी था।
15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के साथ ही अंग्रेजी शासन का अंत और एक नए और आजाद भारत का निर्माण होता है जिसके पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बनते हैं और महात्मा गाँधी को भारत के राष्ट्रपिता की उपाधि से सम्म्ननित किया जाता है। जिनकी 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी।
26 जनवरी 1950 को भारत एक गणराज्य बना जिसमे एक स्वतंत्र भारत का अपना संविधान शामिल किया गया और तभी से हर साल 26 जनवरी को देश में बड़े धूम-धाम से गणतंत्र दिवस मनाया जाता है और उसी दिन भारत पूरी दुनियाँ को अपनी संस्कृति की झलक दिखाता है साथ ही साथ अपनी सैन्य क्षमता से रूबरू भी कराता है।
दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके जानकारियों की सूची में चार-चाँद लगाएगा और आपको और ज्यादा जानकार बनाएगा।
आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, तब तक के लिए, जय हिन्द-जय भारत।
लेखक परिचय
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